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अंगबाह्य
आचारचूला
णामियाए-चउव्विहाए बुद्धीए उववेया, तस्स तत्तियाई दशवकालिक चला पइण्णगसहस्साइं । पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव ।। दो अज्झयणा चूलिय विसीययंते थिरीकरणमेगं ।
(नन्दी ७९) बितिए विवित्तचरिया असीयणगुणातिरेगफला ॥ प्रथम अर्हत् ऋषभ के चौरासी हजार प्रकीर्णक थे।
(दनि १२) मध्यम बाईस तीर्थंकरों के संख्यात हजार प्रकीर्णक थे। सेसत्थसंगहत्थं मउडमणित्थाणीयाणि दो चूलज्झयअर्हत् महावीर के चौदह हजार प्रकीर्णक थे।
णाणि ।
(दअचू प ६) अथवा जिनके जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनयिकी, दशवकालिक सूत्र में दो चूलाएं हैं--- कामिकी और पारिणामिकी बुद्धि से सम्पन्न होते हैं,
रतिवाक्या-विषादग्रस्त अस्थिर साधु को संयम में उनके उतने हजार प्रकीर्णक होते हैं और प्रत्येकबुद्ध भी पुन:स्थिर करने का निर्देशक अध्ययन । उतने ही होते हैं।
विविक्तचर्या--संयम में स्थिर रहने से समुत्पन्न
गुणों का प्रतिपादक अध्ययन । अपरिमाणा पइण्णगा पइण्णगसामिअपरिमाणत्तणतो,
____ ग्रंथ के अवशिष्ट अर्थ का संग्रह करने के लिए चूला किंच इह सुत्ते पत्तेयबुद्धप्पणीतं पइण्णगं भाणितव्वं ।
का वही स्थान है, जो स्थान मुकुट में मणि का है। कम्हा? जम्हा पइण्णगपरिमाणेण चेव पत्तेयबुद्धपरिमाणं
एवं च वृद्धवाद: कयाचिदार्ययाऽसहिष्णु: कूरकीरइ।
(नन्दीचू पृ ६१)
गडुकप्रायः संयतश्चातुर्मासिकादावुपवासं कारितः, स प्रकीर्णककार अपरिमित हैं, इसलिए प्रकीर्णक तदाराधनया मृत एव । ऋषिघातिकाऽहमित्युद्विग्ना सा अपरिमित हैं । किन्तु इस सूत्र में प्रकीर्णकों के परिमाण तीर्थकरं पृच्छामीति गुणावजितदेवतया नीता श्रीसीमन्धरके आधार पर प्रत्येकबुद्धों की संख्या का नियमन किया स्वामिसमीपं, पृष्टो भगवान । अदुष्टचित्ताऽघातिकेत्यगया है, अतः यहां प्रत्येकबुद्धों द्वारा प्रणीत अध्ययन ही भिधाय भगवतेमां चूडां ग्रा हितेति । (दहावृ प २७९) प्रकीर्णक के रूप में ग्राह्य हैं।
भूख को सहने में असमर्थ मुनि ने किसी साध्वी की पइण्णगझयणा वि सव्वे कालिय-उक्कालिया... प्रेरणा से उपवास किया। उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई। अरहंतमग्गउवदि8 जं सुतमणुसरित्ता किंचि णिज्जूते
ज मतमणसरिता किंचि णिज्जते 'मैं ऋषि-घातिका है'-इस चिन्तन से वह साध्वी ते सव्वे पइणग्गा । अहवा सुतमणुस्सरतो अप्पणो वयण-... उद्विग्न हो गई। समाधान पाने के लिए देव-सहयोग से कोसल्लेण जं धम्मदेसणादिसु भासते तं सव्वं पइण्णगं। वह अर्हत सीमंधर के समवसरण में पहुंची। अर्हत ने
(नन्दीचू पृ६०) कहा--तुम्हारा चित्त शुद्ध है, तुम मारने वाली नहीं हो प्रकीर्णक कालिकश्रुत और उत्कालिक श्रुत--दोनों -यह कहते हुए अर्हत् ने उसे यह चूला अध्ययन (दशवप्रकार के होते हैं।
कालिक सूत्र की दूसरी चूलिका-विवित्तचरिया)
प्रदान किया। अर्हत् के द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण कर श्रमण जिनका नि!हण करते हैं, वे प्रकीर्णक आचारचूला कहलाते हैं। अथवा श्रुत का अनुसरण कर अपने वाणी- सिरिओ पव्वइतो, अब्भत्तट्टेणं कालगतो, महाविदेहे कौशल से धर्मोपदेश आदि में जिस विषय का प्रतिपादन
य पूच्छिका गता अज्जा, दोवि अज्झयणाणि भावणा करते हैं, वह प्रकीर्णक है।
विमोत्ती य आणिताणि । (आव २ पृ १८८)
श्रीयक मुनि का अनशन में स्वर्गवास हो गया। ६. चूला
उसकी बहिन साध्वी यक्षा ने उस मृत्यु में अपने को पव्वभणितो अभणिओ य समासतो चलाए अर्थों निमित्त माना और समाधान लेने हेतु वह महाविदेह में भण्यते।
(नन्दीचू पृ ५९) अर्हत् सीमंधर के समवसरण में पहुंची। वहां से वह मूलग्रन्थ में प्रतिपादित-अप्रतिपादित अर्थ का संक्षेप भावना और विमुक्ति (आयारचूला १५,१६)-ये दो में निरूपण करने वाली ग्रन्थपद्धति का नाम है चूला। अध्ययन लेकर लौटी।
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