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कायोत्सर्ग की परिभाषा
पुर: कर्म
र्याप परिग्रहः ।
पश्चात्कर्म दोषा ह्येते परित्यक्ताः, शिरोलोचं प्रकुर्वता ॥
( दहावृप २८, २९) बालों को उखाअनेक गुण प्राप्त
केशलोच - हाथ से सिर आदि के ड़ना बहुत दारुण होता है। लोच से होते हैं- निर्लेपता, पश्चात्कर्म - वर्जन, कष्टसहिष्णुता, विरक्ति, मुनिचर्या की अनुपालना
पुर: कर्म - वर्जन,
आदि ।
कायक्लेश की froपत्ति
..... कायकिलेसो संसारवासणिव्वेयउत्ति ।। कायस्य क्लेशो - बाधनं कायक्लेश: संसार्यात्मनः कायानुगतत्वेन तत्क्लेशे यद्यप्यवश्यं क्लेशसम्भवस्तथाऽपि भावितात्मनामसौ सन्नप्यसत्सम एवेति ।
( उशावृप ६०७ ) कायक्लेश संसार-विरक्ति का हेतु है । शरीर को तपाना कायक्लेश है । यद्यपि शरीर को तपाने या साधने में संसारी आत्मा को कष्ट होता है, फिर भी जिसने आत्मा को भावित कर लिया है, उसके लिए वह कष्ट नहीं जैसा है ।
कायगुप्ति - शरीर की प्रवृत्ति का निरोध तथा असत् प्रवृत्ति से निवर्तन ।
(द्र. गुप्ति) कायोत्सर्ग - शारीरिक प्रवृत्ति और शारीरिक ममत्व का विसर्जन ।
१. कायोत्सर्ग की परिभाषा
० काय - उत्सर्ग के पर्याय
२. कायोत्सर्ग के प्रयोजन
• अमंगल - निवारण
* कायोत्सर्ग : आवश्यक का एक विभाग
३. कायोत्सर्ग के प्रकार
० द्रव्य भाव कायोत्सर्ग
• चेष्टा-अभिभव कायोत्सर्ग
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४. चेष्टा कायोत्सर्ग : उच्छ्वास- लोगस्स परिमाण ५. अभिभव कायोत्सर्ग - कालमान
६. कायोत्सर्ग के अधिकारी ७. कायोत्सगं विधि
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( द्र. आवश्यक )
८. कायोत्सर्ग-प्रतिज्ञा सूत्र
९. कायोत्सर्ग के दोष
१०. कायोत्सर्ग के परिणाम ११. कायोत्सर्ग चिकित्सा
*
आहार से पूर्व कायोत्सर्ग * गोचरचर्या के पश्चात् कायोत्सर्ग
१. कायोत्सर्ग की परिभाषा
कायोत्सर्ग
( द्र. आहार )
(द्र गोचरचर्या)
सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो....
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( उ ३०/३६) सोने, बैठने या खड़े रहने के समय जो भिक्षु व्यापृत नहीं होता ( काया को नहीं हिलाता - डुलाता) उसके काया की चेष्टा का जो परित्याग होता है, उसे व्युत्सर्ग/ कायोत्सर्ग कहा जाता है । असई वोसट्ठचत्तदेहे ।''''
(द १०।१३) जो बार-बार शरीर का व्युत्सर्ग और त्याग करता है, उसे व्युत्सृष्ट- त्यक्तदेह कहा जाता है । डिमादिसु विनिवृत्तक्रियो । ( अचू पृ २४० ) अभिग्रह और प्रतिमा स्वीकार कर शारीरिक क्रिया का त्याग करना व्युत्सर्ग है ।
वो
व्युत्सृष्टो भावप्रतिबन्धाभावेन त्यक्तो विभूषाकरणेन देहः । ( दहावृ प २६७ ) शरीर के प्रति प्रतिबंध का अभाव व्युत्सर्ग है । शरीर की विभूषा न करना त्याग है । कायः - शरीरं तस्योत्सर्गः - आगमोक्तनीत्या परित्यागः कायोत्सर्गः । ( उशावृप ५८१ ) आगमोक्तनीति के अनुसार शरीर का त्याग ( क्रियाविसर्जन और ममत्व-विसर्जन) करना कायोत्सर्ग है । काय - उत्सर्ग के पर्याय
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काए सरीर देहे बुंदीय चय उवचए य संघाए । उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू ॥ उस्सग्ग विस्सरणुज्झणा य अवगिरण छडण विवेगो । वज्जण चयणुम्मुअणा परिसाडण साडणा चेव ||
( आवनि १४४६, १४५१ )
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