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प्रतिलेखना
लेखना करे । गोच्छग को अंगुलियों से पकड़कर भाजन को ढांकने के पटलों की प्रतिलेखना करे ।
चौथे प्रहर में भाजनों को प्रतिलेखनपूर्वक बांधकर रख दे, फिर सर्व भावों को प्रकाशित करने वाला स्वाध्याय करे ।
.....पुव्वण्हे अवरण्हे मुहणंतगमाइ पडिलेहा ॥ ( ओभा १५८ ) वस्त्र - प्रतिलेखना के दो काल हैं - पूर्वाह्न (प्रथम प्रहर) और अपराह्न ( चतुर्थ प्रहर ) । ६. तीन भूमियों की प्रतिलेखना
चउभागावसेसाए चरिमाए पडिक्कमित्तु कालस्स । उच्चारे पासवणे ठाणे चवीसई पेहे ॥ अहियासिया उ तो आसन्ने मज्भि तह य दूरे य । तिन्नेव अणहियासी अंतो छच्छच्च बाहिरओ || एमेव य पासवणे बारस चउवीसइं तु पेहित्ता । कासव तिन्नि भवे अह सूरो अत्थमुवयाई ॥ (ओनि ६३२-६३४) मुनि दिन की अंतिम पौरुषी का चतुर्थ भाग शेष रहने पर तीन भूमियों की प्रतिलेखना करता है
२. मध्य
१. उच्चारभूमि बारह१. निकट ४. अतिनिकट ५. मध्य ये छह भूमियां उपाश्रय के उपाश्रय के बाहर |
२. प्रश्रवण भूमि बारह । ३. काल ( स्वाध्याय) भूमि तीन ।
७. प्रतिलेखना के दोष
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३. दूर ६. कुछ दूर - परिसर में और छह
आरभडा सम्मद्दा, वज्जेयव्वा य मोसली तइया । पफोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्टा ॥
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आरभटा विपरीतकरणमुच्यते त्वरितं वाऽन्यान्यवस्त्रग्रहणेनासो भवति । संमर्दा - वस्त्रान्तः कोणसंचलनमुपधेर्वा उपरि निषीदनम् । मोसलि त्ति तिर्यगूर्ध्वमधो वा घट्टना । प्रस्फोटना -प्रकर्षेण रेणुगुण्डितस्येव वस्त्रस्य काटना । विक्षिप्ता - प्रत्युपेक्षित वस्त्रस्यान्यत्राप्रत्युपेक्षिते क्षेपणं, प्रत्युपेक्षमाणो वा वस्त्राञ्चलं यदूर्ध्वं क्षिपति । वेतिया पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा - उड्ढवेतिया अहोवेतिया तिरियवेतिया दुहतोवेतिया एगतोवेतिया ।
प्रतिलेखना के दोष
तत्थ उड्ढवेतिया उवरि जुण्णगणं हत्थे काऊण पडिलेहेइ । अहोवेइया अहो जुणगाणं हत्थे काळण पडिलेहेइ । तिरियवेइया संडासयाणं मज्झेण हत्थेण वित्तूण पडिmes | दुहतोवेइया बाहाणं अंतरे दोवि जुणगा काऊण पडिलेहेति । एगतो वेइया एगं जुण्णगं बाहाणमंतरे काऊण पडिले हेति । ( उ २६ । २६ शावृप ५४१ ) प्रतिलेखना के छह दोष १. आरभटा विधि से विपरीत प्रतिलेखना करना अथवा एक वस्त्र का पूरा प्रतिलेखन किए बिना दूसरे वस्त्र का प्रतिलेखन करना ।
२. सम्मर्दा - प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को इस प्रकार पकड़ना कि उसके बीच में सलवटें पड़ जायें अथवा प्रतिलेखनीय उपधि पर बैठकर प्रतिलेखना करना । ३. मोसली -- प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को ऊपर,
नीचे, तिरछे किसी वस्त्र या पदार्थ से संघट्टित
करना ।
४. प्रस्फोटना - प्रतिलेखन करते समय रज से लिप्त
वस्त्र को गृहस्थ की तरह वेग भटकना । ५. विक्षिप्ता - प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों पर रखना अथवा वस्त्र के अञ्चल को इतना ऊंचा उठाना कि उसकी प्रतिलेखना न हो सके ।
६. वेदिका के पांच प्रकार हैं
१. ऊर्ध्ववेदिका - दोनों जानुओं पर हाथ रखकर प्रतिलेखना करना ।
२. अधोवेदिका - दोनों जानुओं के नीचे हाथ रखकर प्रतिलेखना करना ।
३. तिर्यग्वेदिका - दोनों जानुओं के बीच में हाथ रखकर प्रतिलेखना करना ।
४. उभयवेदिका — दोनों जानुओं को दोनों हाथों के बीच रखकर प्रतिलेखना करना ।
५. एक वेदिका एक जानु को दोनों हाथों के बीच रखकर प्रतिलेखना करना । पसिढिलपलंबलोला, एगामोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणि पमायं संकिए गणणोवगं कुज्जा ।। २६।२७)
प्रतिलेखना के सात दोष
१. प्रशिथिल - वस्त्र को ढीला पकड़ना । २. प्रलम्ब - वस्त्र को विषमता से पकड़ने के कारण कोनों का लटकना ।
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