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ग्रन्थ- परिचय'
१. आवश्यक
साधु और श्रावक के लिए यह अवश्य करणीय है, इसलिए इसका नाम आवश्यक है । यह एक श्रुतस्कन्ध है । इसके छह अध्ययन और प्रत्येक अध्ययन का एक-एक अधिकार विषय-वस्तु है
१. सामायिक सावद्ययोग विरति ।
२. चतुर्विंशतिस्तव - उत्कीर्तना ।
३. वंदना - गुणवान् की प्रतिपत्ति ।
४. प्रतिक्रमण - स्खलना की निंदा |
५. कायोत्सर्ग - व्रण - चिकित्सा ।
६. प्रत्याख्यान - गुणधारण ।
संभव है भगवान् पार्श्व के समय तक एक सामायिक आवश्यक था और उसे षडावश्यक का रूप भगवान् महावीर के शासन में मिला । षडावश्यक के विषय का प्रतिपादन महावीर ने किया और उसका सूत्र रूप में गुम्फन गणधरों ने किया। इसके मुख्य रूप में नौ व्याख्या ग्रन्थ हैं
१. आवश्यक निर्युक्ति
६. आवश्यक नियुक्ति दीपिका
२. आवश्यकभाष्य
७. आवश्यकवृत्ति
३. आवश्यकचूर्ण
४. आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति ५. आवश्यक मलयगिरीया वृत्ति
८. आवश्यक विवरण
९. आवश्यक टिप्पणकम्
नियुक्ति और निर्मुक्तिकार
आगम की मूलस्पर्शी पद्यात्मक व्याख्या निर्युक्ति कहलाती है । व्याख्या साहित्य में नियुक्ति सर्वाधिक प्राचीन और प्रथम व्याख्या है, सूत्रों की अनंतर व्याख्या है। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु हैं - यह सर्वसम्मत है । वे प्रथम हैं अथवा द्वितीय- इसमें मतैक्य नहीं है ।
उत्तराध्ययननिर्युक्ति, पिण्डनिर्युक्ति और ओघनियुक्ति की वृत्तियों में चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु प्रथम को निर्मुक्तिकार कहा गया है ।
fig दशकालिक नियुक्ति (५५) और अगस्त्यसिंह की चूर्णि के स्पष्ट उल्लेख के आधार पर चतुर्दश पूर्वी भद्रबाहु नियुक्तिकार नहीं ठहरते ( आगमकोश पृ ३८९ ) । यह बहुत संभव है कि प्राचीन काल में लघुकाय नियुक्तियां रही हों और उनके कर्त्ता भद्रबाहु प्रथम रहे हों ।
उत्तराध्ययननियुक्ति (१२३) में आर्य आषाढ का प्रसंग यह प्रमाणित करता है कि नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु द्वितीय हैं । उनका अस्तित्व काल विक्रम की पांचवीं छठी शताब्दी है । दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति और पंचकल्पनिर्युक्ति में चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु को नमस्कार किया गया है ।
उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा २३३ में कहा गया है कि पदार्थों का सम्पूर्ण और विशद वर्णन तो केवली और चतुर्दशपूर्वी ही कर सकते हैं ?
१. प्रस्तुत कोश में प्रयुक्त पांच आगम तथा उनके व्याख्या - ग्रन्थ |
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