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( २५ )
परिशिष्ट
इस कोश में तीन परिशिष्ट दिये गए हैं । प्रथम परिशिष्ट में इस कोश में प्रयुक्त सभी शब्दों की अकारादि क्रम से सूची है। इस परिशिष्ट में लगभग ८००० शब्द हैं । एक ही शब्द के पर्याय में जहां क-ग, तन्य, णन्न आदि व्यञ्जनों का भेद था वहां एक ही शब्द लिया है ।
इस परिशिष्ट की विशेषता यह है कि इसमें शब्द- ज्ञान के लिएकोष्ठक में मूल शब्द दिया है, जिससे सामान्यतः केवल परिशिष्ट देखने मात्र से अर्थ का ज्ञान हो सकता है । परिशिष्ट में शब्दों को निविभक्तिक और प्रत्यय रहित लिया है, जबकि धातुओं को सुविधा के लिए प्रत्यय सहित लिया है ।
द्वितीय परिशिष्ट में एकार्थकों की स्पष्टता, तथा सार्थकता प्रमाण सहित टिप्पणों के रूप में व्याख्यायित है । जैसे- 'अलिय', 'परिग्गह' आदि शब्दों के ३०-३० पर्याय उल्लिखित हैं । उनकी विशेष व्याख्या टीका के आधार पर परिशिष्ट २ में दी गयी है । द्वितीय परिशिष्ट में लगभग ३२६ टिप्पण हैं । टिप्पणों के साथ आगमेतर साहित्य में उसके संवादी एकार्थंक मिले हैं, उनको भी जोड़ा गया है । जैसे- 'अवग्रह', 'ईहा', 'क्रोध', चित्त आदि ।
तृतीय परिशिष्ट धातुओं के अनुक्रम का है । कोश में जितनी भी धातुएं हैं उनकी मूल प्रकृति तथा उनका अर्थ-निर्देश है । धातुओं का निर्देश धातु पारायण के आधार पर किया गया है । कहीं कहीं टीकाकार और चूर्णिकार ने भिन्न-भिन्न अर्थ में प्रयुक्त धातुओं को भी एकार्थंक माना है, जैसे
१. 'वोसिरति विसोधेति णिल्लवेति त्ति एगट्ठा' ।
२. चाएति साहति सक्केइ वासेइ तुट्टाएति वा धाडेति वा एगट्ठा । परिशिष्ट में कोशिश की गयी है कि मूल अर्थ की संवादी धातु लिखें लेकिन अनेक स्थलों पर मूल धातु खोजना कठिन प्रतीत हुआ वहां प्रश्नचिह्न लगाकर छोड़ दिया है । इस परिशिष्ट में गण और प्रक्रिया का निर्देश न करके केवल धातु का ही उल्लेख किया गया है ।
अनेक स्थलों पर टीकाकार ने धातुओं को एकार्थक मानते हुए भी अर्थ-भेद किया है, जैसे – 'सहइ' धातु के एकार्थक में
सहते - अभय होकर सहना ।
क्षमते - क्रोध मुक्त होकर सहन करना । तितिक्षते - दीनता रहित होकर सहना ।
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