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संख्या
६५०
अनंत के प्रकार
पर जो संख्या प्राप्त होती है, उससे एक कम उत्कृष्ट असंख्यात मान वाली दस राशियां जोड़कर पुन: तीन बार युक्त-असंख्येय होती है। अथवा एक कम जघन्य वर्ग किया जाता है। लब्धराशि में से एक घटाने पर
असंख्येय-असंख्येय उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय होता है। उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात का मान प्राप्त होता है। जघन्य असंख्येय-असंख्येय- जघन्य युक्त-असंख्येय को जोड़ी जाने वाली राशियां ये हैं
आवलिका से गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त- १. लोकाकाश के प्रदेश असंख्येय को जघन्य-युक्त असंख्येय से गुणित करने २. धर्मास्तिकाय के प्रदेश पर जो संख्या प्राप्त होती है, वह जघन्य असंख्येय
३. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश असंख्येय होती है। अथवा उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय में
४. एक जीव के प्रदेश एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य असंख्येय-असंख्येय
५. निगोद जीवों के शरीर होता है।
६. प्रत्येकशरीरी जीव अजघन्य-अनुत्कृष्ट असंख्येय-असंख्येय-जघन्य असंख्येय
७. स्थिति बन्ध के कारणभूत अध्यवसाय स्थान असंख्येय से आगे उत्कृष्ट असंख्येय-असंख्येय से पूर्व
८. अनुभाग बन्ध के कारणभूत अध्यवसाय स्थान बीच की सभी संख्याएं अजधन्य-अनुत्कृष्ट असंख्येय
९. मन-वचन-काय योग के अविभाज्य विभाग असंख्येय होती हैं।
१०. उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल के समय । उत्कष्ट असंख्येय-असंख्येय-जघन्य असंख्येय-असंख्येय को ।
५. अनंत के प्रकार जघन्य असंख्येय-असंख्येय से गुणित करने पर जो राशि प्राप्त होती है, उससे एक कम उत्कृष्ट अणंतए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा---परित्ताणंतए असंख्येय-असंख्येय होता है। अथवा एक कम जघन्य जुत्ताणतए अणंताणतए।
परीत-अनन्त उत्कृष्ट असंख्येय-असंख्येय होता है। परित्ताणतए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--जहण्णए उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात
उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए ।
जुत्ताणतए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—जहण्णए अन्ने पूण आयरिया उक्कोसगं असंखेज्जअसंखेज्जग उक्कोसए अजहण्ण मणक्कोसए। इमेन प्रकारेण पन्नति–जहण्णगअसंखेज्जासंखेज्जगरासिस्स अणंताणतए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जहण्णए वग्गो कज्जति, तस्स वग्गरासिस्स पुणो वग्गो कज्जति,
(अनु ५८०-५८३) तस्स वग्गस्स पुणो वग्गो कज्जति, एवं तिणि वारा अनन्त के तीन प्रकार हैं-१. परीत-अनन्त वग्गियसंवग्गिते इमे दस असंखयपक्खेवया पक्खि- २. युक्त-अनन्त ३. अनन्त-अनन्त । प्पिज्जति
परीत-अनन्त और युक्त-अनन्त के तीन-तीन भेद हैंलोगागासपदेसा धम्माधम्मेगजीवदेसा य ।
जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य अनुत्कृष्ट ।
अनन्त-अनन्त के दो भेद हैंदवट्टिया णियोया पत्तेया चेव बोद्धव्वा ।।
जघन्य और अजघन्य-अनुत्कृष्ट । ठितिबंधज्झवसाणा अणुभागा योगच्छेदपलिभागा।
'जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयअसंखेज्जादोण्हवि समाण समया असंखये खेवया दस त ॥
संखेज्जमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णन्भासो पडिपूण्णो (अनुच पृ८३)
जहण्णयं परित्ताणतयं होइ। अनुयोगद्वार सूत्र ५९५ में उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात
अहवा उक्कोसए असंखेज्जासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं की दो परिभाषाएं की गई हैं। कुछ आचार्य इसकी।
जहण्णयं परित्ताणतयं होइ॥ तीसरी परिभाषा भी करते हैं ----
तेण पर अजहण्ण मणक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोजघन्य असंख्यात-असंख्यात का वर्ग करने से जो सयं परित्ताणतयं न पावइ । राशि प्राप्त हो, उसका पुन: वर्ग किया जाता है। लब्ध जहण्णयपरित्ताणतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णभासो राशि का वर्ग करने से जो राशि प्राप्त हो उसमें निम्न रूवूणो उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ।
जनन्त ।
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