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परिशिष्ट २
दार्शनिक और तात्त्विक चर्चास्थल
७५७ विषय
संदर्भ ० विशोधि-अविशोधि कोटि
नि ३९२-४०२. वू ११६-११९ एषणा दोष
नि ५१४-६२८. वृ १४६-१७० ग्रासैषणा • संयोजना आदि पांच दोष
नि १ ० पांच दोषों का विवरण
नि ६२९-६७१ निक्षेप : पिण्ड शब्द के निक्षेप
नि ४-६६. वृ ३-२७ पृथ्वी आदि जीवनिकाय
० भेद-प्रभेद . . अचित्त पृथ्वी आदि का प्रयोजन नि ८-४७. वृ ७-२० प्रतिसेवन-प्रतिश्रवण-संवासन-अनुमोदन
नि १११-१२८. वृ ४५-५० (कृत-कारित-अनुमति) रोगचिकित्सा : शंख, सीपी, उदेहिका आदि द्वारा नि ४८-५२. व २०,२१ रोगों का शमन वस्त्रप्रक्षालन : विधि-निषेध
नि २३-३४. व ११-१६ सार्मिक के बारह प्रकार और उनका व्यवहार-बोध नि १३७-१५९. व ५२-६२
सन्दर्भ विवरणनि-पिण्डनियुक्ति गाया। वृ-मलयगिरीया वृत्ति पत्र ।
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