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१७० : परिशिष्ट १
अभिनव–अमुर्छित अभिनव (तरुणय) अधिसंधान
(माया) अभिनिषद्या (तका) अभिसंभूत
(पृ १४) अभिन्नाचार (अक्षताचार) अभिसंवुड्ढ (अभिसंभूत) अभिन्नायार (अक्खयायार) अभिसन्दध्यात्
(संधयेत्) अभिप्पात (विण्णाण) अभिसमण्णागत
(लद्ध) अभिप्पाय (१४) अभिसमण्णागय
(नाय) अभिप्पाय (पणिहाण) अभिहणति
( १४) अभिप्पायंति (अभिलसंति) अभिहणेज्ज
(पृ १४) अभिप्राय (संविद्) अभीय
(अणुविग्ग) अभिप्राय (प्रणिधान) अभीय
(१५) अभिप्राय (छंद) अभूतिभाव
(पृ१५) अभिप्राय (भाव) अभेद
(अणु) अभिभव (विजय) अभ्याश
(अंतिक) अभिरुइय (इच्छिय) अभ्युपगत
(प्रतीष्ट) अभिरूव (पासादिय) अमणाम
(दुक्ख) अभिलषणीय (कान्त) अमणाम
(अणि?) अभिलसइ
(आसाएइ) अमणामस्सर
(अणिट्ठस्सर) अभिलसइ (कंखइ) अमणुण्ण
(अणिट्ट) अभिलसंति
(पृ १४) अमणुण्णस्सर (हीणस्सर) अभिलसन (पीहन) अमनोज्ञ
(फरस) अभिलसमाण (पत्थेमाण) अमम
(अणासव) अभिलाप्य (प्रज्ञापनीय) अमम
(संत) अभिलाष (राग) अमर
(सिद्ध) अभिलाष (लोभ) अमर
(देव) अभिलाष (छंद) अमाघाय
(अहिंसा) अभिलासा (परिज्झा) अमाण
(पृ १५) अभिवादित (वंदित) अमाया
(पृ १५) अभिवायण (पृ १४) अमुच्छा
(लाघविय) अभिशय्या (तका) अमुत्ति
(परिग्गह) अभिष्वङ्ग (संस्तव) अमुय
(अण्णाय) अभिसंजात (अभिसंभूत) अमूढ
(पृ १५)
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