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लेश्या का वर्ण
लेश्या
योग
(लेश्या या भावधारा की संरचना में तीन तत्त्वों का प्रकृति में सहयोग है। जाति-स्मृति, अवधि, मन:योग है-१. शरीर २. वीर्य-लब्धि ३. कषाय का उदय पर्याय और केवल-इन सब ज्ञानों की उत्पत्ति में शुभ या विलय । लेश्या के सहकारी द्रव्य (द्रव्य लेश्या) योग- अध्यवसाय, शुभ परिणाम और लेश्या की विशुद्धि की वर्गणा में समाविष्ट होते हैं। आठ वर्गणाओं में लेश्याओं
अनिवार्यता मानी गई है। इससे भी प्रतीत होता है कि की कोई स्वतंत्र वर्गणा नहीं है । वह शरीर-योग-वर्गणा अनुभाग की तरतमता में लेश्या एक हेतु है।) की एक अवान्तर वर्गणा है । भाव लेश्या कषाय के उदय
(देखें-भगवई १११०२ का भाष्य) या विलय से सम्बद्ध है। वीर्य लब्धि का भावधारा की योग और लेश्या में अन्तर
लेश्या १. आत्मिक स्वरूप मन, वचन शरीर की प्रवृत्ति
जीव का परिणाम (भावधारा) २. पौद्गलिक स्वरूप औदारिक, वैक्रिय, आहारक, कार्मण वर्गणा, तैजस वर्गणा
भाषा वर्गणा, मनोवर्गणा ३. प्रवर्तक शक्ति वीर्य-लब्धि
वीर्य-लब्धि ४. घटक शक्ति शरीर नामकर्म
शरीर नामकर्म ५. कार्य १. सभी वर्गणाओं का ग्रहण
१. भावों का निष्पादन २. गति
२. आभामंडल या
वर्ण का हेतु ३. क्रिया ४. वाणी
५. चितन ६. कर्म-बन्ध प्रकृति, प्रदेश बन्ध का हेतु
अनुभाग बन्ध की
तरतमता का हेतु ३. लेण्या के प्रकार
वाली हैं। किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य ।
तेजस्, पद्म और शुक्ल-ये तीनों धर्मलेश्याएं सुक्कलेसा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कम ॥
विशुद्ध, प्रशस्त, असंक्लिष्ट और सुगति में ले जाने वाली
(उ ३४/३)
लेश्या के छह प्रकार हैं
विशुद्ध लेश्या १. कृष्ण ४. तेजस्
द्विविधा विशुद्धलेश्या"..... कषायोपशमजा कषाय२. नील ५. पद्म
क्षयजा च । एकान्तविशुद्धि चाऽऽश्रित्येवमभिधानम् । ३. कापोत ६. शुक्ल ।
अन्यथा हि क्षायोपशमिक्यपि शुक्ला तेजःपद्म च विशुद्धअप्रशस्त-प्रशस्त लेश्या
लेश्ये संभवत एवेति
(उशावृ प ६५१) किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ।
विशुद्ध लेश्या के दो प्रकार हैं-१. उपशमजाएयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गई उववज्जई बहुसो ।
कषाय के उपशम से होने वाली, २. क्षयजा-कषाय के
क्षय से होने वाली। यह कथन एकान्त विशुद्धि की अपेक्षा तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई बहसो॥
से है। अन्यथा क्षायोपशमिकी शुक्ल लेश्या, तेजस् लेश्या तओ लेसाओ अविसद्धाओ तओ विसदाओ। तओ और पद्म लेश्या विशुद्ध लेश्या ही है। पसत्थाओ तओ अपसत्थाओ। तओ संकिलिट्राओ तओ ४. लेश्याओं का वर्ण असंकिलिट्ठाओ। तओ दुग्गतिगामियाओ तओ सुगतिगा- जीमूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा । मियाओ।
(उ ३४/५६, ५७ शाव प ६६१) खंजणंजणनयननिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ।। कृष्ण, नील और कापोत-ये तीनों अधर्मलेश्याएं नीलाऽसोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा । अविशुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिष्ट और दुर्गति में ले जाने बेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ।'
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