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परिशिष्ट २ ३१३
उद्घातिक लघु प्रायश्चित्त है और अनुद्घातिक गुरु प्रायश्चित्त है। मास गुरुक, चतुर्गुरुक आदि अनुद्घातिक प्रायश्चित्त होते हैं। इसके तीन पर्याय नाम हैं ।
१. गुरुक - यह लघु प्रायश्चित्त की अपेक्षा गुरु होता है, बड़ा होता है । - २. अनुद्घातिक — इसको वहन करना ही होता है, इसका उद्घात नहीं होता ।
३. कालक - काल की अपेक्षा से उद्घातिक सान्तर है और अनुद्घातिक निरंतर होता है । इसलिए इसे 'कालक' कहा गया है ।
गोणस (गोनस)
'गोणस' आदि शब्द सर्प की विभिन्न जातियों के वाचक हैं । उनकी विभिन्न आकृतियों के आधार पर ये शब्द प्रचलित हुए हैं। जैसे— १. गोनस - गाय जैसी नासिका वाला सर्प ।
२. मंडली - मण्डलाकृति वाला सर्प ।
३. दर्वीकर - प्रहार आदि के लिए फण का प्रयोग करने वाला सर्प । घट (घट)
घट, कुट, कुम्भ, आदि शब्दों को कोशकारों ने एकार्थक माना है, लेकिन समभिरूढ नय की दृष्टि से व्युत्पत्ति कृत भेद यह है ' -
घट -- जो चेष्टा द्वारा घड़ा जाता है ।
कुट - जो टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, अथवा जो विभिन्न आकारों में मोड़ा जाता है । *
कुम्भ - जो कु / पृथ्वी
पर सुशोभित होता है । अथवा जिसे पृथ्वी पर
स्थित कर भरा जाता है ।"
कलश--बड़े पेट वाला घड़ा ।
देखें - 'अरंजर' |
१. बुकटी पृ १३१०-११ ।
२. सूटो २ प ४२७ : पर्यायाणां नानार्थतया समभिरोहणात् 'समभिरूढो, नहीं घटादिपर्यायाणामेकार्थतामिच्छति तथाहि घटनाद् घट
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३. अनुद्वामटी प १२५ ।
४. वही प १२५ : कौ भातीति कुम्भः ।
५. नंटि पृ १६० ।
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