________________
अंतेवासी
आगम विषय कोश-२
ले आओ तो इसका अभिप्राय रूक्ष द्रव्यों से है, हरित निष्पाव परन्तु जब तक वह काष्ठ छीला नहीं जाता, फाड़ा नहीं अथवा कोद्रव से नहीं है। मैं कहता हूं कि अमुक बीज ले जाता, बींधा नहीं जाता तथा उस वेध में कुश नहीं डाला आओ तो उसका अभिप्राय अम्लभावित अथवा छिन्नयोनिक जाता, तब तक वह काष्ठ उस वस्तु के निर्माण में योजित बीज से है, सजीव बीज से नहीं।
नहीं किया जा सकता। ५. अपरिणामी आदि वाचना के अयोग्य
० धातु दृष्टांत-कोई व्यक्ति राग-द्वेष के बिना अधातु को दारुं धाउं वाही, बीए कंकड्य लक्खणे सुमिणे। छोड़कर धातु को ग्रहण करता है। धातु से अक्रम से ईप्सित एगंतेण अजोग्गे, एवमाई उदाहरणा निर्माण नहीं किया जा सकता, क्रम से ही निर्माण हो सकता को दोसो एरंडे, जं रहदारूं न कीरण तत्तो। है। इसी प्रकार आचार्य अयोग्य शिष्यों को वाचना नहीं देते. को वा तिणिसे रागो, उवजज्जड़ जं रहंगेस॥ योग्य शिष्यों को क्रम से वाचना देते हैं। उसमें राग और द्वेष जंपियदारूं जोग्गं, जस्स उवत्थस्सतं पिहन सक्का। का प्रसंग नहीं है। जोएउमणिम्मविउं, तच्छण-दल-वेह-कुस्सेहिं॥ ० व्याधि दृष्टांत-'यह रोग सुख-साध्य है, यह प्रयत्न साध्य एमेव अधाउं उज्झिऊण धाऊण कुणइ आयाणं। है और यह रोग असाध्य है, प्रयत्न से भी यह साध्य नहीं नय अक्कमेण सक्का , धाउम्भिवि इच्छियं काउं।। है।' इस प्रकार वैद्य रोगी की परीक्षा कर राग-द्वेष के बिना सुहसज्झो जत्तेणं, जत्तासझो असझवाही उ। उसकी चिकित्सा करता है। आचार्य भी शिष्य के स्वभाव की जह रोगे पारिच्छा, सिस्ससभावाण वि तहेव॥ परीक्षा कर राग-द्वेष के बिना उन्हें वाचना देते हैं। बीयमबीयं नाउं, मोत्तुमबीए उ करिसतो सालिं। बीज दृष्टांत--अबीज और बीज के लक्षण को जानकर ववइ विरोहणजोग्गे, न यावि से पक्खवाओ उ॥ किसान अबीज को छोड़कर शालि आदि के बीजों को बोता कंकडुए को दोसो, जं अग्गी तं तु न पयई दित्तो। है। इसमें उगने योग्य बीजों के प्रति किसान का पक्षपात नहीं को वा इयरे रागो, एमेव य सूवकारस्स॥ है। इसी प्रकार आचार्य का योग्य शिष्यों को वाचना देने में जे उ अलक्खणजुत्ता, कुमारगा ते निसेहिउं इयरे। कोई पक्षपात नहीं है। रज्जरिहे अणुमन्नइ, सामुद्दो नेय विसमो उ॥ ० कांकटुक (कोरडु) दृष्टांत-प्रदीप्त अग्नि भी 'कोरडु'
धान्य को नहीं पका सकती, इसमें अग्नि का उसके प्रति रत्तो वा दुट्ठो वा, न यावि वत्तव्वयमुवेइ॥ क्या द्वेष ? अन्य धान्य को वह पका देती है, इसमें अग्नि या
(बृभा २१५-२२३) सूपकार का उस धान्य के प्रति कैसा राग? इसी प्रकार काष्ठ, धातु, व्याधि, बीज, कांकटुक, लक्षण और स्वप्न
आचार्य योग्य शिष्य को वाचना देते हैं तो उसमें उनका ये एकान्त अयोग्य अर्थात् अपरिणामक तथा अतिपरिणामक
कोई राग नहीं है। शिष्यों के सन्दर्भ में उदाहरण हैं।
० लक्षण दृष्टांत-जो सामुद्र विद्या (शरीर के लक्षणों) को (गरु अयोग्य शिष्य को वाचना नहीं देते. इसमें गरु का जानता है, वह राजा की मृत्यु के पश्चात् लक्षणहीन राजकुमारों द्वेष हेतु नहीं है) इस सन्दर्भ में सात दृष्टांत हैं
को छोड़कर लक्षणयुक्त कुमार को राज्यभार वहन करने योग्य ० काष्ठ दृष्टांत-रथ बनाने के लिए एरण्ड की लकड़ी मानता है। इसमें सामुद्रिक शास्त्रवेत्ता का क्या राग? क्या उपयुक्त नहीं है। इसमें एरण्ड के प्रति क्या द्वेष? रथ को द्वेष? बनाने के लिए तिनिश की लकड़ी उपयुक्त होती है, उसमें ० स्वप्न दृष्टांत-स्वप्नद्रष्टा स्वप्नज्ञानी को स्वप्न के फल तिनिश वृक्ष के प्रति क्या राग?
पूछता है। स्वप्न के अनुरूप स्वप्न का फल बताने वाले का - किसी वस्तु के निर्माण के लिए उपयुक्त काष्ठ है, इसमें क्या राग? क्या द्वेष?
जो जह
APRO ZE 15 SIGE ATTI
N
A S
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org