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परिशिष्ट २
प्रस्तुत परिशिष्ट में पांच आगमों-आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार के व्याख्या ग्रंथों (निर्यक्ति, चणि आदि) में विश्लेषित दार्शनिक और तात्त्विक चर्चास्थलों का ससंदर्भ संकेत है। कहींकहीं आचार संबंधी विमर्श भी संगृहीत है। विषयों का संकेत एक-एक ग्रंथ के अनुसार दिया गया है, इसलिए कुछेक विषयों की पुनरावृत्ति भी हुई है।
आवश्यक
विषय
संदर्भ
अक्षरधुत अनुयोग
अबद्धिकवाद अवधिज्ञान अव्यक्तवाद आत्मा और शरीर की भिन्नता आत्मा का अस्तित्व आदिम युग की सभ्यता-संस्कृति
आनुपूर्वी इंद्रिय और मन : प्राप्यकारी-अप्राप्यकारी इंद्रियज्ञान : संव्यवहार प्रत्यक्ष उपशमणि-क्षपकश्रेणि
चू १ पृ २५-२९. हा १६. म ४६ नि १३१-१३६. चू १ पृ८० ८५, १०८-१२०. हा ३४-३९, ५८-६७. म ९०-९६, १३०-१३८ चु १ पृ४१३,४१४. हा २१४,२१५. म ४१५-४१८ नि २५-६७. चू १ पृ ३७-६८. हा १८-३१. म ५०-७७ चू १ पृ ४२१. हा २१०,२११. म ४०६-४०८ हा १६४. म ३२४ हा १६१,१६२. म ३१४-३२० नि १९७-२०७. च १पृ५४-५७. हा ८५-८९. म १९३-२०१ म ९३-९५ नि ५. चू १ पृ १३,१४. हा ८,९. म २४-२९ चू १ पृ ७. म १३-१६ नि ११६-१२७. चू १ पृ१०४-१०७. हा ५४-५७. म १२३-१२८ चू १ पृ ५९५-६०१. हा ३०४-३११ म ५५७-५६८ नि १०५-१०७. चू १ पृ ९८-१०१. हा ४९-५१ म ११३-११६ नि १४१८-१५५४. चू २ पृ २४७-२७१ नि ७३७-७४८. च १पृ ३७२,३७३. हा १८५-१८७. म ३६४,३६५ हा १६३. म ३२०-३२३ नि ७७,७८. च १ पृ ७२-७७. हा ३३. म ८२-८६ चू २ पृ८७-९२. हा ८१-८३
करण करण : यथाप्रवृत्ति आदि
कायोत्सर्ग नियुक्ति कारण : निमित्त आदि
कर्म का अस्तित्व केवलज्ञान क्रिया : कायिकी आदि
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