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पालि - महापालि
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न असार होते हैं, न विश्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं । उस कोठे के जो आकाशप्रदेश उन बालायों से व्याप्त हैं, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहार करने पर जितने समय में वह कोठा खाली, रजरहित, निर्लेप और निष्ठित ( अन्तिम रूप से खाली ) होता है, वह व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है ।
दृष्टांत सूक्ष्म क्षेत्र- पल्योपम
सुमे खेत्तपलिओ मे : से जहानामए - पल्ले सियाजोयणं आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परवेणं, से णं पल्ले - एगा हिय - बेयाहिय याहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडी |
तत्थं णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा ।
। जेणं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहि वालगेहि अफुन्ना वा अणप्फुन्ना वा, तओ णं समए - समए मेगं आगासपri अवहाय जावइएणं काले से पल्ले खणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । ( अनु ४३८ ) चौड़ा, ऊंचा और वह एक, दो, तीन करोड़ों बालात्रों
जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है, यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए से ठूंस-ठूंसकर, घनीभूत कर भरा हुआ
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इन बालों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किए जाते हैं । वे बालाग्र दृष्टिविषय में आने वाले पुद्गलों की अवगाहना से असंख्येय भागमात्र और सूक्ष्म पनक जीव के शरीर की अवगाहना से असंख्य गुना अधिक होते हैं ।
उस कोठे के जो आकाशप्रदेश उन बालानों से व्याप्त हों या अव्याप्त, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहार करने पर जितने समय में वह कोठा खाली, रज-रहित, निर्लेप और निष्ठित ( अन्तिम रूप से खाली) होता है, वह सूक्ष्म क्षेत्र - पत्योपम है । क्षेत्र पल्योपम- सागरोपम का प्रयोजन
एएहि सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं दिट्टिवाए दव्वा मविज्जति । ( अनु ४४० ) सूक्ष्म क्षेत्र पत्योपमों और सागरोपमों से दृष्टिवाद
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के द्रव्यों को नापा जाता है ।
६. सागरोपम का परिमाण
पारिणामिकी बुद्धि
दस पल्लककोडाकोडीतो एगं सागरोवमं । ( अनुचू पृ ५७ ) दस कोटिकोटि पल्यों का एक सागरोपम होता है । एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । सुहुमस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ ( अनु ४२४) दस कोटिकोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपमों का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है ।
तं
एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ ( अनु ४३१)
सूक्ष्म अध्व पल्योपम को दस कोटिकोटि से गुणित करने पर एक सूक्ष्म अध्व सागरोपम का परिमाण होता है।
एएसि पल्लागं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ ( अनु ४३९) दस कोटिकोटि सूक्ष्म क्षेत्र पत्योपमों का एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम होता है ।
७. पालि महापालि
पालि :- जीवितजलधारणाद् भवस्थितिः । ( उशावृ प ४४५) जैसे पाल जल को धारण करती है, वैसे ही भवस्थिति जीवन-जल को धारण करती है, इसलिए उसे पाली कहा जाता है ।
पाली मर्यादा । या पत्योपमैः स्थितिः सा पाली । या पुनः सागरोपमैः स्थितिः सा महापाली ।
( उचू पृ २४९ ) पल्योपम की काल मर्यादा का नाम है पाली । सागरोपम की काल मर्यादा का नाम है महापाली । पाप - अशुभ कर्म पुद्गल । ( द्र. कर्म) पारिणामिको बुद्धि - परिणाम / अवस्था के साथअनुभवों से
साथ
नाना उत्पन्न होने वाली बुद्धि ।
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( द्र. बुद्धि )
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