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________________ आगम विषय कोश-२ ३४७ पर्युषणाकल्प (पांच कारणों से प्रथम प्रावृट् (आषाढ) में विहार किया स्थित होना पड़ता है। कार्तिकी पूर्णिमा के बाद कर्दम, वर्षा आदि जा सकता है-भय से, दुर्भिक्ष होने पर, ग्राम से निकाल दिए जाने कारणों से मार्गशीर्ष मास भी यदि वहीं बिताना पडता है, तो छह पर, बाढ़ आ जाने पर, अनार्यों द्वारा उपद्रुत किए जाने पर। महीनों का उत्कृष्ट ज्येष्ठावग्रह होता है। पांच कारणों से वर्षावास-पर्युषण में विहार किया जा सकता ६. वर्षावास के पश्चात् वहीं रहने का हेतु है-ज्ञानार्थ. दर्शनार्थ. चारित्रार्थ. आचार्य-उपाध्याय-विष्वग-भवन, .."चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कंता, हेमंताण य पंचआचार्य-उपाध्याय-वैयावृत्त्यकरण।-स्था ५/९९, १००) दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया ५. पर्युषणाकाल : जघन्य-उत्कृष्ट ज्येष्ठावग्रह बहुहरियाणो जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवणइय सत्तरी जहण्णा, असीति णउई दसुत्तर सयं च। वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य। सेवं णच्चा णो . जति वासति मग्गसिरे, दस राया तिणि उक्कोसा॥ गामाणगामं दडज्जेज्जा॥ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा॥ (आचूला ३/४) जे आसाढचाउम्मासियातो सवीसतिराते मासे गतेपज्जोसवेंति तेसिं सत्तरीदिवसा जहण्णतो जेट्ठोग्गहो भवति। जे वर्षाकाल के चार मास बीत गए हैं, हेमंत ऋतु के पांच या भद्दवयबहुलस्स दसमीए पज्जोसवेंति तेसिं असीति दिवसा दस (अथवा पन्द्रह) अहोरात्र तक रह चुका है, (तो मुनि विहार जेटोग्गहो, जे सावणपुन्निमाए पज्जोसवेंति तेसिंणउतिं दिवसा करे, किन्तु) मार्ग में प्राणी, बीज, हरित आदि बहुत हैं, जहां बहुत श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और वनीपक आए हुए नहीं हैं और जेट्ठोग्गहो, जे सावणबहुलदसमीए ठिता तेसिं दसुत्तरं दिवससतं जेट्ठोग्गहो। __ (दशानि ६९ चू) न आयेंगे-मुनि ऐसा जानकर (मार्गशीर्ष मास पर्यंत) एक गांव से १. जघन्य ज्येष्ठावग्रह-सत्तर दिनों का। आषाढ़ी चातुर्मासिक दूसरे गांव परिव्रजन न करे। पक्खी के बाद एक मास बीस दिनों पश्चात् पर्यषणा करने पर ७. पर्युषणा में क्षेत्रगमन-सीमा, भिक्षाचरी-क्षेत्र वर्षावास के ७० दिन शेष रहते हैं-यह जघन्य ज्येष्ठावग्रह है। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गं२. मध्यम ज्येष्ठावग्रह-भाद्रपद कृष्णा दसमी को पर्युषणा करने थीण वा जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडिनियत्तए, अंतरा पर ८० दिन का। श्रावणी पूर्णिमा को पर्युषणा करने पर ९० दिन वि से कप्पइ वत्थए, नो से कप्पड़ तं रयणिं तत्थेव का, श्रावण शुक्ला पंचमी को पर्युषणा करने पर १०० दिन का तथा उवाइणावित्तए॥ श्रावण कृष्णा दसमी को पर्युषणा करने पर ११० दिन का। .."वासकप्पओसधनिमित्तं गिलाणवेज्जनिमित्तं वा। ३. उत्कृष्ट ज्येष्ठावग्रह-आषाढी पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक (दशा ८ परि सू २८६ चू) १२० दिन का उत्कृष्ट वर्षावास। मुनि को कार्तिकी पूर्णिमा को वर्षावास में पर्युषित निग्रंथ अथवा निग्रंथी वर्षावासकल्प, विहार कर देना चाहिए। यदि मृगशिर में प्रचुर वृष्टि हो, तो उत्कृष्ट तीन दशरात्र-मृगशिर की पूर्णिमा तक वहां रहे। उसके औषधि, ग्लान, वैद्य आदि निमित्तों से चार-पांच योजन जा-आ पश्चात् भी यदि निरन्तर सघन वर्षा हो रही हो, तब भी अवश्य सकते हैं, मार्ग में भी रह सकते हैं, किन्तु वह रात्रि वहां नहीं बिता विहार करे। इस प्रकार पांचमासिक ज्येष्ठावग्रह होता है। सकते। काऊण मासकप्पं, तत्थेव ठिताणऽतीते मग्गसिरे। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंसालंबणाण छम्मासिओ उ जेट्ठोग्ग्हो होति॥ थीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं (बृभा ४२८६) पडिनियत्तए॥ (दशा ८ परि सू २३२) जिस क्षेत्र में आषाढ़मासकल्प किया, वर्षावास प्रायोग्य अन्य वर्षावास में पर्युषित निग्रंथ-निग्रंथी सक्रोश योजन (पांच क्षेत्र न मिलने पर मासकल्प वाले उसी क्षेत्र में वर्षावास के लिए कोश) की सीमा में चारों ओर भिक्षाचर्या के लिए जा-आ सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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