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प्रतिक्रमण
पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अइयारं, आलोएज्ज जहक्क || पक्कि मित्तु निस्सल्लो, वंदित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ( उ २६ । ४७- ४९ ) ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप सम्बन्धी रात्रिक अतिचार का अनुक्रम से चिन्तन करे । कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे। फिर अनुक्रम से रात्रिक अतिचार की आलोचना करे । प्रतिक्रमण से निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे, फिर सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे ।
जो होज्ज उ असमत्थो बालो वुड्ढो गिलाणपरितंतो । सो आवस्सगजुत्तो अच्छेज्जा निज्जरापेही ॥ (ओनि ६३७ ) असमर्थ (दुर्बल), बाल, वृद्ध और रोगाक्रान्त निर्जरार्थी साधु प्रतिक्रमण में बैठे-बैठे कायोत्सर्ग कर सकता है ।
इत्aरिक यावत्कथिक प्रतिक्रमण
उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणए पडिक्कमणं । आभोगमणाभोगे सहस्सकारे पडिक्कमणं ॥ ( आवनि १२४९ ) उच्चार- प्रस्रवण और श्लेष्म का परिष्ठापन कर किया जाने वाला प्रतिक्रमण तथा जान-अनजान में और सहसा गलती होने पर किया जाने वाला प्रतिक्रमण इत्वरिक प्रतिक्रमण कहलाता है ।
पंचय महत्वयाई राईछट्टाइ चाउजामो य । भत्तपरिणाय तहा दुव्हंपि य आवकहियाई ॥ ( आवनि १२४८ )
पांच महाव्रत, रात्रिभोजनविरति चातुर्याम, भक्तपरिज्ञा तथा इंगिनीमरण इनसे संबंधित प्रतिक्रमण यावत्कथिक प्रतिक्रमण है ।
पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण क्यों ?
जथा लोगे गेहं दिवसे दिवसे पमज्जिज्जंतंपि पक्षादिसु अब्भधितं अवले वणपमज्जणादीहि सज्जिज्जति, एवमिहावि ववसोहण विसेसा कीरति ।
( आवचू २ पृ ६४) लोग अपने-अपने घरों को प्रतिदिन साफ करते हैं, फिर भी पक्ष, मास आदि में तथा विशेष उत्सवों के अवसर
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प्रतिक्रमण सूत्र
पर घरों की लिपाई-पुताई करते हैं, विशेषरूप से साफसुथरा कर उसे सुसज्जित करते हैं। इसी प्रकार मुनि भी प्रतिदिन प्रतिक्रमण करते हैं, परंतु विशेष शोधन के लिए वे पाक्षिक, मासिक आदि प्रतिक्रमण करते हैं । ४. प्रतिक्रमण सूत्र
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इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो ract अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचितिओ अणायारो अणिच्छिroat असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरिते सुए सामाइए तिन्ह गुत्तीणं चउन्हं कसायाणं पंचण्हं महत्व - याणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवहं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं, तस्स मिच्छा मिदुक्कडं | ( आव ४ | ३ ) मैं अपने द्वारा किए हुए दिवससंबंधी कायिक, वाचिक और मानसिक अतिचार के प्रतिक्रमण की इच्छा करता हूं। मैंने उत्सूत्र की प्ररूपणा की हो, मोक्षमार्ग के प्रतिकूल मार्ग का प्रतिपादन किया हो, विधि के विरुद्ध आचरण किया हो, अकरणीय कार्य किया हो, अशुभ ( आर्त - रौद्र ) ध्यान किया हो असत् चिंतन किया हो, अनावरणीय और अवांछनीय का आचरण किया हो, श्रमण के अयोग्य कार्य का आचरण किया हो, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, श्रुत और सामायिक के विषय में तथा तीन गुप्ति, चार कषाय, पांच महाव्रत, षड्जीवनिकाय, सात पिण्डेषणा, आठ प्रवचनमाता, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति तथा दस प्रकार के श्रमण धर्म में होने वाले श्रमणयोगों की अखण्ड आराधना न की हो, विराधना की हो तो उससे सम्बन्धित मेरा दुष्कृत निष्फल हो । ईर्यापथिक प्रतिक्रमण
इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसाउत्तंग - पणग-दगमट्टी - मक्कडासं ताणासंकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिदिया अभिया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्देविया ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । ( आव ४।४) मैं ईर्यापथ में होने वाले अतिचारों के लिए प्रतिक्रमण करना चाहता हूं- गमनागमन में प्राण, बीज
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