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महावीर के अभिधान
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तीर्थंकर
अर्हत् अरिष्टनेमि का तीर्थ-चतुष्टय
अवधिज्ञानी १४०० श्रमण १८००० वरदत्त आदि
केवलज्ञानी १००० श्रमणी ४०००० यक्षिणी आदि
वैक्रियलब्धिधर ११०० श्रमणोपासक १६९००० नन्द आदि
मनःपर्यवज्ञानी ७५० श्रमणोपासिका ३३६००० महासुव्रता आदि
वादी ६०० चौदहपूर्वी ४००
अनुत्तरविमान में उत्पन्न १२०० अवधिज्ञानी १५००
३०. महावीर के अभिधान केवलज्ञानी १५०० वैक्रियलब्धिधर १५००
वड्ढइ नायकुलं ति अ तेण जिणो वद्धमाणुत्ति । विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी १०००
(आवनि १०९१) वादी ८००
भगवान् जब त्रिशला के गर्भ में आये, तब ज्ञातकूल अनुत्तरोपपातिक १६००
में धनसंपदा की अतिशय वृद्धि हुई, अतः उनका नाम अर्हत् पाव
वर्धमान रखा गया। सप्पं सयणे जणणी तं पासइ तमसि तेण पासजिणो। उत्पत्तेरारभ्य ज्ञानादिभिर्वर्धत इति वर्धमानः । (आवनि १०९१)
(आवहावृ २ पृ ११) माता वामा ने अपनी शय्या पर लेटे-लेटे (गर्भ के
जन्म से लेकर जिसके ज्ञान आदि गुण बढ़ते रहते प्रभाव से) अंधेरे में भी सर्प को देख लिया, इसलिए हैं, वह वर्धमान है। अपने पुत्र को 'पार्श्व' नाम से संबोधित किया।
गुणा अस्य विशाला इति वेशालीयः । विशालं पश्यति सर्वभावानिति पार्श्वः, पश्यक इति चान्ये ।।
शासनं वा, विशाले वा इक्ष्वाकुवंशे भवा वैशालिया। (आवहाव २ पृ ११)
वैशाली जननी यस्य, विशालकुलमेव च । जो सब भावों की पश्यना -परिज्ञान करता है, वह
विशालं प्रवचनं वा, तेन वैशालिको जिनः ।। पश्यक पार्श्व है। अहंत पार्श्व की शिष्य-सम्पदा
(उचू पृ १५६,१५७)
० जो गुणों से विशाल है, वह वैशालिक है। . पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स अज्जदिन्नपामोक्खाओ सोलस समणसाहस्सीओ, पुप्फचुलापामो
• जिसका शासन विशाल है, वह वैशालिक है।
० जो विशाल इक्ष्वाकुवंश में जन्मा है, वह वैशालिक क्खाओ अट्ठत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ। सुणंदपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी चउसद्धि च सहस्सा णंदिणिपामोक्खाणं समणोवासियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ
० जिसकी माता वैशाली है-वैशाली नगर की सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिया, अद्भुट्ठसया चोद्दस
वास्तव्या है, जिसका कुल विशाल है, जिसका प्रवीणं, चोइस सया ओहिन्नाणीणं, दस सया केवल
प्रवचन विशाल है, वह वैशालिक-भगवान् नाणीणं, एक्कारस सया वेउब्बियाण, अद्धट्ठमा सत्ता
महावीर है। विपूलमतीणं, छस्सया वादीणं, बारस सया अणुत्तरो
णाया नाम खत्तियाणं जातिविसेसो, तम्मि संभ्रओ ववाइयाणं ।
(आवचू ११५९) सिद्धत्थो, तस्स पुत्तो णायपुत्तो। (दजिच १२२१) अर्हत् पार्श्व का तीर्थ-चतुष्टय
भगवान् महावीर का एक नाम है-- ज्ञातपुत्र । आर्यदत्त आदि १६००० श्रमण
'ज्ञात' (नाग) क्षत्रियों की एक जाति है। यहां ज्ञात का पुष्पचूला आदि ३८००० श्रमणी
अर्थ है-ज्ञातकुल में उत्पन्न सिद्धार्थ । ज्ञातपुत्र अर्थात् सुनंद आदि १६४००० श्रमणोपासक
सिद्धार्थपुत्र महावीर । नन्दिनी आदि ३२७००० श्रमणोपासिका
तस्स णं ततो णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहाचौदहपूर्वी ३५०
अम्मापिउसंतिए वद्ध माणे। सहसंमुदिते समणे ।"परी
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