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________________ परिशिष्ट २ । २७७ 'धर्मों पर विचार व व्याख्या करना अनुयोग है। इनके एकार्थक शब्दों का आशय इस प्रकार है१. नियोग-सूत्र के साथ अर्थ का निश्चित व अनुकूल योग करना । २. भाषा-शब्द का व्युत्पत्तिमूलक अर्थमात्र कहना। ३. विभाषा-शब्द की विभिन्न पर्यायों के आधार पर अनेक अर्थ निरूपित करना। ४. वार्तिक-शब्द की समस्त पर्यायों के आधार पर अर्थ निरूपित करना। विशेषावश्यक भाष्य में भाषा, विभाषा और वार्तिक को एक उदाहरण द्वारा समझाया गया है। वस्तुतः ये सभी शब्द व्याख्या की उत्तरोत्तर अवस्था के द्योतक हैं। जैसे-एक व्यक्ति है। वह इतना मात्र जानता है कि रत्न हैं। दूसरा व्यक्ति उन रत्नों की जाति व मूल्य का ज्ञाता है और तीसरा व्यक्ति इसके साथ-साथ उन रत्नों के गुण-दोष भी जानता है। इस प्रकार भाषक प्रारम्भिक अवबोध देता है, विभाषक उसकी विशेष व्याख्या करता है और वातिककर उसकी सर्वांग व्याख्या प्रस्तुत करता है। अणुण्णा (अनुज्ञा) अनुज्ञा का अर्थ है-आचार्य द्वारा अपने उत्तराधिकारी को गण का उत्तरदायित्व सौंपना । आचार्य कहते हैं-वत्स ! मैं आज तुम्हें यह गण, शिष्य, वस्त्र, पात्र आदि सारी वस्तुएं समर्पित करता हूं। आज से तुम इनके स्वामी हो। गुरु का यह वचन-विशेष अनुज्ञा कहलाता है । अनुज्ञा के छह प्रकार निर्दिष्ट हैं-नाम अनुज्ञा, स्थापना अनुज्ञा, द्रव्य अनुज्ञा, क्षेत्र अनुज्ञा, काल अनुज्ञा और भाव अनुज्ञा । _अनुज्ञा के बीस एकार्थक/अभिवचन यहां संगृहीत हैं । व्याख्याकार स्वयं इनके स्पष्टीकरण में संदिग्ध हैं। उनका कहना है कि परम्परा के अभाव में इन एकार्थ अभिवचनों का स्पष्ट अर्थ नहीं बताया जा सकता।' १. नंदीटी पृ १०२। २. विभा १४२५। ३. अनुनंदीटी पृ १७६ : एतेषां च पदानामर्थः सम्प्रदायाभावान्नोच्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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