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________________ ३११ । परिशिष्ट २ स्वसय (उपाश्रय) "उवसग' आदि सभी शब्द स्थानवाचक हैं। इनकी अभिव्यञ्जना भिन्न भिन्न होने पर भी आश्रय देने के आधार पर ये सभी एकार्थक उवहि (उपधि) उपधि शब्द के पर्याय में आठ शब्दों का उल्लेख है। सभी शब्द उपधि के विशेष गुणों को व्यक्त करते हैं१. उपधि-जो धारण करता है, पुष्ट करता है । २. उपग्रह-जो समीप से धारण किया जाता है । ३. संग्रह-जिसका संग्रह किया जाता है। ४. प्रग्रह-जिसका विशेष रूप से संग्रह किया जाता है । ५. अवग्रह-जिसको बार-बार ग्रहण किया जाता है। ६. भण्डक-पात्र विशेष, यह भी उपधि है। ७. उपकरण-जो उपकार करता है । ८. करण-जो संयम-यात्रा में सहायक बनता है। एजण (एजन) ___ कंपन के अर्थ में 'एजण' आदि सात शब्दों का उल्लेख है। ये सभी शब्द हलन-चलन की उत्तरोत्तर अवस्थाओं के द्योतक हैं१. एजन-सामान्य कंपन । २. व्येजन-विशेष कंपन । ३. चालन-इधर-उधर थोड़ा हिलाना । ४. घट्टन-दो वस्तुओं का आपस में संघर्षण । ५. क्षोभण-तीव्रता से क्षुब्ध करना, मथना। ६. उदीरण-प्रबलता से इधर-उधर करना या गति कराना । १. बृकटी पृ ९२५ : एतान्येकार्थानि नानाव्यञ्जनानि पृथगक्षराण्युपाश्रयस्य मामानि । '२. ओनिटी ५ २०७ : 'तस्वमेवपर्यायाख्ये' इति न्यायात् .........। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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