SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आशातना १३० आशातना के प्रकार यरियस्स आसायणाए २०. जं वाइद्धं २१. वच्चामेलियं २९. दुष्ठु-प्रतीच्छित -ज्ञान को सम्यग् भाव से ग्रहण न २२. हीणक्खरं २३. अच्चक्खरं २४. पयहीणं २५. विणय- करना। हीणं २६. घोसहीणं २७. जोगहीणं २८. सुठुदिण्णं ३०. अकाल में स्वाध्याय करना । २९. दुपडिच्छियं ३०. अकाले कओ सज्झाओ ३१. काल में स्वाध्याय न करना । ३१. काले न कओ सज्झाओ ३२. असज्झाइए सज्झाइयं ३२. अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करना । ३३. सज्झाइए ण सज्झाइयं । (आव ४।८) ३३. स्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करना। आशातना के तेतीस प्रकार हैं१. अर्हन्तों की आशातना । (ख) आशातना के प्रकार२. सिद्धों की आशातना। १. सेहे रातिणियस्स पुरतो गंता भवति, आसातणा ३. आचार्यों की आशातना । सेहस्स। ४. उपाध्यायों की आशातना । २. सेहे रातिणियस्स सपक्खं गंता भवति, आसातणा ५. साधुओं की आशातना। सेहस्स। ६. साध्वियों की आशातना। ३. सेहे रातिणियस्स आसण्णं गंता भवति, आसातणा ७. श्रावकों की आशातना । सेहस्स। ८. श्राविकाओं की आशातना। ४. सेहे रातिणियस्स पुरतो चिट्ठित्ता भवति, ९. देवों की आशातना। आसातणा। १०. देवियों की आशातना । ५. सेहे रातिणियस्स सपक्खं चिद्वित्ता भवइ, आसातणा। ११. इहलोक की आशातना। ६. सेहे रातिणियस्स आसण्णं चिट्ठित्ता भवइ, १२. परलोक की आशातना। आसातणा। १३. केवली प्रज्ञप्त धर्म की आशातना । ७. सेहे रातिणियस्स पुरतो निसीइत्ता भवति, १४. देव, मनुष्य और असुर सहित लोक की आशातना । आसातणा। १५. सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों की आशातना । ८. सेहे रातिणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवति, १६. काल की आशातना । आसातणा। १७. श्रुत की आशातना । ९. सेहे रातिणियस्स आसण्णं निसीइत्ता भवति, १८. श्रुत देवता की आशातना । आसातणा। १९. वाचनाचार्य की आशातना। २०. व्याविद्ध --व्यत्यासित वर्ण-विन्यास करना - कहीं १ १०. सेहे रातिणिएण सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खंते के अक्षरों को कहीं बोलना। समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए आयमति पच्छा २१. व्यत्यानेडित-उच्चार्यमाण पाठ में दूसरे पाठों का रातिणिए, आसायणा मेहस्स। मिश्रण करना। ११. सेहे रातिणिएण सद्धि बहिया वियारभूमि वा २२. हीनाक्षर-अक्षरों को न्यून कर उच्चारण करना । विहारभूमि वा निक्खंते समाणे तत्थ पुवामेव २३. अत्यक्षर-अक्षरों को अधिक कर उच्चारण सेहतराए आलोएति पच्छा रातिणिए, आसायणा करना। सेहस्स। २४. पदहीन-पदों को कम कर उच्चारण करना । १२. केयी रातिणियस्स पुव्वलत्तए सिया, तं पुवामेव २५. विनयहीन-विराम-रहित उच्चारण करना। सेहतराए आलवति पच्छा राइणिए, आसातणा २६. घोषहीन-उदात्त आदि घोषरहित उच्चारण सेहस्स। करना। १३. सेहे रातिणियस्स रातो वा दिया वा वाहरमाणस्स २७. योगहीन-सम्बन्ध-रहित उच्चारण करना। अज्जो ! के सुत्तो के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे २८. सुष्ठदत्त-योग्यता से अधिक ज्ञान देना। रातिणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति, आसातणा सेहस्स । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy