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प्रतिलेखना
अट्टमेण भत्तेण अपाणएण ईसिप भारगतेण, ईसिपब्भारगतो नाम ईसि ओणओ काओ, एगपोग्गल निरुद्धदिट्ठी अणिमिणणो तत्थवि जे अचित्तपोग्गला तेसु दिट्टि निवेसेति, सचितेहि दिट्ठी अप्पाइज्जति, जहा दुव्वाए । अहापणिहितेहिं गत्तेहि सब्बिदिएहि गुत्ते हि दोवि पादे सावधारियपाणी एगराइयं महापडिमं ठितो । ( आवनि ४९७ चू १ पृ ३०१ ) महावीर दृढभूमि गए । दृढ़भूमि के बाहरी भूभाग में पेढाल नाम का उद्यान था। वहां पोलाश नाम का चैत्य था। वहां महावीर ने तेले की निर्जल तपस्या की । ध्यान की मुद्रा में खड़े हुए। थोड़ा झुका हुआ शरीर । अनिमिष नयन ( अनिमेषप्रेक्षा / त्राटक ), एक पुद्गल - निरुद्ध दृष्टि - महावीर की दृष्टि अचित्त पुद्गल पर टिकी थी । वे सचित्त वस्तु पर दृष्टि नहीं टिकाते, यथादूर्वा आदि । सब अवयव अपने स्थान पर अवस्थित, सब इन्द्रियां छप्पुरिमा दोनों पैर सटे हुए, दोनों हाथ घुटनों की गुप्त, ओर प्रलम्बित - इस मुद्रा में महावीर एकरात्रिकी महाप्रतिमा में स्थित थे ।
प्रतिलेखना - वस्त्र, पात्र आदि को यथासमय सावधानीपूर्वक देखना ।
१. प्रतिलेखना के पर्याय
• प्रतिलेखनीय
२. प्रतिलेखना की विधि और प्रकार ३. प्रतिलेखना के विकल्प
४. प्रतिलेखना का क्रम
५. वस्त्रपात्र प्रतिलेखना काल
*
६. तीन भूमियों की प्रतिलेखना
७. प्रतिलेखना के दोष
मध वा कुड्यादिपरामर्शवद्यथा न भवति । छप्पुरिमत्ति षट् पूर्वाः पूर्वं क्रियमाणतया तिर्यक्कृतवस्त्रप्रस्फोटनात्मका क्रियाविशेषा येषु ते षट्पूर्वाः । नवखोडत्ति खोटकाः समयप्रसिद्धाः स्फोटनात्मकाः कर्त्तव्याः ।
( उ २६ । २४, २५ शावृ प ५४०, ५४१) सबसे पहले उकडू आसन में बैठ, वस्त्र को ऊंचा
'प्रभातकालीन प्रतिलेखना काल (द्र. कालविज्ञान) रखे, स्थिर रखे और शीघ्रता किए बिना उसकी प्रति
लेखना करे चक्षु से देखे ! दूसरे में वस्त्र को झटकाए और तीसरे में वस्त्र की प्रमार्जना करे । प्रतिलेखना करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये
८. प्रतिलेखना- प्रमाद से छह काय की विराधना
* प्रतिलेखना - अतिचार प्रतिक्रमण (द्र प्रतिक्रमण ) ९. केवली - छद्मस्थ की द्रव्य भाव प्रतिलेखना
* प्रेक्षा संयम
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प्रतिलेखना की विधि...
आभोग, मार्गणा, गवेषणा, ईहा, अपोह, प्रतिलेखना, प्रेक्षण, निरीक्षण, आलोकन और प्रलोकन—ये प्रतिलेखना के पर्याय हैं । प्रतिलेखनीय
१. प्रतिलेखना के पर्याय
आभोगमग्गण गवसणा य ईहा अपोह पडिलेहा । पेक्खनिक्खिणावि अ आलोयपलोयणेगट्ठा ||
(ओनि ३)
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( ब्र. संयम )
ठाणे उवगरणे या थंडिलउवथंभमग्गपडिलेहा । '' (ओनि २६३ ) शरीर (खड़े होते, बैठते और सोते समय ), उपाश्रय, उपकरण, स्थण्डिल (परिष्ठापन भूमि), अवष्टम्भ और मार्ग - ये प्रतिलेखनीय हैं ।
२. प्रतिलेखना की विधि और प्रकार
उड्ढं थिरं अतुरियं पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेज्जा ।। अणच्चावियं अवलिये अणाणुबन्धि अमोसलि चेव ।
नव खोडा पाणीपाणविसोहणं ॥ अनत्तितं प्रस्फोटनं प्रमार्जनं वा कुर्वतो वस्त्रं वपुर्वा यथा नर्त्तितं न भवति । अवलितं यथाऽऽत्मनो वस्त्रस्य च वलितमिति मोटनं न भवति । अननुबन्धि अनुबन्धेन नैरन्तर्य लक्षणेन युक्तमनुबन्धि न तथा अलक्ष्यमाणविभागं यथा न भवति । आमोसलिन्ति सूत्रत्वादामर्शवत्ति
१. अनर्तित वस्त्र या शरीर को न नचाए । २. अवलितवस्त्र या शरीर को न मोड़े ।
३. अननुबन्धी-वस्त्र के दृष्टि से अलक्षित विभाग न करे ।
४. अमोसली वस्त्र का मुसल की तरह दीवार आदि से स्पर्श न करे ।
५. छह पूर्व - - वस्त्र के दोनों ओर तीन-तीन विभाग कर उसे झटकाए ।
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