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३१० । परिशिष्ट २
लता, गुल्म, वृक्ष आदि के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, तब इसका अर्थ वक्र लता या वृक्ष, ठूठ, गांठों वाली लकड़ी या वृक्ष होता है।
देखें-'गंडि'। खिज्जणिया (खेदनिका),
खिज्जणिया' आदि तीनों शब्द प्रताड़ना की ही विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक हैं। जैसेखेदनिका-तिरस्कृत करना। रुंटणिया-रुलाना। यह देशी शब्द है ।
उपलम्भना-उपालम्भ देना, बुरा भला कहना। खीण (क्षीण)
जैन आगामों में पल्योपम को उपमा से समझाया गया है। पल्य/ कोठे के खाली होने के प्रसंग में क्षीण आदि शब्दों का उल्लेख हुआ है। हरिभद्र ने क्षीण, नीरज, निर्मल, निष्ठित आदि सभी शब्दों को एकार्थक
माना है। खोडभंग (दे)
खोडभंग आदि तीनों शब्द देशी हैं। राजकुल के लिए जो स्वर्णमुद्राएं या द्रव्य कर के रूप में देय होता है, उसे खोड कहा जाता है। वह देय द्रव्य व देना खोडभंग है। राजाओं के युग में 'वेढ' (बेगार) देने की परम्परा थी। वह प्रत्येक परिवार के लिए अनिवार्य देनी होती थी। इसी प्रकार राजा के वीर पुरुषों को भोजन आदि देना भी अनिवार्य
माना जाता था। ये तीनों शब्द इसी के द्योतक हैं।' खोरक (दे)
यहां संगृहीत सारे शब्द विभिन्न आकृति वाले कटोरे-खप्पर के द्योतक हैं । दशवकालिक की जिनदासकृत चूणि के एक कथानक के प्रसंग १. उटि पृ १६६। २. अनुद्वाहाटी पृ८५ : एकाथिकानि वैतानि पदानि । ३. निचूभा ४ पृ २८० : खोडं णाम जं रायकुलस्स हिरण्णादि दव्वं दायव्वं
वेट्टिकरणं परं परिणयणं चोरभडादियाण य चोल्लगादिप्पदाणं तस्स मंगो खोडभंगो।
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