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सार्मिक
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साधु
सुष्ठु परिकमितायां यदि चित्रं क्रियते तदा शोभनं राजते, ७. लिंग सार्मिक-समान वेश वाले। एवं यदि सम्यक्त्वं सुष्ठ मिथ्यात्वा सुपरिसुद्धं कृत्वा व्रता- ८. दर्शन सार्मिक-दर्शन के तीन प्रकार हैं-क्षायिक न्यारोप्यन्ते ततस्तानि व्रतानि विशद्धिफलानि भवंति अतः दर्शन, क्षायोपशमिक दर्शन, औपशमिक दर्शन । सम्यक्त्वं सुपरिसुद्धं कर्तव्यम् । (आवचू २ पृ २७५)
इसके आधार पर दर्शन सामिक के भी तीन प्रकार मिथ्यात्व से प्रतिक्षण सघन कर्मबंध होता है, जिसका
हैं, जैसे-क्षायिक दर्शन वाला क्षायिक दर्शनी का परिणाम है-जन्म, जरा और मृत्यू वाले संसार में परि- सार्मिक होता है। भ्रमण | मिथ्यात्व से प्रतिक्रमण कर सम्यक्त्व में स्थित ९. ज्ञान सार्मिक–समान ज्ञान वाले। ज्ञान के पांच होने का परिणाम है-देवत्व, मनुष्यत्व की प्राप्ति और प्रकारों के आधार पर इसके पांच प्रकार हैं, जैसेअंत में मोक्ष ।
मतिज्ञान वाला मतिज्ञानी का सार्मिक है। जैसे परिकमित स्वच्छ भित्ति पर आलेखित चित्र १०. चारित्र सार्मिक-समान चारित्र वाले। चारित्र सुन्दर होता है, वैसे ही सम्यक्त्व के विशुद्ध होने पर स्वी
के पांच प्रकारों के आधार पर इसके पांच प्रकार कृत व्रतों की परिपालना परिशुद्ध परिणाम वाली होती है। हैं--जैसे-सामायिक चारित्र बाला सामायिक सम्यक् श्रुत-सम्यग्दृष्टि का श्रुत । (द्र. श्रुतज्ञान)
चारित्री का सार्मिक है।।
११. अभिग्रह सार्मिक-द्रव्याभिग्रह, क्षेत्राभिग्रह, सयोगीकेवली-केवली की योग-मन, वचन व '
कालाभिग्रह तथा भावाभिग्रह के आधार पर इसके शरीर की प्रवृत्त्यात्मक अवस्था। चार प्रकार हैं। द्रव्याभिग्रही का द्रव्याभिग्रही
(द्र. गुणस्थान) सार्मिक है। सार्मिक-ज्ञान, आचरण आदि की दृष्टि से १२. भावना सार्मिक-अनित्य, अशरण आदि बारह समान भूमिका वाला।
भावनाओं के आधार पर बारह प्रकार के साधर्मिक नामं ठवणा दविए खेत्ते काले अपवयणे लिंगे । होते हैं। दसण नाण चरित्ते अभिग्गहे भावणाओ य ।।
साधु-मुनि, श्रमण। नामंमि सरिसनामो ठवणाए कट्रकम्ममाईया । दव्वंमि जो उ भविओ साहमि सरीरगं चेव ॥ निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहंति साहुणो । खेत्ते समाणदेसी कालंमि समाणकालसंभूओ।
(आवनि १००२) पवयणि संघेगयरी लिंगे रयहरणमुहपोत्ती ।। जो निर्वाण-साधक योगों-ज्ञान, दर्शन, चारित्र को दसण नाणे चरणे तिग पण पण तिविह होइ उ चरित्ते। साधते हैं, वे साधु हैं। दव्वाइओ अभिग्गह अह भावणमो अणिच्चाई। महुकारसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया ।
(पिनि १३८-१४१) नाणापिंडरया दंता, तेण वच्चंति साहणो॥ बारह प्रकार के सार्मिक
(द ११५) १. नाम सार्मिक-समान नाम वाला साधु या जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनिश्रित होते हैंगृहस्थ ।
किसी एक पर आश्रित नहीं होते, नाना पिंड में रत हैं २. स्थापना सार्मिक-जीवित या मृत साधु की काष्ठ, और जो दांत हैं, वे अपने इन्ही गुणों से साधु कहलाते हैं। पाषाण आदि की प्रतिमा-यह अन्य जीवित मुनियों सम्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता। के लिए स्थापना सार्मिक है। इसके दो प्रकार हैं तं सव्वनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहू ॥ -सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना ।
(आवनि १०५५) ३. द्रव्य सार्मिक--भविष्य में होने वाला साधु ।
सर्व नयों की बहविध वक्तव्यता को सुनकर जो सर्व४. क्षेत्र साधर्मिक-समान क्षेत्र में उत्पन्न ।
नय विशुद्ध चरणगुणों में स्थित होता है वह साधु है। ५. काल सार्मिक -समान काल में उत्पन्न ।
साधु की जीवनचर्या
(द्र. श्रमण) ६. प्रवचन सार्मिक-चतुर्विध संघ का कोई सदस्य । साधु मंगल है।
(द्र. नमस्कार)
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