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वनस्पति के आठ प्रकार
एएस वण्णओ चेव, गंधओ संठाणादेसओ वावि, विहाणारं
रसफासओ । सहस्ससो ॥
( उ ३६ । १०५ )
वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की दृष्टि से
उनके हजारों भेद होते हैं ।
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पतेगसरीरा उ गहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा तहा । लयावलय पव्वगा कुहुणा, जलरुहा ओसहीतिणा । हरियकाया य बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया || ( उ ३६ ९४, ९५ )
प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीवों के अनेक प्रकार हैं - वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली और तृण । लता, वलय ( नारियल आदि ), पर्वज ( ईख आदि), कुहण (भूफोड़ आदि ), जलरुह ( कमल आदि), औषधि - तृण (अनाज) और हरितकाय - ये सब प्रत्येक शरीर हैं । सचित्त मिश्र वनस्पति
सव्वो वsतकाओ सच्चित्तो होइ निच्छयनयस्स । ववहाराउ अ सो मीसो पव्वायरोट्टाई ॥ (ओनि ३६३)
वनस्पति के प्रकार
१. नश्चयिक सचित्त---अनन्तकाय वनस्पति । २. व्यावहारिक सचित्त प्रत्येक वनस्पति । ३. मिश्र म्लान पुष्प फल, कुट्टित तन्दुल आदि । अचित्त वनस्पति के प्रयोजन
संथारपायदंडगखोमिय कप्पा य पीढफलगाई । ओसह सज्जाणिय एमाइ पओयणं बहुहा ॥ (पिनि ४६ )
शय्यापट्ट, पीठ, फलक, पात्र, दण्ड, सूती वस्त्र, औषध ( केवल हरीतकी आदि), भेषज ( हरीतकी बहेड़ा आदि का मिश्रित चूर्ण अथवा बहिः उपयोगी प्रलेप आदि) - ) – इन रूपों में अचित्त वनस्पतिकाय का उपयोग किया जाता है ।
स्थिति
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संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया विय । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।। ( उ ३६ । १०१ ) प्रवाह की अपेक्षा से वनस्पतिकायिक जीव अनादि अनन्त और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सांत हैं ।
आयुस्थिति
भवे ।
दस चेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया वणफण आउंतु, अंतोमुहुत्तं जहन्नगं ॥ ( उ ३६।१०२ ) वनस्पति जीवों की आयुस्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टत: दस हजार वर्ष की है ।
कायस्थिति
अंतोमुहुत्तं
अनंतकालमुक्कसं, काठई पणगाणं, तं कायं तु
जहन्नयं । अमुंचओ ॥
( उ ३६।१०३) उसी काय में
वनस्पति की काय स्थिति ( निरन्तर जन्म लेते रहने की काल मर्यादा) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल की है ।
Treaser मइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणंत दुरंत
वनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जीव दुरन्त अनन्तकाल तक वहां रह जाता
अन्तरकाल
जीवनिकाय
असंखकालमुक्कसं, अंतोमुहुत्तं विजढमि सए काए, पणगजीवाण
एगविणाणत्ता, सुहुमा तत्थ सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे
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( उ १०1९ )
अधिक से अधिक
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( उ ३६ । १०४)
उनका अन्तर (वनस्पतिकाय को छोड़कर पुनः उसी काय में उत्पन्न होने तक का काल ) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्टतः असंख्यात काल का है ।
क्षेत्र
जहन्नयं । अंतरं ॥
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वियाहिया । य बायरा ॥
( उ ३६।१००) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव एक ही प्रकार के होते हैं। उनमें नानात्व नहीं होता । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव समूचे लोक में व्याप्त हैं तथा बादर वनस्पतिकायिक जीव लोक के एक देश में व्याप्त हैं । वनस्पतिकाय के आठ प्रकार
अग्गबीया मूलीया पोरबीया खंधबीया बीयरुहा सम्मुच्छिमा तणलया । (द ४ सूत्र ८ )
वनस्पति के आठ प्रकार हैं
अग्रबीज - जिसका अग्रभाग बीज हो, जैसे कोरंटक ।
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