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प्रतिसेवना
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प्रत्याख्यान
पौष्टिक आहार का वर्जन करने वाला, दृढ़ चारित्र प्रत्याख्यान-आस्रव का निरोध । वाला, एकान्त में रत, अन्तःकरण से मोक्ष साधना में [
१.प्रत्याख्यान का अर्थ लगा हुआ, ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों की |
* प्रत्याख्यान : आवश्यक सूत्र का छठा अध्ययन गांट को तोड़ देता है।
और उसका प्रतिपाद्य (5. आवश्यक) प्रतिसेवना-दोष का आचरण ।
२. प्रत्याख्यान के प्रकार पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणा य खलणा य ।
३. दस प्रत्याख्यान उवघाओ य असोही सबलीकरणं च एगट्ठा ।।
(१) नमस्कार सहिता (ओनि ७८८)
(२) पौरुषी * पौरुषी का प्रमाण
(द्र. कालविज्ञान) प्रतिसेवना, मलिनता, भंग, विराधना, स्खलना,
(३) पुरिमा, उपघात, अशोधि, शबलीकरण-ये सब एकार्थक हैं।
(४) एकाशन पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य ।
(५) एकस्थान मूलगुणे छट्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई ।। (६) निविकृति (निविगय) हिंसालियचोरिक्के मेहुन्नपरिग्गहे य निसिभत्ते । * विकृति के प्रकार
(द्र. रसपरित्याग) इय छट्ठाणा मूले उग्गमदोसा य इयरंमि ।। (७) आयंबिल
(ओनि ७८६,७८७) (८) उपवास प्रतिसेवना के दो प्रकार हैं
० पारिष्ठापनिका आकार
• देय परिष्ठापनीय आहार १. मूलगुण प्रतिसेवना-हिंसा, असत्य, चौर्य,
(९) दिवसचरिम मैथुन, परिग्रह और रात्रिभक्त से सम्बन्धित
(१०) अभिग्रह प्रतिसेवना।
० महत्तर आकार २. उत्तरगुण प्रतिसेवना-उद्गम-उत्पाद-एषणा ४. अनागत आदि बस प्रत्याख्यान के दोष तथा समिति, भावना, तप आदि से
५. कोटिसहित प्रत्याख्यान संबंधित प्रतिसेवना।
६. नियंत्रित प्रत्याख्यान जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। ७. अद्धा प्रत्याख्यान मूलगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणहि ॥ ८. प्रत्याख्यान की विशोधि के हेतु जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया । ९. प्रत्याख्यान की अशोधि के हेतु उत्तरगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणहि ।। १०. प्रत्याख्याता""चार विकल्प
(ओनि ७७९,७८०)
११. प्रत्याख्येय जहां बहुत से साधर्मिक साधु चंचल चित्त वाले,
१२. प्रत्याख्यान पालन विधि मूलगुणप्रतिसेवी अथवा उत्तरगुणप्रतिसेवी होते हैं, वह
१३. प्रत्याख्यान के परिणाम
• आहार-प्रत्याख्यान के परिणाम अनायतन है।
० सहयोग-प्रत्याख्यान के परिणाम (प्रतिसेवना के दो प्रकार हैं-दपिका और
• सद्भाव-प्रत्याख्यान के परिणाम कल्पिका। अनाभोग, प्रमाद आदि भी इसके भेद हैं।
* उपधि-प्रत्याख्यान के परिणाम (द्र. उपधि) देखें ठाणं १०।६९ का टिप्पण)।
कषाय-प्रत्याख्यान के परिणाम (द्र. कषाय) प्रत्यक्ष-बिना किसी माध्यम के होने वाला साक्षात् * भक्त-प्रत्याख्यान (अनशन) के परिणाम ज्ञान। (द्र. ज्ञान)
(द्र. अनशन)
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