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________________ ग्यारह उपासक-प्रतिमाएं '४३७ प्रतिमा मैं अकल्प्य (अनाचरणीय) से निवृत्त होता हं, चारी सचित्ताहारे से अपरिण्णाते भवति"उक्कोसेणं कल्प्य (आचरणीय) में प्रवृत्त होता हूं। छम्मासे विहरेज्जा। ___ मैं अज्ञान से निवृत्त होता हूं, ज्ञान में प्रवृत्त होता ७. अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा सचित्ताहारे से परिणाए भवति......"उक्कोसेणं सत्त मासे ____ मैं अक्रिया (नास्तित्ववाद) से निवृत्त होता हूं, विहरेज्जा। क्रिया (अस्तित्ववाद) में प्रवृत्त होता हूं। ८. अहावरा अट्ठमा उवासगपडिमा""आरंभा से परि ण्णाता"उक्कोसेणं अट्ठ मासे विहरेज्जा।। मैं मिथ्यात्व से निवृत्त होता हूं, सम्यक्त्व में प्रवृत्त ९. अहावरा नवमा उवासगपडिमा""पेस्सा से परिण्णाया होता हूं। 'उक्कोसेणं नव मासे विहरेज्जा। ___ मैं अबोधि से निवृत्त होता हूं, बोधि में प्रवृत्त होता १०. अहावरा दसमा उवासगपडिमा'"उट्रिभत्ते से परि ण्णाए भवति । से णं खुरमुंडए वा छिह लिधारए वा, ___ मैं अमार्ग से निवृत्त होता हूं, मार्ग में प्रवृत्त होता तस्स णं आलत्तसमाभट्ठस्स कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए, तं जथा-जाणं वा जाणं अजाणं वा णो प्रतिमा -प्रतिज्ञा, अभिग्रह, साधना की विशिष्ट जाणं, से णं एतारूवेणं विहारेणं"उक्कोसेणं दस पद्धति । मासे विहरेज्जा। ११. अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा...""तस्स णं १. ग्यारह उपासक-प्रतिमाएं गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति २. भिक्षु-प्रतिमा की अर्हता एवं वदित्तए-समणोवासगस्स पडिमं पडिवण्णस्स ३. बारह भिक्ष-प्रतिमाएं भिक्खं दलयह"उक्कोसेणं एक्कारस मासे ४. भगवान् महावीर की एकरात्रिकी प्रतिमा विहरेज्जा। (आवचू २ पृ ११८,१२०) ___ * महावीर की प्रतिमासाधना (द्र. तीर्थकर) उपासक प्रतिमा के ग्यारह प्रकार हैं१. ग्यारह उपासक-प्रतिमाएं १. दर्शनश्रावक-- इसमें सर्वधर्मविषयक रुचि होती है । १. .."सव्वधम्मरुई यावि भवति पढमा उवासग २. कृतव्रतकर्म--इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरपडिमा। मण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का सम्यक् २. .....""तस्स णं बहुइं सीलव्वयगुणवेरमणपोसहो परिपालन करता है। ववासाइं सम्म पविताइं भवंति...'""दोच्चा । ३. कृतसामायिक- इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त उवासगपडिमा। प्रतिमाधारी उपासक प्रातः और सायंकाल सामायिक ३. ......"से णं सामाइयं देसावगासियं संमं अणुपालेत्ता और देशावकाशिक व्रत का सम्यक पालन करता भवति .. तच्चा उवासगपडिमा । ४ ......."से णं चाउद्दसिअट्ठमिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्ण- ४. पौषधोपवासनिरत-इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के पोसह संमं अणुपालेत्ता भवति ""चउत्था उवासग- अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक चतुर्दशी, अष्टमी, पडिमा। अमावस्या और पौर्णमासी आदि पर्व दिनों में ५. अहावरा पंचमा उवासगपडिमा""से णं एगराइयं प्रतिपूर्ण पोषध करता है। उवासगपडिमं अणपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए ५. दिन में ब्रह्मचारी--इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के वियडभोई मउलियडे दिया बंभयारी रत्ति परिमाण- अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक एकरात्रिकी उपासक कडे, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहणेणं प्रतिमा का सम्यक अनुपालन करता है तथा स्नान एगाहं.""उक्कोसेणं पंचमासे विहरेज्जा। नहीं करता, दिवाभोजी होता है, धोती के दोनों ६. अहावरा छटा उवासगपडिमा"रातोवरायं बंभ- अंचलों को कटिभाग में टांक लेता है-नीचे से नहीं Jain Education International For Private & Persamal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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