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अंगप्रविष्ट
अनुत्तरोपपातिकदशा
भूतस्कन्ध, उनतीस अध्ययन, उनतीस उद्देशनकाल, उनतीस सूत्रपदों का परिमाण ग्यारह लाख बावन हजार समुद्देशनकाल तथा पदप्रमाण से संख्येय हजार पद हैं। है। सूत्रालापकपदों का परिमाण संख्येय हजार है।
उवसग्गपदं णिवातपदं णामियपदं अक्खातपदं मिस्स- ENT पदं च, एते पदे अहिकिच्च पंचलक्खा छावत्तरि च
.."अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं, उज्जाणाई, सहस्सा पदग्गेणं भवंति। अहवा सुत्तालावयपदग्गेणं
चेइयाइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मासंखेज्जाइं पदसहस्साई भवंति। (नन्दीचू पृ ६६) ज्ञातधर्मकथा का पदपरिमाण संख्येय हजार पद
पियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया
इढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआया, उल्लिखित है। यह परिमाण सूत्रालापकरूप पदों की अपेक्षा से है। उपसर्ग, निपात, नाम, आख्यात और
सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खा
णाई, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ य आघमिश्र - इन पदों की अपेक्षा से इसका परिमाण पांच
विज्जति ।" लाख छिहत्तर हजार है ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा, उपासकदशा
अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पय.."उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराइं,
सहस्साइं पयग्गेणं ... ।
(नन्दी ८८) उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो,
अन्तकृतदशा में अन्तकृत जीवों के नगर, उद्यान, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-पर
चैत्य, वनषंड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, लोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, परिआया, सुय
धर्मकथा, ऐहलौकिक और पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, परिग्गहा, तवोवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्च
भोगपरित्याग, प्रव्रज्या, दीक्षा-पर्याय का काल, श्रुत-ग्रहण, क्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा,
तप-उपधान, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादोपगमन, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, देवलोग
अंतक्रिया का आख्यान किया गया है। गमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति ।।
यह अंग की दृष्टि से आठवां अंग है। इसमें एक ___ से णं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झ-
श्रुतस्कन्ध, आठ वर्ग, आठ उद्देशनकाल, आठ समूद्देशन
श्रुतस्क यणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाई
काल तथा पदप्रमाण से संख्येय हजार पद हैं। पयसहस्साई पयग्गेणं ।
(नन्दी ८७) सुत्तपदग्गं तेवीसं लक्खा चतुरो य सहस्सा पदग्गेणं । उपासकदशा में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, संखेज्जाणि वा पदसहस्साणि सुत्तालावगपदग्गेणं । वनषंड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य,
(नन्दीचू पृ ६८) धर्मकथा, ऐहलौकिक और पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, सूत्रपदों का परिमाण तेवीस लाख चार हजार है। भोग-परित्याग, दीक्षा-पर्याय का काल, श्रुत-ग्रहण, सूत्रालापकपदों का परिमाण संख्येय हजार है। तप-उपधान, शीलव्रत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान,
अनुत्तरोपपातिकदशा पौषधोपवास का स्वीकरण,प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादोपगमन, देवलोकगमन, सुकुल
""अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं में पुनरागमन, पुनः बोधिलाभ और अन्तक्रिया का नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाइं, समोसरणाई, आख्यान किया गया है।
रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, यह अंग की दृष्टि से सातवां अंग है। इसके एक इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वश्रतस्कन्ध, दस अध्ययन, दस उद्देशनकाल, दस समूद्देशन- ज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई. पडिकाल तथा पदप्रमाण से संख्येय हजार पद हैं।
माओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओसुत्तपदग्गं एक्कारस लक्खा बावण्णं च सहस्सा वगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायापदग्गेणं । सुत्तालावयपदेहिं संखेज्जाणि वा पदसहस्साइं ईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघपदग्गेणं ।
(नन्दीच पृ ६७) विज्जति ।...
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