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________________ बीभत्स रस की उत्पत्ति.. २२१ काव्यरस वीर रस की उत्पत्ति और लक्षण रौद्र रस की उत्पत्ति और लक्षण तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे सत्तजणविणासे य। भयजणणरूव-सइंधकार-चिता-कहासमुप्पन्नो । अणणुसय-धिति-परक्कमलिंगो, वीरो रसो होइ॥ संमोह-संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो रोहो । सो नाम महावीरो, जो रज्ज पयहिऊण पव्वइओ। भिउडी-विडंबियमूहा ! संदवोट ! इय रुहिरमोकिण्णा। काम-क्कोह-महासत्तु-पक्खनिग्घायणं कुणइ।। हणसि पसु असुरणिभा ! भीमरसिय! अइरोह! रोहोसि ॥ (अनु ३९०११,२) (अनु ३१३।१,२) परित्याग (दान), तपश्चरण और शत्रुजनों के भयंकर रूप, शब्द, अन्धकार, चिन्ता और भयंकर विनाश में वीर रस उत्पन्न होता है। अननुशय (गर्व या कथा से रौद्र रस उत्पन्न होता है। संमोह, संभ्रम, पश्चात्ताप न करना), धृति और पराक्रम उसके लक्षण विषाद और मरण उसके लक्षण हैं । रौद्र रस, जैसेहैं । वीर रस, जैसे भृकुटि से विडम्बित मुख वाले! होठ काटने वाले! जो राज्य को छोड़कर प्रवजित हो गया और काम, रुधिर बिखेरने वाले ! असुर के समान भयंकर शब्द क्रोध आदि महाशत्रुओं का निग्रह करता है, वह महावीर करने वाले ! अतिशय रौद्र! तू पशु को मारता है, बडा शृंगार रस की उत्पत्ति और लक्षण व्रीडा रस की उत्पत्ति और लक्षण सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो। विणओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुप्पन्नो । मंडण-विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमणलिंगो।।। वेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलिंगो।। महुरं विलास-ललियं, हिययुम्मादणकरं जुवाणाणं ।। किं लोइयकरणीओ, लज्जणीयतरं लज्जिया मो त्ति । सामा सदुद्दाम, दाएती मेहलादामं ।। वारेज्जम्मि गुरुजणो, परिवंदइ जं वहूपोत्ति ॥ (अनु ३११।१,२) (अनु ३१४।१,२) रति और संयोग की अभिलाषा से शृंगार रस विनयोपचार, गुह्य और गुरु -स्त्री की मर्यादा के उत्पन्न होता है। विभूषा, विलास (चक्षु आदि का अतिक्रमण से व्रीडा रस उत्पन्न होता है। लज्जा और विभ्रम), बिब्बोक (कामचेष्टा), हास्य, लीला और रमण शंका उसके लक्षण हैं । ब्रीडा रस, जैसे-- उसके लक्षण हैं। शृगार रस, जैसे विवाह के बाद प्रथम वार शोणित से सना हुआ श्यामा स्त्री मधुर विलास से ललित, युवकों के हृदय वधू का अधोवस्त्र गुरुजनों के सामने ले जाया जाता है। को उन्मत्त करने वाला, धुंघरु के शब्दों से मुखर मेखला- वे उसे सतीत्व की कसौटी मानकर नमस्कार करते हैं। सूत्र (करधनी) दिखलाती है । इस लौकिक क्रिया से अधिक लज्जास्पद और क्या है ? अद्भुत रस की उत्पत्ति और लक्षण मैं तो इससे लज्जित हो रही हूं। विम्हयकरो अपुव्वोऽनुभूयपुव्वो य जो रसो होइ।। बीभत्स रस की उत्पत्ति और लक्षण हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो, अब्भुओ नाम ।। असुइ-कूणव-दुसण-संजोगब्भासगंधनिप्फण्णो। अब्भुयतरमिह एत्तो, अन्नं कि अस्थि जीवलोगम्मि । निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ।। जं जिणवयणेणत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जति ॥ असुइमलभरियनिझर, सभावदुग्गंधिसव्वकालं पि । (अनु ३१२।१,२) धण्णा उ सरीरकलि, बहुमलकलूसं विमुंचति ॥ अपूर्व और अनुभूतपूर्व वस्तु को देखने पर जो (अनु ३१५।१,२) विस्मयकारी रस उत्पन्न होता है, वह अद्भुत रस है। अशुचि पदार्थ, शव, बार-बार अनिष्ट दृश्य के संयोग हर्ष और विषाद उसके लक्षण हैं । अद्भुत रस, जैसे- और दुर्गन्ध से बीभत्स रस उत्पन्न होता है। निर्वेद जिनवचन के द्वारा त्रैकालिक अर्थ जान लिए जाते (उदासीनता) और अविहिंसा (जीव हिंसा के प्रति होने . हैं—इस जीवलोक में इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य वाली ग्लानि) उसके लक्षण हैं। बीभत्स रस, जैसे अशुचि, मलसमूह के निर्भर, सर्वकाल में स्वभाव . होगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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