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जमालि और बहुरतवाद
२. जमालि और बहुरतवाद चोट्स वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स । तो बहुरयाण दिट्ठी सावत्थीए समुत्पन्ना ॥ ( विभा २३०६ ) भगवान महावीर के कैवल्य प्राप्ति के चौदह वर्ष पश्चात् श्रावस्ती नगरी में बहुरतवाद की उत्पत्ति हुई । बहुसु समएसु कज्जसिद्धि पडुच्च रता-सक्ता बहुरता । आव १४१९) एकस्मिन् क्रियासमये वस्तु नोत्पद्यते किन्तु बहुभिः क्रियासमयैः इत्यभ्युपगमाद् बहुषु समयेषु रताः सक्ता बहुरता दीर्घकालवस्तुप्रभवप्ररूपकाः ।
( विभामवृ २ पृ३३) कार्य की सिद्धि एक समय में नहीं होती, उसमें बहुत समय लगते हैं, वस्तु की उत्पत्ति दीर्घकाल सापेक्ष हैइस अभ्युपगम का प्रतिपादन जिसे मान्य है, वह बहुरतवाद है ।
कुंडपुरं नगरं । तस्स सामिस्स जेट्ठा भगिणी सुदंसणा नाम । तीए पुत्तो जमाली । सो सामिस्स मूले पव्वतो पंचहि सतेहि समं तस्स य भज्जा सामिणो धूता अणोज्जंगी नाम । बीयं नाम से पियदंसणा । सावि तमणुपव्वतिया ससहस्सपरिवारा, एक्कारस अंगा अधीता । सामिणा अणणुष्णातो सावत्थि गतो पंचसतपरिवारो । तत्थ तेंदुगुज्जाणे कोट्ठगे चेतिते समोसढो । तत्थ से अंतपंतेहि रोगो उप्पण्णो । न तरति तिट्ठेतुं अच्छितुं । ताहे सो समणे भणति मम सेज्जासंथारगं करेह । ते कातुमारद्वा । पुणो अधरो भणति -कतो ? कज्जति ? ते भणंति—न कतो, अज्जावि कज्जति ।
( आवचू १ पृ ४१६) जमाली कुंडपुर नगर में, भगवान महावीर की ज्येष्ठा भगिनी सुदर्शना का पुत्र था। भगवान की पुत्री अनवद्यांगी उसकी भार्या थी । उसका दूसरा नाम था प्रियदर्शना ।
जमाली ने पांच सौ पुरुषों के साथ तथा प्रियदर्शना ने हजार स्त्रियों के साथ भगवान महावीर के पास दीक्षा स्वीकार की। उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया ।
एक बार जमालि ने भगवान से अलग विहार की आज्ञा मांगी। भगवान की आज्ञा प्राप्त नहीं होने पर भी वह पांच सौ साधुओं के साथ श्रावस्ती चला गया। वहां तिन्दुक उद्यान के कोष्ठक चैत्य में ठहरा। अंत-प्रांत आहार सेवन से उसका शरीर रोगाक्रान्त हो गया । उसने श्रमणों से कहा- मेरा बिछौना करो। वे करने लगे ।
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निह्नव
अधीरता के कारण पुनः पूछा- क्या बिछौना कर दिया ? श्रमणों ने कहा - कर रहे हैं ।
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सक्खं चिय संथारो न कज्जमाणो कउ त्ति मे जम्हा । बेइ जमाली सव्वं न कज्जमाणं कयं तम्हा ॥ ( विभा २३०८ )
ताहे तस्स चिंता जाता-जणं समणे भगवं आइक्खति 'कज्जमाणे कडे चलमाणे चलिते उदीरिज्जमाणे उदीरिए जाव निज्जरिज्जमाणे निज्जिपणे' तण्णं मिच्छा । इमं णं पच्चक्खमेव दीसति सेज्जासंथारए कज्जमाणे अकडे संथारेज्जमाणे असंथारिए ।
( आवचू १ पृ ४१६ ) उसके मन में विचिकित्सा उत्पन्न हुई - भगवान महावीर क्रियमाण को कृत, चलमान को चलित, उदीर्य - माण को उदीरित, निर्जीर्यमाण को निर्जीर्ण कहते हैंयह मिथ्या है । यह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है कि बिछौना क्रियमाण है पर कृत नहीं है । वह संस्तीर्यमाण है, किन्तु संस्तृत नहीं है । इस प्रकार वेदनाविह्वल जमालि मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से निह्नव बन गया । उससे बहुरतवाद की उत्पत्ति हुई ।
अतिया ग्गिंथा एतमत्थं सद्दति । अत्थेगतिया सद्दति । जे ते सद्दहंति ते णं जमालि चेव अणगारं उवसंपज्जित्ताणं विहरति । जे ते णो सद्दहंति ते णं एवमाहंसु, जण्णं सामी आइक्खति तण्णं तह चेव, जं णं तुमं वयसि तं गं मिच्छा । ( आवचू १ पृ ४१६ ) जमालि के पांच सौ साधुओं में से कुछ साधुओं ने बहुरतवाद में श्रद्धा की, कुछ ने नहीं की। जिन्होंने श्रद्धा की, वे जमालि के पास रहे । जिन्होंने श्रद्धा नहीं की, उन्होंने कहा- जमालि ! भगवान् ने जो कहा है, वह तथ्य है । तुम जो कह रहे हो वह मिथ्या है । वे पुनः भगवान् महावीर के शासन में सम्मिलित हो गये ।
पियदंसणा ढंकस्स कुंभकारस्स घरे ठिता । सा आगता चेतियवंदिता, ताहे तंपि पण्णवेति । साति विप्पपच्छा डिवण्णा तस्स हाणुरागेण, गता अज्जाणं परिकहेति, तं च ढंकं भणति, सो जाणति जथा --- विप्पडिवण्णा नाहच्चएणं, ताहे सो भणति - अहं न याणामि एवं विसेसतरं । एवं तीसे अण्णदा कदायी सज्झायपोरिसि कती ते भायणाणि उव्वत्तंतेणं तत्तोहुत्तो इंगालो छूढो जथा तीसे संघाडी एगदेसंमि दड्ढा । सा भणति — इमा
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