________________
मीत की भाषा
७२१
स्वरमंडल
गीत।
उर-कंठ-सिर-विसुद्ध, च गिज्जते मउय-रिभियपदबद्धं । ६. निःश्वसितोच्छ्वसित सम- श्वास लेने और छोड़ने के समतालपदुक्खेवं, सत्तस्सरसीभरं गीयं ॥
क्रम का अतिक्रमण न करते (अनु ३०७७)
हुए गाया जाने वाला गीत। गीत के अन्य आठ गुण
७. संचारसम---सितार आदि के साथ गाया जाने वाला १. उरो विशुद्ध-जो स्वर वक्ष में विशाल होता है।
इस प्रकार गीत स्वर, तन्त्री आदि से संबंधित होकर २. कण्ठ विशुद्ध--जो स्वर कण्ठ में नहीं फटता।
सात प्रकार का हो जाता है। ३. शिरो विशुद्ध - जो स्वर सिर से उत्पन्न होकर भी ।
गेय पदों के गण नासिका से मिश्रित नहीं होता। ४. मृदु-जो राग कोमल स्वर से गाया जाता है।
निद्दोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं ।
उवणीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य ।। ५. रिभित-घोलना-बहुल आलाप के कारण खेल-सा
(अनु ३०४९) करते हुए स्वर।
गेय पदों के आठ गुण६. पदबद्ध-गेय पदों में निबद्ध रचना।
१. निर्दोष-बत्तीस दोष रहित होना। ७. समताल-पदोत्क्षेप-जिसमें ताल, झांझ आदि का
२. सारवत्-अर्थयुक्त होना। शब्द और नर्तक का पादनिक्षेप
३. हेतुयुक्त-हेतुयुक्त होना । -ये सब सम हों-एक दूसरे
४. अलंकृत-काव्य के अलंकारों से युक्त होना। से मिलते हों।
५. उपनीत-उपसंहार युक्त होना । ८. सप्तस्वर सीभर-जिसमें सातों स्वर अक्षर, पद ६. सोपचार-कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय का आदि से सम हों।
प्रतिपादन करना अथवा व्यंग्य या हंसी सप्तस्वर सीभर
युक्त होना। अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गहसमं च। ७. मित-पद और उसके अक्षरों से परिमित होना। निस्ससिउस्ससियसम, संचारसमं सरा सत्त ॥ ८. मधुर- शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की दष्टि से प्रिय
(अनु ३०७८)
होना। सप्तस्वर सीभर की व्याख्या
वृत्त के प्रकार १. अक्षरसम-जिसमें दीर्घ अक्षर आने पर गीत का समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं ।
स्वर दीर्घ हो, ह्रस्व अक्षर आने पर गीत तिणि वित्तप्पयाराइं, चउत्थं नोवलब्भई।। का स्वर ह्रस्व हो, प्लुत अक्षर आने पर
(अनु ३०७।१०) गीत का स्वर प्लुत हो और सानुनासिक वृत्त (छन्द) के तीन प्रकार हैंअक्षर आने पर गीत का स्वर सानुनासिक १. सम-जिसमें चरण और अक्षर सम हों, चार चरण हो, वह गीत ।
हों और उसमें लघु-गुरु अक्षर समान हों।। २. पदसम-स्वर के अनुकूल निर्मित गेय पद के अनुसार २. अर्द्धसम जिसमें चरण या अक्षरों में से कोई एक सम गाया जाने वाला गीत ।
हो-या तो चार चरण हो या विषम चरण होने ३. तालसम-तालवादन के साथ-साथ गाया जाने वाला पर भी उनमें लघ-गुरु अक्षर समान हों। गीत।
३. सर्व विषम-जिसमें चरण और अक्षर सर्वत्र विषम हों। ४. लयसम-वीणा आदि को आहत करने पर जो लय वृत्त का चौथा प्रकार उपलब्ध नहीं है।
उत्पन्न होती है उसके अनुसार गाया जाने गीत की भाषा वाला गीत।
सक्कया पायया चेव, भणितीओ होंति दोणि वि। ५. ग्रहसम-वीणा आदि के द्वारा जो स्वर पकड़, उसी सरमडलंमि गिज्जते, पसत्था इसिभासिया।। के अनुसार गाया जाने वाला गीत ।
(अनु ३०४११)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org