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उहवेति-उप्पायण
१८२ : परिशिष्ट १ उद्दवेति
(अभिहणति) उपदेश उद्दवेयव्व
(हंतव्व) उपदेश उद्दामित
(पृ ३५) उपदेस उद्दिट्ट
(पृ ३५) उपधि उद्दिष्ट
(पृ ३५) उपनीत उद्द ढ
(पृ ३६) उपनीयते उद्धंसण
(आओसण) उपपदरिसिते उद्धरण
(कढण)
उपपद्यते उद्धर्षणा
(आक्रोश) उपयोग उद्धार
(हत्या)
उपयोग उद्धारणा (धारणववहार) उपयोग उद्धिय
(ओहय) उपयोग उद्धिय कंटय
(ओहयकंटय) उपल उद्ध्य
(उक्किट्ठ) उपलब्ध उद्धृत
(पृ ३६) उपलभते उद्बुद्ध
(फुल्ल) उपलभते उद्भिन्न
(फुल्ल) उपलोलित उद्यतविहारिन् (संविग्न) उपवत्त उद्योगवद् (व्यवसायिन्) उपवधू उन्नय
(मोहणिज्जकम्म) उपवप्पित उन्नाम (मोहणिज्जकम्म) उपशान्त उन्निद्र
(फुल्ल) उपश्रा उन्मिषित
(फुल्ल) उपसारित उन्मीलित
(फुल्ल) उपात्त उपक
(पदपाश) उपादान उपकड्ढित
(उल्लोइत) उपाय उपकार
(गुण) उप्पज्जते उपचार
(आदेश) उप्पल उपणत
(उल्लोइत) उप्पल उपणद्ध
(उल्लोइत) उप्पाडेहि उपदेश
(प्रवचन) उप्पायण
(दर्शन) (निमित्त) (पृ ३६) (माया) (गमित) (पृ ३६) (उपनीयते) (पयाति)
(भाव) (३६)
(ज्ञान) (पृ ३६) (पासाण) (विदित) (शृणोति) (गलाति) (उल्लोइत) (उल्लोइत)
(पत्ति) (उल्लोइत)
(शान्त) (पृ ३६) (उल्लोइत)
(बद्ध) (आय) (प्रयोग) (पृ ३६) (पदुम) (पृ३६) (पहर) (पृ ३७)
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