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________________ तप २७८ आगम विषय कोश-२ क्रमश: उतरते-उतरते उपवास तक आते हैं, फिर दाडिमपुष्प है। इस तप की आराधना महासती महाकाली ने की थी। के रूप में ८ बेले किए जाते हैं, फिर काहिलिका के रूप में ० महासिंहनिष्क्रीडित तप-इस तप की विधि लघुसिंहक्रमश: तेला, बेला और उपवास किया जाता है। इस क्रम निष्क्रीडित तप के समान है, अंतर यह है कि इस तप में १६ से रत्नावलि तप की एक परिपाटी पूर्ण होती है। एक दिन के उपवास तक आगे बढ़ा जाता है। इस तप की एक परिपाटी में १ वर्ष ३ मास २२ दिन लगते हैं, जिसमें ३८४ परिपाटी में १ वर्ष ६ मास १८ दिन तथा चार परिपाटियों में दिन तप के और ८८ दिन पारणा के होते हैं। इस तप की ६ वर्ष २ मास और १२ दिन लगते हैं। चारों आवृत्तियों में चार आवृत्तियां होती हैं। चारों आवृत्तियों का क्रम यही है, पारणे की विधि समान है। इस तप की आराधना महासती केवल पारणा में अंतर आता है। कृष्णा ने की थी। साधक पहली परिपाटी के पारणा में सर्व विकृति ले . भद्रोत्तर प्रतिमा-इसमें न्यूनतम पांच दिन का तप और सकता है, दूसरी परिपाटी के पारणा में विकति नहीं लेता. अधिकतम नौ दिन का तप होता है। इस तप में पांच लताएं तीसरी परिपाटी के पारणा में लेप लगने वाली वस्तु का वर्जन होती हैं, अतः प्रत्येक तप की पांच बार पुनरावृत्ति होती है। करता है. चौथी परिपाटी में पारणा में आचाम्ल करता है। इस एक आवृत्ति में २०० दिन लगते हैं-१७५ दिन तप और २५ प्रकार चार आवत्तियों में५ वर्ष २ मास और २८ दिन का समय दिन पारण। चार परिपाटियों में कुल दो वर्ष दो मास बीस लगता है। इस तप की आराधना महासती काली ने की थी। दिन लगते हैं। आर्या रामकृष्णा ने इस तप की आराधना की कनकावलि तप-यह तप रत्नावली तप के समान है. अंतर थी।द्रष्टव्य यंत्रकेवल यही है कि दाडिमपुष्पों में रत्नावली तप में बेले किए जाते हैं और इस तप में तेले किए जाते हैं। इस तप की एक परिपाटी में १ वर्ष ५ मास १२ दिन लगते हैं, जिनमें ४३४ दिन का तप और ८८ दिन पारणा के होते हैं। कुल मिलाकर चार परिपाटी में ५ वर्ष ९ मास १८ दिन लगते हैं। इस तप की आराधना महासती सुकाली ने की थी। ० मुक्तावलि तप-इसमें उपवास से लेकर सोलह दिन तक -जैन साधनापद्धति में तपोयोग, पृष्ठ ३४-३६ का तप किया जाता है किन्तु बीच-बीच में उपवास किया • लघु सिंहनिष्क्रीडित तप-यह तप सिंह की चाल से उपमित जाता है। यथा-उपवास बेला, उपवास तेला-इस क्रम से १६ है। सिंह दो कदम आगे बढ़ता है फिर एक कदम पीछे रखता तक पहुंच कर पुनः इसी क्रम से अवतरण होता है। इसकी है, फिर दो कदम आगे बढ़ता है। इसी प्रकार इस तप में भी चार परिपाटियां तीन वर्ष और दस मास से सम्पन्न होती हैं। पूर्व-पूर्व आचरित तप की पुन: आराधना करता हुआ साधक साध्वी पितृसेनकृष्णा ने इस तप की आराधना की थी। आगे बढ़ता है। इसमें न्यूनतम एक उपवास और अधिकतम नव ० आयंबिल वर्धमान तप-इसमें एक आयंबिल (आचाम्ल) उपवास का तप किया जाता है। उसका क्रम यह है से सौ की संख्या तक आरोहण होता है। प्रत्येक आयंबिल के उपवास के पारणा पर बेला, बेला के पारणा पर बाद उपवास किया जाता है। जैसे-आयंबिल फिर उपवास, उपवास। उसके पारणा पर तेला एवं तेला के पारणा पर दो आयंबिल फिर उपवास, तीन आयंबिल फिर उपवास बेला। इस प्रकार ९ दिन के उपवास तक चढ़ा जाता है और यावत् सौ आयंबिल फिर उपवास। इस प्रकार इसमें ५०५० उसी क्रम से पुनः उतरा जाता है । इस तप की एक परिपाटी आयंबिल और १०० उपवास किए जाते हैं। कुल समय १४ में ६ मास ७ दिन लगते हैं। चारों परिपाटियों में कुल २ वर्ष वर्ष ३ मास और २० दिन। आर्या महासेनकृष्णा ने इस तप २८ दिन लगते हैं। पारणा की विधि रत्नावलि तप की भांति की आराधना की थी।-अंतकृतदशा ८/२०-२२, ३०-३३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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