________________
महावीर का परिवार
३२५
तीर्थंकर
२४. नन्दन राजा (छत्राग्र नगरी)
चौदह स्वप्न २५. प्राणत देव
गयवसहसीहअभिसेयदामससिदिणयरं झयं कुंभं । २६. देवानन्दा का पुत्र।
पउमसर सागर विमाणभवण रयणुच्चय सिहि च ।। २७. त्रिशला का पुत्र ,
एए चोद्दस सुमिणे पासइ सा तिसलया सुहपसुत्ता। ३२. महावीर का गर्भ-संहरण
जं रयणि साहरिओ कुच्छिसि महायसो वीरो ।। माहणकंडग्गामे कोडालसगृत्तमाहणो अस्थि ।
(आवभा ५६,५७) तस्स घरे उववण्णो देवाणंदाइ कुच्छिसि ।।
महारानी त्रिशला सुखशय्या में सो रही थी। जिस ..."चउदस सुमिणे पासइ सा माहणी सुहपसूत्ता ।... रात्रि को उसकी कुक्षि में महायशस्वी महावीर का अह दिवसे बासीई वसइ तहि माहणीइ कुच्छिसि । प्रक्षेपण हुआ, उस समय उसने चौदह स्वप्न देखेचितइ सोहम्मवई, साहरिउ जे जिणं कालो ।। १. गज
८.ध्व ज अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा चेव वासुदेवा य । २. वृषभ
९. कुंभ एए उत्तमपुरिसा न हु तुच्छकुलेसु जायंति ॥ ३. सिंह
१०. पद्मसरोवर उग्गकुलभोगखत्तिअकुलेसु इक्खागनायकोरव्वे । ४. अभिषेक
११. सागर हरिवंसे अ विसाले आयंति तहिं पूरिससीहा ।। ५. माला
१२. विमान अह भणइ णेगमेसि देविदो एस इत्थ तित्थयरो । ६. चन्द्र
१३. रत्नराशि लोगुत्तमो महप्पा उववण्णो माहणकुलंमि ॥ ७. सूर्य
१४. अग्नि खत्तिअकुंडग्गामे सिद्धत्थो नाम खत्तिओ अस्थि ।
तिहि नाणेहि समग्गो देवी तिसलाइ सो अ कुच्छिसि । सिद्धत्थभारिआए साहर तिसलाइ कुच्छिसि ।।
अह वसइ सण्णिगब्भो छम्मासे अद्धमासं च ॥ बाद ति भाणिऊण वासारत्तस्स पंचमे पक्खे ।
(आवमा ५८) साहरइ पुव्वरते हत्थुत्तर तेरसी दिवसे ।।
महावीर त्रिशला देवी की कुक्षि में साढे छह महीनों (आवनि ४५७ भा ४७-५३) तक रहे । उस समय वे मति, श्रुत और अवधि-इन महावीर प्राणतकल्प के पुष्पोत्तर विमान से च्यूत तीनों ज्ञानों से सम्पन्न थे। हो ब्राह्मणकुण्डग्राम में कोडाल सगोत्र ब्राह्मण ऋषभदत्त ३३. महावीर का परिवार के घर में देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में उत्पन्न हुए,
भगवतो माया चेडगस्स भगिणी। भोयी चेडगस्स उस समय ब्राह्मणी ने गज, वृषभ आदि चौदह स्वप्न
धुया । पित्तिज्जए सुपासे । जेठे भाता थदिवद्धणे ।
भगिणी सुदंसणा। भारिया जसोया कोडिन्नागोत्तेणं । बयासी दिन के बाद सौधर्म देवलोक के इन्द्र ने
ध्या कासवीगोत्तेणं । तीसे दो नामधेज्जा-अणोज्जगित्ति हरिनैगमेषी को बुलाकर कहा
वा पियदंसणाति वा। णत्तुई कोसीगोत्तेणं । तीसे दो तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव असार कुलों
नामधेज्जा-जसवतीति वा सेसवतीति वा । में उत्पन्न नहीं होते । वे उत्तम पुरुष उग्र, भोग, क्षत्रिय,
(आवचू १ पृ २४५) इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य, हरिवंश आदि विशाल कुलों में
भगवान महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहिन उत्पन्न होते हैं। महावीर अपने पूर्व कर्मों के कारण
थी। महावीर की भाभी (नंदीवर्धन की पत्नी) चेटक ब्राह्मण कुल में आये हैं। तुम जाओ और उस गर्भ को क्षत्रियकुंडग्राम के क्षत्रिय सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के ।
की पुत्री थी। गर्भ में रख दो।
महावीर के चाचा सुपार्श्व, ज्येष्ठ भ्राता नंदीवर्धन, वह देव तत्काल वहां गया। उस दिन आश्विन ज्येष्ठ भगिनी सुदर्शना-ये सभी काश्यपगोत्रीय थे। कृष्णा त्रयोदशी थी। रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत में महावीर की पत्नी यशोदा कोडिन्यगोत्रीय थी। महावीर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उसने गर्भ का संहरण कर की पुत्री काश्यपगोत्रीय थी। उसके दो नाम थेत्रिशला के गर्भ में रख दिया।
अनवद्या, प्रियदर्शना । महावीर की दौहित्री कौशिकगोत्रीय
देखे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org