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अंतकृत
अग्नि द्वारा तपाए हुए सोने का मल ।
परिज्ञासम्पन्न, समता में प्रतिष्ठित और अभिलाषामुक्त भिक्षु मैथुन से उपरत हो विहरण करे। जैसे सांप अपने शरीर की जीर्ण केंचुली को छोड़ देता है, वैसे ही माहन (अहिंसक भिक्षु) दुःखशय्या को छोड़ दे।
(कामभोगों की आशंसा को दुःखशय्या और अनाशंसा को सुखशय्या कहा गया है। स्था ४/४५०, ४५१) ३. अंतकृतभूमि
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अंतरभूमित्ति अंतः कर्मणां भूमिः - कालो । सो दुविधो - पुरिसंतकरकालो परियायंतकरकालो य । (दशा ८ परि सू १०५ की चू)
जिस भूमि-काल में कर्मों का अंत हो, वह अंतकरभूमि है। उसके दो प्रकार हैं- पुरुषांतकर (युगांतकर) काल और पर्यायांतकरकाल ।
(० युगांतकर भूमि - युग का अर्थ है विशेष कालमान। युग क्रमवर्ती होते हैं। उनके साधर्म्य से गुरु-शिष्य-प्रशिष्य आदि के रूप में होने वाली क्रमभावी पुरुष - परम्परा को भी युग कहा जाता है । उस युगप्रमित अंतकर भूमि को युगांतकर भूमि कहा गया है।
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पर्यायांतकरभूमि - तीर्थंकर के केवलित्व काल के आश्रित होने वाली अंतकरभूमि ।
अर्हत् मल्ली के बीसवें पुरुषयुग अर्थात् अर्हत् मल्ली से लेकर उनके तीर्थ में बीसवीं शिष्य परम्परा तक साधु सिद्ध हुए । उसके बाद सिद्धिगति का व्यवच्छेद हो गया। उनके तीर्थ में पर्यायांतरभूमि दो वर्ष पश्चात् प्रारंभ हुई अर्थात् मल्ली को कैवल्य प्राप्त हुए जब दो वर्ष सम्पन्न हुए, तब उनके तीर्थ में सिद्ध होने का क्रम प्रारम्भ हुआ । - ज्ञा १ / ८ / २३३ का टि) ४. श्रमण महावीर के अंतकृतभूमि
समणस्स भगवओ महावीरस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा - जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य। जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी चउवासपरियाए अंतमकासी ॥
जाव अज्जजंबुणामो ताव सिवपहो, एस जुगंतकरकालो । चत्तारि वासाणि भगवता तित्थे पवत्तिते तो
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आगम विषय कोश - २
सिज्झितुमारद्धा, एस परियायंतकरकालो ॥
(दशा ८ परि सू १०५ चू) श्रमण भगवान् महावीर के दो अंतकृत भूमियां थीं१. युगांतकृतभूमि - भगवान् महावीर के तीसरे पुरुषयुग जंबू स्वामी अर्थात् तीसरी शिष्य परम्परा तक युगांतकृतभूमिनिर्वाणगमन का क्रम रहा-यह युगांतकरकाल है। २. पर्यायांतकृतभूमि - भगवान् महावीर के तीर्थप्रवर्तन के चार वर्ष पश्चात् उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे - यह पर्यायांतकरकाल है।
५. अर्हत् पार्श्व-अरिष्टनेमि ऋषभ के अंतकृतभूमि
पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतकडभूमी जाव चउत्थाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, तिवासपरियाए अंतमकासी ॥
अरहओ णं अरिनेमिस्स दुविहा अंतकडभूमी "जाव अट्टमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, दुवासपरियाए अंतमकासी ॥
उसभस्सणं अरहओ कोसलियस्स दुविहा अंतगडभूमी जाव असंखेज्जाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमि, अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी । (दशा ८ परि सू १२३, १३७, १७९)
पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के चतुर्थ पुरुषयुग तक निर्वाण गमन का क्रम रहा- यह युगांतकृतभूमि है ।
अर्हत् पार्श्व को केवलज्ञान हुए तीन वर्ष हुए थे, उसी समय से उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे-यह पर्यायांतकृतभूमि है। अर्हत् अरिष्टनेमि के दो अंतकृतभूमियां थीं
१. युगांतकृतभूमि - अर्हत् अरिष्टनेमि के आठवें पुरुषयुग तक निर्वाण गमन का क्रम रहा।
२. पर्यायांतकृतभूमि - अर्हत् अरिष्टनेमि को केवलज्ञान हुए दो वर्ष हुए थे, उसी समय से उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के दो अंतकृतभूमियां थीं१. युगांतकृत भूमि- अर्हत् ऋषभ के संख्यातीत पुरुषयुग तक निर्वाण गमन का क्रम रहा।
२. पर्यायांतकृतभूमि - अर्हत् ऋषभ को केवलज्ञान हुए अंतर्मुहूर्त्त हुआ था, उसी समय से मोक्षगमन का क्रम प्रारंभ हो गया।
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