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________________ प्रतिमा • समाधिप्रतिमा के इकहत्तर भेद आयारे बायाला, पडिमा सोलस य वण्णिया ठाणे । चत्तारि य ववहारे, मोए दो चंदपडिमाओ ॥ एवं तु सुयसमाधिपडिमा छावट्टिया य पण्णत्ता । सामाइयमाईया, चारित्तसमाहिपडिमाओ ॥ समाधिपडिमा द्विविधा - सुतसमाधिपडिमा चरितसमाधि - पडिमा य, दर्शनं तदन्तर्गतमेव । ....आयारग्गेहिं सत्ततीसं, बंभचेरेहिं पंच एवं बातालीसं आयारे । ववहारे चत्तारि, दो मोयपडिमातो खुड्डिगा महल्लिगा य मोयपडिमा दो चंद- पडिमा - जवमज्झा व मज्झा य । (दशानि ४७, ४८ चू) समाधिप्रतिमा के दो प्रकार हैं - १. श्रुतसमाधिप्रतिमा २. चारित्र - समाधिप्रतिमा । दर्शनप्रतिमा इनके अन्तर्गत ही है। श्रुतसमाधिप्रतिमा के छासठ भेद इस प्रकार हैं० आचारांग (८ / ११६ - १२० ) में पांच प्रतिमाएं हैं १. मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य लाकर दूंगा और उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा। २. मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि लाकर दूंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार नहीं करूंगा। ३. मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि लाकर नहीं दूंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा। ४. मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि लाकर न दूंगा और न उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा। ५. मैं अपनी आवश्यकता से अधिक, अपनी कल्प-मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय तथा अपने लिए लाए हुए अशन आदि से निर्जरा के उद्देश्य से उन साधर्मिकों की सेवा करूंगा। ३७६ ( अथवा आचारांग के छठे धुताध्ययन के पांच धुत पांच प्रतिमा के रूप में निर्दिष्ट किए जा सकते हैं - निजकधुत, कर्मधुत, शरीर - उपकरणधुत, गौरवधुत, उपसर्गधुत । धुतवाद कर्मनिर्जरा का सिद्धांत है, ममत्वविसर्जन की प्रक्रिया है । इसे व्युत्सर्गप्रतिमा का प्रतिरूप माना जा सकता है। विशुद्धिमा में तेरह धुतांग बतलाए गए हैं - पांशुकूलिकांग, चीवरिकांग, पिंडपातिकांग, सापदानचारिकांग, एकासनिकांग, पात्रपिंडिकांग, खलुपच्छाभत्तिकांग, आरण्यकांग, वृक्षमूलिकांग, Jain Education International आगम विषय कोश- २ अभ्यवकाशिकांग, श्मशानिकांग, यथासंस्तरिकांग, नेसज्जिकांग ।) • आचारचूला में सैंतीस प्रतिमाएं हैंसात पिंडैषणा-सात पानैषणा प्रतिमा चार संस्तारकप्रतिमा चार वस्त्रप्रतिमा चार पात्रप्रतिमा सात अवग्रहप्रतिमा चार स्थानप्रतिमा (द्र अवग्रह) (द्र कायोत्सर्ग) ० स्थानांग में सोलह प्रतिमाएं हैं, जो चार-चार के भेद से निर्दिष्ट हैं - १. समाधिप्रतिमा २ उपधानप्रतिमा ३. विवेकप्रतिमा ४. व्युत्सर्गप्रतिमा । For Private & Personal Use Only (द्र पिण्डैषणा) (द्र शय्या) (द्र उपधि) (द्र उपधि) १. भद्रा २. सुभद्रा ३. महाभद्रा ४. सर्वतोभद्रा । (स्था ५ / १८ में भद्रोतर प्रतिमा का उल्लेख भी है ।) १. क्षुल्लकप्रश्रवण २. महत्प्रश्रवणप्रतिमा ३. यवमध्या ४. वज्रमध्या । १. शय्याप्रतिमा २. वस्त्रप्रतिमा ३ पात्रप्रतिमा ४. स्थानप्रतिमा । -स्था ४/९६-९८, ४८७-४९० • व्यवहार में दत्ति तप की चार प्रतिमाएं हैं - १. सप्तसप्तमिका २. अष्ट अष्टमिका ३. नवनवमिका ४. दसदसमिका । ० o दो मोकप्रतिमा - १. क्षुल्लकमोकप्रतिमा २. महत्मोकप्रतिमा । -व्य ९/३५-४१ दो चन्द्रप्रतिमा - १. यवमध्या २. वज्रमध्या । - व्य १०/१-५ यद्यपि ये चारित्रप्रतिमाएं हैं, किन्तु ये विशिष्ट श्रुतवान् मुनि होती हैं, इसलिए इन्हें श्रुतप्रतिमा कहा गया है, ऐसा संभव है।) चारित्रसमाधिप्रतिमा के पांच प्रकार हैं- सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात प्रतिमा । इस प्रकार समाधिप्रतिमा के कुल ६६+५=७१ भेद हैं। ० उपधान, विवेक आदि प्रतिमाओं के प्रकार भिक्खूणं उवहाणे, उवासगाणं च वण्णिया सुत्ते । गणको वाइविवेगो, सब्भंतर बाहिरो दुविहो ॥ सोतिंदियमादीया, पडिसंलीणा चउत्थिया दुविहा । अट्ठगुणसमग्गस्स य, एगविहारिस्स पंचमिया ॥ विवेगपडिमा अब्धिंतरिया कोधादीणं ।.....बाहिरिया गणसरीरभत्तपाणस्स य अणेसणिज्जं । एवं छण्णउतिं सव्वग्गेण भावपडिमा । (दशानि ४९, ५० चू) www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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