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वर्गणा
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कुइयण्णगाहावइस्स अणेगा गोउलाण वग्गा । तेसि पुण वग्गाण एक्केक्को वग्गो पिहप्पिहं रक्खगाण दिण्णो । ततो तेसि एगभूमीए चरंताणं अण्णवग्गमिलणेणं अतिबहुलत्तणेण य गोणीणं ते गोवाला असंजाणंता मम एसा ण एसा तुब्भंति परोप्परओ भंडणं कुव्वंति । तेसि च भंडण मारणं ताओ गोणीओ सीहवग्घाईहि खज्जंति, grafaeमेसु य पडियाओ भज्जंति मरंति य । ततो तेण कुण एवं दो णाऊण तेसि गोवालाणं असंमोहणिमित्तं एगो कालियाणं वग्गो कओ, एगो नीलियाणं, एगो लोहियाणं, एगी सुक्किलियाणं, एगो सबलाणं वग्गो कतो | एवं सिंगा कि विसेसेऽवि काउं पिहप्पिहं समप्पिया । पच्छा ते गोवा ण संमुच्छंति ण वा कलहिंति । एवं आयरिओ सिस्साणुग्गहणिमित्तं इमाओ चउव्विहाओ वग्गणाओ दंसेति । (आवचू १ पृ ४४,४५) विकर्ण ( कुचिकर्ण) नामक गृहपति के पास अनेक गोकुल थे । उसने गोकुल को अनेक वर्गों में विभक्त कर प्रत्येक वर्ग के संरक्षण के लिए पृथक्-पृथक् ग्वालों की नियुक्ति की । वे सभी अपने-अपने गोवर्ग को एक ही चरागाह में चराने के लिए ले जाते । विभिन्न गोवर्ग की गाएं परस्पर मिल जातीं। गायों की संख्या अधिक होने के कारण वे चरवाहे 'यह गाय मेरी है, तुम्हारी नहीं है, ' इस प्रकार आपस में कलह करने लग जाते। उनके इस कलह के कारण गायों के संरक्षण में प्रमाद होता और उस प्रमाद के कारण सिंह, व्याघ्र आदि हिंस्र पशु गायों को मार डालते अथवा उचित संरक्षण के अभाव में गायें विषम दुर्गों में, खाइयों में गिरकर अंगविहीन हो जातीं या मर जातीं । कुविकर्ण गृहपति को जब यह ज्ञात हुआ, तब उसने उन चरवाहों की असंमूढ़ता के लिए रंगों के आधार पर गायों को बांटकर, भिन्न-भिन्न रंग की गायों के अलग अलग गोवर्ग कर दिये । काली, नीली, लाल, श्वेत और चितकबरी गायें -इस प्रकार समूचे गोकुल को उसने पांच वर्गों में विभक्त कर दिया । उसने गायों के सींगों की आकृतियों को चिह्नित कर चरवाहों को पृथक्पृथक् सौंप दिया। अब वे चरवाहे अपनी गायों को पहचानने में संमूढ नहीं होते, कलह नहीं करते ।
इसी प्रकार आचार्य भी शिष्यों पर अनुग्रह कर पुद्गलास्तिकाय की सही पहचान कराने के लिए पुद्गल वर्गणाओं के द्रव्यवर्गणा आदि चार प्रकार निर्दिष्ट करते
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३. वर्गणा के प्रकार
वर्गणाः सामान्यतश्चतुर्विधा भवन्ति, तद्यथा-- द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतश्च । ( आवमवृप ५७ ) सामान्य रूप से वर्गणा के चार प्रकार हैं - द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः और भावतः ।
४. द्रव्यवर्गणा
एगा परमाणू गुत्तरवढिया तओ कमसो । संखेज्जपएसाणं, संखेज्जा वग्गणा होंति ॥ संखाईआसंखाइयप्पएससमाणाणं ।
तत्तो तत्तो पुणो
द्रव्यवर्गणा
अतातपसाण गंतूणं ॥ ( विभा ६३३, ६३४) समस्त लोकाकाश के प्रदेशों पर अवस्थित एकाकी परमाणुओं की एक वर्गणा है । द्विप्रदेशी स्कन्धों की एक वर्गणा है । त्रिप्रदेशी स्कन्धों की एक वर्गणा है । इस प्रकार क्रमशः एक-एक परमाणु की एकोत्तर वृद्धि होने पर संख्यात प्रदेशी स्कन्धों की संख्येय वर्गणाएं हैं। इनमें एक-एक परमाणु की एकोत्तर वृद्धि होने पर असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों की असंख्येय और अनंतप्रदेशी स्कन्धों की अनंत वर्गणाएं हैं ।
द्रव्यवर्गणा के प्रकार
ओरालविवाहा रते अभासाणपाणमणकम्मे अह दव्ववग्गणाणं, कमो
oraणा के आठ प्रकार हैं१. औदारिक वर्गणा २. वैक्रिय वर्गणा
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( आवनि ३९ )
५. भाषा वर्गणा ६. श्वासोच्छ्वास वर्गणा ७. मनोवर्गणा ८. कार्मण वर्गणा ।
३. आहारक वर्गणा ४. तेजस वर्गणा
औदारिक शरीर वर्गणा
तापदेसिया खंधा एक्कुत्तरियाए परिवुड्ढीए अणते वारे गुणिया ताहे ओरालियसरीरस्स एगा गहणपाउरगा दव्ववग्गणा भवति तावरूविमेत्ते हि खंधेहि ओरालियसरीरं णिप्फज्जति ।
( आवचू १ पृ ४६ ) अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्धों में एक-एक प्रदेश की वृद्धि होने पर और उन्हें अनन्त बार गुणित करने पर औदारिक शरीर के ग्रहणप्रायोग्य एक द्रव्यवर्गणा होती है । मात्र उतने स्कन्धों से ओदारिक शरीर निष्पन्न होता है ।
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