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प्रस्तुति
प्रथम और द्वितीय भाग के अनेक विषय सदृश हैं। यथा-अनशन, अनुयोग, आगम आदि किन्तु उनकी सामग्री भिन्न-भिन्न है। कुछ विषय मात्र शब्द-परिवर्तन के साथ अंकित हैं। यथा-अंतेवासी (शिष्य), गीतार्थ (बहुश्रुत), अंतकृत (मोक्ष), कल्पस्थिति (शासनभेद) आदि। इन विषयों में शब्दान्तर है, अर्थान्तर नहीं।
कुछ विषयों का परस्पर अन्तर्भाव कर दिया गया है। यथा अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य का आगम में, अनुप्रेक्षा का भावना में, अस्वाध्याय का स्वाध्याय में और अनाचार का आचार विषय में समावेश कर दिया गया है।
इस भाग के अनेक विषय पूर्णत: नवीन हैं, अर्थात् उस भाग में नहीं हैं। यथा-आज्ञा, आर्यक्षेत्र, उत्सारकल्प, चिकित्सा, छेदसूत्र, जिनकल्प, नौका, पर्युषणाकल्प, महास्थण्डिल, यथालन्दकल्प, व्यवहार, शय्यातर, साम्भोजिक, स्थविरकल्प, स्थापनाकुल, स्वप्न क्षादि। विषयकोश की कार्यपद्धति
__इसकी कार्यशैली प्रायः प्रथम भाग के सृदश ही है। सर्वप्रथम गृहीत विषय का भावात्मक शब्दार्थ बताकर उसमें विवेचित बिन्दुओं की सूची दी गई है। इससे पाठक को प्रथम दृष्टिपात में ही विषयगत महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की सूचना मिल जाती है। यथा-'अंतेवासी' मल विषय है। सची में अंतेवासी का अर्थ, उसके प्रकार, उसकी योग्यताअयोग्यता की परीक्षा, विनयप्रतिपत्ति आदि बिन्दु सूचित किए गए हैं। शब्द की अन्य शब्द से संबद्धता (cross reference)
जहां एक शब्द दूसरे शब्द से संबद्ध है, वहां उस शब्द का विवेचन उपयुक्त स्थान पर कर, दूसरे स्थान पर स्टार (*) चिह्न के साथ द्र (द्रष्टव्य) का प्रयोग कर उसे सूचित किया गया है। यथा'आचार' विषय की सूची में- * मुनि का आचार-व्यवहार (द्र सामाचारी) 'आराधना' विषय की सूची में-* प्रायोपगमन में द्विविध आराधना (द्र अनशन)
- बिन्दुओं के विवरण के पश्चात् भी यथावश्यक क्रोस रेफरेंस दिए गए हैं। यथाकर्म विषय में १७ वें बिन्दु के मेटर के पश्चात्-* पूर्व तप से देवायुबंध कैसे? (द्र देव)
कल्पस्थिति विषय के अंतिम बिन्दु-विवरण के पश्चात्-* पर्युषणा की सामाचारी (द्र पर्युषणाकल्प)
जो महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द अपने मूल विषय में व्याख्यायित हैं, उन शब्दों को स्वतन्त्र रूप से ग्रहण कर शेष जानकारी के लिए द्रष्टव्य (द्र) लिखकर उसकी सूचना दी गई है। यथा-अंतकृतभूमि (द्र अंतकृत), अनुप्रेक्षा (द्र भावना), निर्यापक (द्र अनशन), नैषेधिकी (द्र स्वाध्याय)।
अनेक विषयों के बिन्दुओं का संबंध आगम विषय कोश के प्रथम भाग के विषयों से जोड़ा गया है। यथाअनुयोग विषय के प्रथम बिन्दु विवरण के पश्चात्
* अनुयोगविधि द्र श्रीआको १ अनुयोग * श्रवण-विधि के सात अंग द्र श्रीआको १ शिक्षा . स्वप्न विषय के चतुर्थ बिन्दु विवरण के पश्चात्* महावीर के दस महास्वप्न द्र श्रीआको १ तीर्थंकर
स्वाध्याय विषय में-* अस्वाध्यायिक के भेदों का विवरण द्र श्रीआको १ अस्वाध्याय
इस संबद्धता सूचन से अनावश्यक पुनरावृत्ति को विराम मिल जाता है और यह बोध भी हो जाता है कि एक शब्द दूसरे शब्द के साथ किस प्रकार और क्यों सम्बद्ध है।
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