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.२८६ । परिशिष्ट २
इनके अस्तित्त्व का आभास मात्र है। इसी प्रकार अन्यान्य पर्याय भी अहिंसा के ही संपोषक या संरक्षक तत्त्व हैं। कुछेक शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है-- १. गति-अहिंसा सम्पदाओं की जननी है। कल्याण के इच्छुक व्यक्ति
इसका आश्रय लेते हैं, इसलिए यह गति है । २. प्रतिष्ठा—यह समस्त गुणों की प्रतिष्ठा-आधारभूमि है। ३. निर्वाण-यह मोक्ष की हेतु है । ४. निर्वृति-यह स्वास्थ्य की हेतुभूत है। ५. शक्ति-यह अन्यान्य शक्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करती है । ६. श्रुतांग-श्रुतज्ञान से निष्पन्न होने से श्रुतांग है। ७. क्षान्ति-क्षान्ति की उत्पत्ति में हेतुभूत । ८. सम्यक्त्वाराधना-जो सम्यक्त्व में प्रतिष्ठित है। ९. बृहती - सभी धर्मानुष्ठानों में प्रधान । १०. बोधि-बोधि का अर्थ है-सर्वज्ञ धर्म की प्राप्ति । सर्वज्ञ धर्म
अहिंसा प्रधान होता है । ११. बुद्धि-अहिंसा बुद्धि को निर्मल बनाती है, सफल बनाती है,
. इसलिए अहिंसा बुद्धि है । १२. धृति- अहिंसा धृति-चित्त की स्थिरता पैदा करती है । १३. स्थिति-मुक्त स्थिति की प्रापक होने से स्थिति । १४. पुष्टि-पुण्य का उपचय करने वाली। १५. नन्दा-समृद्धि की ओर ले जाने वाली । १६. भद्रा-कल्याणकारी । १७. विशिष्ट दृष्टि-जैनधर्म के विशिष्ट दर्शन की जननी । १८. प्रमोद--प्रमोद भावना को बढ़ाने वाली । १९. समिति - सम्यक् प्रवृत्ति होने से समिति । २०. शीलपरिगृह-चरित्र का स्थान । २१. व्यवसाय-विशिष्ट अध्यवसाय की कारण भूत ।
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