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________________ राज्य ४७८ आगम विषय कोश-२ पाला। पंचविधे कामगुणे, साहीणे भुंजते निरुव्विग्गे। राजाओं की ऋद्धि चार प्रकार की होती थीवावारविप्पमुक्को, राया एतारिसो होति॥ १. अतियान ऋद्धि २. निर्याण ऋद्धि ३. सेना और वाहन ४. कोष (व्यभा ९२७, ९२८) । और कोष्ठागार की ऋद्धि। कई कोठार के स्थान पर संठाण राजा की सात अर्हताएं हैं (संस्थान)शब्द पढ़ते हैं, जिसका अर्थ है-वर्ण और नेपथ्य।। ० मातृपक्ष और पितृपक्ष-योनिद्वय से परिशुद्ध। (० अतियानऋद्धि-इसका अर्थ है नगर-प्रवेश के समय की जाने ० प्रजा से दसवां हिस्सा कर लेकर संतुष्ट होने वाला। वाली सजावट। जब राजा आदि नगर में आते थे, उस समय नगर ० लौकिक आचार, समस्त धर्मदर्शनों और नीतिशास्त्र का ज्ञाता। के तोरणद्वार सज्जित किए जाते थे, दुकानें सजाई जाती थीं और ० धर्म के प्रति दृढ़ आस्था रखने वाला। राजपथ पर हजारों आदमी एकत्रित होते थे। ० शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श-इन पंचविध स्वाधीन- ० निर्याणऋद्धि-इसका अर्थ है नगर से निर्गमन के समय साथ स्वोपार्जित कामगुणों का उपभोक्ता। चलने वाला वैभव। जब राजा आदि विशिष्ट व्यक्ति नगर से ० उद्विग्नता से रहित। निर्गमन करते थे, उस समय हाथी, सामन्त, परिवार आदि के लोग ० राज्यव्यवस्था सुचारु होने के कारण उसकी चिन्ता से मुक्त।। उनके साथ चलते थे।-स्था ३/५०३ वृ ० राजा व्यसनमुक्त हो राजकथा के चार प्रकार हैं-१. अतियान कथा २. निर्याण सत्तण्हं वसणाणं, अन्नयरजतो न जाणई रज्जं। कथा ३. सेना-वाहन कथा ४. कोश-कोष्ठागार कथा। स्था४/२४५) अंतेउरे व अच्छइ, कज्जाइँ सयं न सीलेइ ।। ० राजा के दो प्रकार, चार विकल्प इत्थी जूयं मज्जं, मिगव्व वयणे तहा फरुसया य। अधवा या विधो. आतभिसित्तो पराभिसित्तो य। दंडफरुसत्तमत्थस्स, दूसणं सत्त वसणाई॥ आतभिसित्तो भरहो, तस्स उ पुत्तो परेणं तु॥ (बृभा ९३९, ९४०) बलवाहणकोसा या, बद्धी उप्पत्तियाइया। जो सात व्यसनों में से किसी एक से भी युक्त है, वह साधगो उभयोवेतो, सेसा तिण्णि असाधगा॥ राज्यसंचालन नहीं कर सकता। वह अन्तःपुर में रहता है और बलवाहणत्थहीणो द्धीहीणो न रक्खते रज्जं।.... न्याय आदि कार्यों को स्वयं नहीं देखता। सात व्यसन ये हैं (व्यभा २४०८-२४१०) १. स्त्री-सदा अंत:पुर की स्त्रियों में आसक्त। २. द्यूत-अनवरत द्यूत-क्रीड़ा में निमग्न । राजा के दो प्रकार हैं-१. आत्माभिषिक्त-जैसे-भरत ३. मद्य-मद्यपान से निरन्तर मूर्च्छित। चक्रवर्ती । २. पराभिषिक्त-जैसे-भरतपत्र आदित्ययशा। ४. मृगया-शिकार में रत। राजा के चार विकल्प हैं५. वचनपरुषता-कठोर वचन बोलने का आदी। १. सेना आदि से युक्त, बुद्धिसम्पन्न। ६. दंडपारुष्य-उग्र दण्ड देने में प्रवर्तित । २. सेना आदि से युक्त, बुद्धि से हीन। ७. अर्थदूषण-अर्थोत्पत्ति के उपायों को दूषित करने वाला। ३. सेना आदि से रहित, बुद्धिसम्पन्न। ० राजाओं की ऋद्धि 4. सेना आदि से रहित, बुद्धि से हीन। अइयाणं णिज्जाणं, बलवाहणकोसमेव संठाणं( कोठार).... जो राजा सेना, वाहन, कोश और औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों ....... संठाणं नेवर्थ से सम्पन्न होता है, वह राज्य के लिए कल्याणकारक होता है। .."कोसमेव कोट्ठागारं चउत्थो भेओ। केपि एयं बल, वाहन, अर्थ (कोश) और बुद्धि से हीन राजा राज्य की सुरक्षा पढंति-कोसमेव संठाणं। (निभा १२८, १२९ चू) नहीं कर सकता। वण्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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