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आचार
आगम विषय कोश-२
टागोर
गुरु के आसन से अपना आसन नीचा करना, कुछ ० भक्ति-अभ्युत्थान, दण्डग्रहण, पादपोंछन और आसनप्रदान झुककर हाथ जोड़ना आदि विनय ज्ञानाचार है।
द्वारा सेवा करना। हरिकेश चाण्डाल ने राजा श्रेणिक के बगीचे के आम ० बहुमान–ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, भावना आदि गुणों से तोड़े। अभय ने बुद्धिमत्ता से हरिकेश चोर को पकड़ कर राजा अनुरंजित के प्रति प्रीतिप्रतिबंध। के सामने प्रस्तुत किया। पूछने पर उसने सचाई प्रकट की-मैंने बहुमान में भक्ति की और भक्ति में बहुमान की आम चुराए नहीं, बाहर खड़े-खड़े ही तोड़ लिए, क्योंकि मेरे भजना है। उसके चार विकल्प हैंपास दो विद्याएं हैं-अवनामिनी और उन्नामिनी।
एक भक्ति करता है, बहुमान नहीं। यथा वासुदेवपुत्र पालक। राजा ने कहा-यदि ये विद्याएं मुझे सिखा दोगे तो मैं ० एक बहुमान करता है, भक्ति नहीं। यथा सेदुक, शंब। तुम्हें मृत्युदंड से मुक्त कर दूंगा। हरिकेश ने स्वीकृति दी . एक भक्ति भी करता है, बहुमान भी करता है। यथा कि मैं आपको विद्याएं सिखा दूंगा। उसने दो-तीन बार गौतम ! मंत्रविद्या का उच्चारण किया किन्तु राजा उसे पकड़ नहीं एक न भक्ति करता है, न बहुमान । यथा-कालसौकरिक, सका। राजा ने पूछा-अभय ! ऐसा क्यों हो रहा है? अभय कपिला आदि। ने कहा-आप अविनय से ग्रहण कर रहे हैं। यह भूमि पर मरुक-पुलिंद दृष्टांत-गिरि-निर्झर के पास शिव की मूर्ति बैठा है, आप सिंहासन पर बैठे हैं। राजा ने उसे ऊंचा थी। एक ब्राह्मण और एक भील-दोनों उसकी अर्चना करते आसन दिया और स्वयं नीचे बैठा। राजा के तत्काल विद्या थे। ब्राह्मण उपलेप, स्नान आदि कर मूर्ति की अर्चा करता। सिद्ध हो गई।
भील मुंह में पानी भर कर लाता और उससे मूर्ति को नहलाता। ६. भक्ति-बहुमान ज्ञानाचार : मरुक-पलिंद दष्टांत एक दिन शिव को भील के साथ वार्तालाप करते देखा और ....भत्तीओ होति सेवा, बहमाणो भावपडिबंधो॥ उपालंभ दिया-तुम कैसे शिव हो, जो चण्डाल से बात करते बहुमाणे भत्ति भइता, भत्तीए वि माणो। हो। शिव ने कहा-यह मुझमें भावतः अनुरक्त है। इस सचाई
को प्रमाणित करने के लिए शिव ने एक दिन अपनी आंख गिरिणिज्झरसिवमरुओ, भत्तीए पुलिंदओ माणे॥
निकाल ली। अब्भुट्ठाणं डंडग्गह-पायपुंछणासणप्पदाण
ब्राह्मण आया और चक्षुविकल मूर्ति को देख रोने ग्गहणादीहिंसेवाजासा भत्ती भवति।णाण-दंसण-चरित्त
लगा, फिर शांत होकर बैठ गया। भील आया। उसने तव-भावणादिगुणरंजियस्स जो रसो पीतिपडिबंधो सो
देखा-आंख नहीं है। उसने तीर से अपनी आंख निकाल बहुमाणो भवति।भण्णति-एत्थ चउभंगो कायव्वो।...
कर शिव के लगा दी। पढमभंगे वासुदेवपुत्तो पालगो। बितियभंगे सेदुओ संबो
ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि उसकी शिव के वा, ततियभंगे गोयमो।चउत्थेकविला कालसोकरिआइr"
प्रति भक्ति है और भील का शिव के प्रति आंतरिक अनुराग "अन्नया बंभणेण आलावसद्दो सुओ।"उवालद्धो यसो सिवो-तुम एरिसो चेव पाणसिवो।तेण सिटुंएस मे भावओ अणुरत्तो।अण्णया अच्छि उक्खणिऊण अच्छइ
७. उपधान : आगाढ-अनागाढ श्रुत सिवो। बंभणो आगओ, रडिओ, उवसंतो। पुलिंदो दोग्गइ पडणुपधरणा, उवधाणं जत्थ जत्थ जं सुत्ते। आगओ। अच्छि णत्थि त्ति अप्पणो अच्छी भल्लीए ___ आगाढमणागाढे, गुरुलहु आणादि सगडपिता ॥ उक्खणिऊण सिवगस्स लाएति। बंभणो पतीतो। तस्स जत्थ उद्देसगे, जत्थ अज्झयणे, जत्थ सुयखंधे, बंभणस्स भत्ती, पुलिंदस्स बहुमाणो।।
जत्थ अंगे, कालुक्कालियअंगाणंगेसुणेया।जं उवहाणं (निभा १३, १४ चू) णिव्वीतितादि तं तत्थ तत्थ सुते कायव्वं"जंच उद्देसगादी
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