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आगम विषय कोश - २
युक्तियों से वस्तुतत्त्वों का निरूपण है अतः यह सत्यभाषा में निबद्ध है।
से
दृष्टिवाद गमिक है-भंग-गणित अथवा सदृश पाठों
है ।
युक्त
८. श्रुत का ग्रहण - परावर्तन काल
संवच्छरं च झरए, बारसवासाइ कालियसुतम्मि। ...सोलस उ दिट्टिवाए, गहणं झरणं दसदुवे य॥ (व्यभा २२९२, २२९३)
कालिक श्रुत के ग्रहण में बारह वर्ष तथा झरण (परावर्तन) में एक वर्ष लगता है ।
दृष्टिवाद के ग्रहण में सोलह वर्ष तथा परावर्तन में बारह वर्ष लगते हैं। बारह वर्ष का समय अल्पमति की अपेक्षा से है, प्राज्ञ मात्र एक वर्ष लगता है। ९. गमिक - अगमिक श्रुत
भंग-गणियादि गमियं, जं सरिसगमं च कारणवसेणं । गाहादि अगमियं खलु, कालिय तह दिट्ठिवाए य ॥
दृष्टिवादो गमिकम्, कालिकश्रुतमगमिकम् एतद् बाहुल्येनोच्यते कालिकश्रुते दृष्टिवादे वा यत्र भंगा:चतुर्भंगादयः गणितं - संकलनादि, आदिग्रहणेन क्रियाविशाले पूर्वे यत् छन्दः प्रकृतं तत् सदृशगममिति तस्य परिग्रहः, यच्च 'कारणवशेन' अर्थवशेन सदृशगमम्, यथा निशीथस्य विंशतितम उद्देशकः एतद् गमिकम् । शेषं गाथादि आदिशब्दात् श्लोकादि परिग्रहः अगमिकम् । (बृभा १४३ वृ)
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जो रचना भंग-गणित प्रधान या सदृशपाठ प्रधान होती है, उसकी संज्ञा गमिक है। विसदृश पाठ प्रधान रचना अगमिक है । दृष्टिवाद गमिक है तथा आचारांग आदि कालिकश्रुत अगमिक हैं - यह बहुलता की अपेक्षा से कहा गया है। कालिकश्रुत तथा दृष्टिवाद में जो चतुर्भंग आदि विकल्प कहे गए हैं तथा संकलन आदि गणित का वर्णन है और क्रियाविशालपूर्व में जो छंद प्रकरण है, ये सारे गमिक हैं।
प्रयोजनवश अगमिकश्रुत में भी कहीं-कहीं सदृश पाठ की रचना शैली का प्रयोग हुआ है । यथा - निशीथ का बीसवां उद्देशक । शेष गाथा, श्लोक आदि विसदृश पाठ अगमिक हैं ।
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१०. छेदसूत्र और दृष्टिवाद : उत्तम श्रुत छेयसुयमुत्तमसुयं, अहवा वी दिट्ठिवाओ भण्णइ उ। जं तहि सुत्ते सुत्ते, वणिज्जइ चउह अणुयोगो ॥ सव्वाहिं णयविहीहिं दव्वा दंसिजंति, विविधा य इड्डीओ अतिसता य उप्पज्जंति, तम्हा तं उत्तमसुतं । (निभा ६१८४ चू)
छेदसूत्र और दृष्टिवाद उत्तमश्रुत हैं ।
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छेदसूत्र – इनमें आचारविधियों का प्रायश्चित्त सहित प्ररूपण है, जिससे चारित्रविशुद्धि होती है, अतः छेदसूत्र उत्तमश्रुत है। दृष्टिवाद - इसके प्रत्येक सूत्र में चारों अनुयोग वर्णित होते हैं, द्रव्यों का सब नयविधियों से उपदर्शन किया जाता है। इसके ज्ञाता को विविध ऋद्धियां और अतिशय उत्पन्न होते हैं, इसलिए यह उत्तम श्रुत है । ११. दृष्टिवाद की सूक्ष्मता
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आगम
नयवादसुहुमयाए, गणिते भंगहुमे णिमित्ते य । गंथस्स य बाहुल्ला, दिट्टिवातम्मि ॥
गमादि सत्तणया, एक्केक्को य सयविहो, तेहिं सभेदा जाव दव्वपरूवणा दिट्टिवाए कज्जति सा णयवादसुहुया भणति । तह परिकम्मसुत्तेसु गणियसुहुमया, तहा परमाणुमादीसु वण्णगंधरसफासेसु एगगुणकालगादिपज्जवभंगसुहुमता । तहा अट्टंगमादिणिमित्तं ।
( निभा ६०६३ चू)
नैगम आदि सात नय हैं। प्रत्येक नय के सौ-सौ प्रकार हैं। दृष्टिवाद में नयवाद की सूक्ष्मता है। वहां भेदप्रभेद सहित नयों तथा द्रव्यों की प्ररूपणा है ।
परिकर्म सूत्रों में गणित की सूक्ष्मता है तथा एक गुण कला आदि वर्ण-गंध-रस-स्पर्श युक्त परमाणु आदि के पर्यवविकल्पों की सूक्ष्मता है। वहां अष्टांगनिमित्त का भी निरूपण है।
१२. दृष्टिवाद में विद्यातिशय
दिट्टिवाते बहुविज्जाइसया सव्वकामकामिणो । (बृभा १४६ की चू) दृष्टिवाद में अनेक प्रकार के सर्वकामप्रद - सब इच्छाओं
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