________________
कर्मादान
६२५
श्रावक
स्वदारसंतोष के पांच अतिचार हैं
इन तीनों दिशाओं में जाने का परिमाण करता है। १. अपरिगृहीतागमन- वेश्यागमन करना।
दिग्वत के पांच अतिचार हैं२. इत्वरिकपरिग्रहीतागमन-परस्त्री गमन करना । १. ऊर्वदिशा के परिमाण का अतिक्रमण ।
३. अनंगक्रीडा-अप्राकृतिक मैथुन सेवन करना । २. अधोदिशा के परिमाण का अतिक्रमण । - ४. परविवाहकरण- व्यावसायिक वत्ति से विवाह संबंध
३. तिर्यदिशा के परिमाण का अतिक्रमण । ___जोड़ना।
४. एक दिशा का परिमाण घटाकर, दूसरी दिशा के ५. कामभोगतीवाभिलाषा-कामभोग में तीव्र इच्छा
परिमाण का विस्तार करना । करना।
५. दिशा के परिमाण की विस्मृति । ५. इच्छापरिमाण
७. उपभोग-परिभोग परिमाण ____ अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिमाणं उवसंपज्जइ । से परिग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं
उवभोगपरिभोगवए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-- जहा--सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य । इच्छापरि
दारि. भोअणओ कम्मओ अ। भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच माणस्स समणोवासएणं इमे पंच अध्यारा जाणियब्वा. तं अइयारा जाणियव्वा, तं जहा–सचित्ताहारे सचित्तपडिजहा-धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थपमाणाइक्कमे बद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया हिरन्नसुवण्णपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे दुप्पउलिओसहिभक्खणया। (आव परि पृ २२) कुवियपमाणाइक्कमे।
(आव परि पृ २२)
का उपभोग-परिभोग दो प्रकार का है-१. भोजन की श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का प्रत्याख्यान
अपेक्षा से २. कर्म की अपेक्षा से। भोजन की अपेक्षा से करता है, इच्छाओं का परिमाण करता है। परिग्रह के दो इस व्रत के पांच अतिचार है। प्रकार हैं-सचित्त परिग्रह, अचित्त परिग्रह ।
१. प्रत्याख्यान के उपरांत सचित्त वस्तु का आहार
करना। इच्छापरिमाणवत के पांच अतिचार है
२. प्रत्याख्यान के उपरांत सचित्तप्रतिबद्ध वस्तु का १. धनधान्यप्रमाणातिरेक-धन और धान्य के प्रमाण
आहार करना। __ का अतिक्रमण करना।
३ अपक्व धान्य का आहार करना । २. क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिरेक-खेत और घर के प्रमाण का
४. असार धान्य का आहार करना । अतिक्रमण करना।
५. अर्ध पक्व धान्य का आहार करना । ३. हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिरेक-हिरण्य और सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रमण करना ।
कर्मादान ४. द्विपदचतुष्पदप्रमाणातिरेक नौकर, पक्षी, पशु आदि असावद्यजीवनोपायाभावेपि तेषामत्कटज्ञानावरणीयादिके प्रमाण का अतिक्रमण करना।
कर्महेतुत्वादादानानि कर्मादानानि ज्ञातव्यानि न समाचरि५. कूप्यप्रमाणातिरेक--गृहसामग्री के प्रमाण का अति- तव्यानि ।
(आवहाव २ पृ २२६) क्रमण करना।
कम्मओ णं समणोवासएणं इमाइं पन्नरस कम्मा६. दिग्वत
दाणाई जाणियब्वाई, तं जहा-इंगालकम्मे वणकम्मे दिसिवए तिविहे पण्णते-उड्ढदिसिवए अहोदिसिवए ।
साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खतिरियदिसिवए । दिसिवयस्स समणोवासएणं इमे पंच वाणिज्जे रसवाणिज्जे केसवाणिज्जे विसवाणिज्जे जंतपीलणअइयारा जाणियव्वा, तं जहा-उडढदिसिपमाणाडक्कमे कम्मे निल्लंछणकम्मे दवग्गिदावणया सरदहतलायअहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइक्कमे खित्त- सोसणया असईपोसणया। (आव परि पृ २२) वुड्ढी सइअंतरद्धा ।
(आव परि पृ २२) आजीविका के निरवद्य साधन न होने पर भी दिग्वत के तीन प्रकार हैं
अंगारकर्म आदि कर्मादान (व्यवसाय) करणीय नहीं हैं। ऊर्व दिग्वत, अधो दिग्वत, तिर्यक दिग्वत । श्रावक इनसे ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का उत्कृष्ट बंध होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org