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कषाय
आदेश कषाय
है. कषाय-प्रत्याख्यान के परिणाम
द्रव्य कषाय "कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ । वीय
विहो दव्वकसाओ कम्मदव्वे य नो य कम्मम्मि । रागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसूहदुक्खे भवइ ।
कम्मद्दन्वकसाओ चउब्विहा पोग्गलाणुइया ।। (उ २९।३७)
(विभा २९८१) कषाय के प्रत्याख्यान से जीव वीतरागभाव को
द्रव्य कषाय के दो प्रकार हैंप्राप्त होता है । वीतरागभाव को प्राप्त हुआ जीव सुख
१. कर्म-द्रव्य-कषाय। दुःख में सम हो जाता है।
२. नोकर्म-द्रव्य-कषाय । __ ""कोहविजएणं खंति जणयइ । कोहवेयणिज्ज कम्म
कर्म-द्रव्य-कषाय के चार प्रकार के पुद्गल होते न बंधइ पुवबद्धं च निज्जरेइ ।
हैं-योग्य---बंधपरिणामाभिमुख, बध्यमान, बद्ध तथा ""माणविजएणं महवं जणयइ। माणवेयणिज्जं उदारणावालका में प्राप्त ।। कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
सज्जकसायाइओ नोकम्मदव्वओ कसाओऽयं । ..."मायाविजएणं उज्जूभावं जगयइ। मायावेयणिज्जं
(विभा २९८२) कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
सर्ज (साखू का पेड़), बेहड़ा, हरीतकी आदि
कषाय गुण वाली वनस्पतियां नोकर्म-द्रव्य-कषाय है। ..."लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ । लोभवेयणिज्ज कम्मं न बंधइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ । (उ २९।६८-७१) '
उत्पत्ति कषाय क्रोध-विजय से जीव क्षमा को उत्पन्न करता है। खेत्ताइ समुप्पत्ती जत्तोप्पभवो कसायाणं ।। वह क्रोधवेदनीय कर्म का बंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध
(विभा २९८२) तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
जिस क्षेत्र या द्रव्य आदि से कषाय की उत्पत्ति मान-विजय से जीव मृदुता को उत्पन्न करता है। होती है, वह उत्पत्ति-कषाय है। वह मानवेदनीय कर्म का बन्धन नहीं करता और पूर्व- प्रत्यय कषाय बद्ध तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
होइ कसायाणं बंधकारणं ज स पच्चयकसाओ। माया-विजय से जीव ऋजुता को उत्पन्न करता है। सहाइउ त्ति केई न सम्प्पत्तीए भिन्नो सो ॥ वह मायावेदनीय कर्म का बंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध
(विभा २९८३) तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
जो कषायबंध का आन्तरिक कारण अविरति आदि ____लोभ-विजय से जीव सन्तोष को उत्पन्न करता है। है, वह प्रत्यय कषाय है। वह लोभवेदनीय कर्म का बंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध कुछ आचार्य शब्द आदि बाह्य कारणों को प्रत्ययतन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
कषाय मानते हैं, लेकिन यह युक्त नहीं है, क्योंकि शब्द
आदि बाह्य कारणों का उत्पत्ति-कषाय में समावेश हो १०. कषाय के द्रव्य आदि प्रकार
जाता है। नाम ठवणा दविए उप्पत्ती पच्चए य आएसे । आदेश कषाय रस-भाव-कसाए"
आएसओ कसाओ कइयवकयभिउडिभंगुरागारो। (विभा २९८०)
केई चित्ताइगओ ठवणाणत्थंतरो सोऽयं ।। कषाय के आठ प्रकार --
(विभा २९८४) १. नाम कषाय ५. प्रत्यय कषाय
अन्तरंग कारण के बिना नट आदि के द्वारा कपट २. स्थापना कषाय
६. आदेश कषाय
युक्त क्रोध आदि दिखाया जाता है, वह आदेश कषाय है । ३. द्रव्य कषाय
७. रस कषाय
कुछ मानते हैं, चित्र आदि में जो क्रोध आदि कषाय ४. उत्पत्ति कषाय
८.भाव कषाय दिखाई देता है, वह आदेश-कषाय है, लेकिन इसका
स्थापना-कषाय में समावेश हो जाता है।
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