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एषणासमिति
नवकोटि शुद्ध भिक्षा
- वृद्ध व्यक्ति यदि अन्य व्यक्ति का सहारा लिये हुए और हरियाली से उन्मिश्र हो तो वह भक्तपान संयति के हो, सुदृढ़ शरीर वाला हो अथवा घर का स्वामी हो तो लिए अकल्पनीय होता है। उससे भिक्षा ली जा सकती है।
८. अपरिणत मत्त व्यक्ति श्रावक हो, परवश न हो, वहां अन्य
कंद मूलं पलंबं वा. आमं छिन्नं व सन्निरं । गृहस्थ न हो तो उससे भिक्षा ली जा सकती है।
तुंबागं सिंगबेरं च, आमगं परिवज्जए । उन्मत्त, यक्षाविष्ट व्यक्ति पवित्र और भद्र हो, कम्पमान व्यक्ति के हाथ से वस्तु न गिर रही हो, ज्वरित
(द ५।१।७०) व्यक्ति का ज्वर उतर गया हो, अन्धा व्यक्ति देय वस्तु
मुनि अपक्व कंद, मूल, फल, छिला हुआ पत्ती का
शाक, घीया और अदरक न ले। को पुत्र आदि के हाथ के सहारे दे रहा हो-इन सबके हाथ से भिक्षा ली जा सकती है।
९. लिप्त झरता हुआ कोढ न हो, सामने अन्य गृहस्थ न हो
घेत्तव्वमलेवकडं लेवकडे मा ह पच्छकम्माई। तो कोढी व्यक्ति से भिक्षा ग्राह्य है।
न य रसगेहिपसंगो॥ (पिनि ६१३) पादुकारूढ व्यक्ति स्थिर हो, सांकल से बंधा व्यक्ति
लेपकृति गृह्यमाणे पश्चात्कर्मादयो दध्यादिलिप्तचलने में कष्ट का अनुभव न करता हो, हाथ-पैर कटा
हस्तादिप्रक्षालनादिरूपा दोषाः । आदिशब्दात् कीटिव्यक्ति बैठा हो, पास में अन्य गृहस्थ न हो तो इन सबके
. कादिसंसक्तवस्त्रादिना प्रोच्छनादिपरिग्रहः । हाथ की भिक्षा ग्राह्य है।
(पिनिवृ प १६६) अप्रतिसेवी नपुंसक से भिक्षा ली जा सकती है। कालमास प्राप्त गर्भवती स्त्री से तथा स्तनोपजीवी बाल
मुनि को अलेपकृत आहार ग्रहण करना चाहिये । यक्त स्त्री से स्थविरकल्पी भनि भिक्षा नहीं लेते। जिन- इससे रसगृद्धि का प्रसंग नहीं आता। लेपकृत आहार कल्पी मनि गर्भवती स्त्री मात्र से तथा जिसका शिश अभी लेने से पश्चात्कम आदि दोष लगते हैं-दही आदि से बाल अवस्था में है, उस स्त्री से भिक्षा नहीं लेते । मंग लिप्त हाथों को सचित्त जल से धोया जाता है। आदि का कंडन करती हुई स्त्री मुशल को निरवद्य स्थान १०. छदित में रख भिक्षा दे सकती है । मुशल पर सचित्त बीज न लगा हो तो वह भिक्षा कल्पनीय है।।
आहरंती सिया तत्थ, परिसाडेज्ज भोयणं ।
देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ___ इसी प्रकार अचित्त धान्य पीसती हुई, शंखचूर्ण आदि से असंसक्त दधि को मथती हुई, सचित्त चूर्ण से
(द ५।१।२८) अलिप्त हाथों से सूत कातती हुई स्त्री से तथा जहां भी
यदि साधु के पास भोजन लाती हई गहिणी उसे पश्चात् कर्म आदि दोषों की संभावना न हो तो उसके
गिराए तो मुनि उस देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे- इस हाथ से भिक्षा ली जा सकती है।
प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता। जहां छह काय के जीवों की विराधना का प्रसंग
६. नवकोटि शुद्ध भिक्षा हो, वहां कोई अपवाद नहीं है, वैसी भिक्षा अग्राह्य ही
... णवकोडीपरिसुद्धं उग्गम-उप्पायणेसणासुद्धं ।...
(दनि ४४) ७. उन्मिथ
प्रथमतः कोटयो नव भवन्ति, तद्यथा-स्वयं हननअसण पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा ।
मन्येन घातनमपरेण हन्यमानस्यानुमोदनं, तथा स्वयं पुप्फेस होज्ज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ॥
पचनमन्येन पाचनमपरेण पच्यमानस्यानुमोदनं, तथा तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।...
स्वयं क्रयणमन्येन क्रायणमपरेण क्रीयमाणस्यानुमोदनम् ।
(द ५।११५७,५८) इहाद्याः षडविशोधिकोटयोऽन्तिमास्तु तिस्रो विशोधियदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य पुष्प, बीज कोटयः ।
(पिनिवृ प ११९)
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