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पुरोवाक् ११. एकार्थक कोश
इसमें लगभग १०० ग्रन्थों से एकार्थक शब्दों का संग्रहण किया है। उनमें आगम तथा उनके व्याख्याग्रन्थों के साथ-साथ अंगविज्जा का भी समावेश है। इस कोश में लगभग १७०० एकार्थकों का अर्थ-निर्देश और प्रमाण दिया गया है। सारे शब्द लगभग ८००० हैं। इसमें धातुओं के एकार्थक भी हैं। अनेक एकार्थकों के सभी शब्द देशी हैं। उनका भी संकलन किया गया है । इसका संपादन समणी कुसुमप्रज्ञा ने सन् १९८४ में किया था । १२. निरुक्त कोश
निरुक्त या निर्वचन विद्या बहुत प्राचीन है। प्रस्तुत कोश में अकारादि अनुक्रम से मूल प्राकृत शब्दों का प्राकृत या संस्कृत में निर्वचन प्रस्तुत किया गया है। इसमें मूल में १७५४ शब्दों का निर्वचन है तथा प्रथम परिशिष्ट में कृदन्तव्युत्पन्न २०८ निरुक्त और दूसरे परिशिष्ट में तीर्थकर-अभिधान निरुक्त हैं। इसमें ७४ ग्रन्थों का समावेश है । साध्वी सिद्धप्रज्ञा और साध्वी निर्वाणश्री ने सन् १९८४ में इसका संपादन किया था। १३. देशी शब्दकोश
प्रस्तुत कोश में आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका आदि में प्रयुक्त देशी शब्दों का सप्रमाण संकलन है। इसमें दस हजार से अधिक देशी शब्द संग्रहीत हैं। आचार्य हेमचन्द्र की देशीनाममाला का इसमें अविकल समावेश किया गया है। इसमें कुछ शब्द कन्नड, तमिल, मराठी आदि भाषाओं के भी हैं । ४३९ पृष्ठों में अकारादि क्रम से देशी शब्द. उनका अर्थ, संदर्भ-स्थल और व्यवहति का उल्लेख है। इसमें शताधिक ग्रन्थों का उपयोग हआ है। इसके दो परिशिष्ट हैं --अवशिष्ट देशी शब्द तथा देशी धातु चयनिका। इसका संपादन मुनि दुलहराज ने सन् १९८८ में किया था। १४. आगम वनस्पति कोश
जैन आगमों में वनस्पतियों के नाम प्रचुरता से प्राप्त हैं। टीकाकाल में भी उनकी पहचान विस्मृत-सी हो गई थी। कुछेक वनस्पतियों की पहचान विपरीत अर्थ में की जा रही थी। प्रस्तुत कोश में लगभग ४५० वनस्पतियों का सचित्र प्रस्तुतीकरण और उनकी सप्रमाण विज्ञप्ति मुनि श्रीचन्द्र 'कमल' ने की है। यह जैन आगम वनस्पति का पहला कोश है, जिससे प्राचीन वनस्पतियों का आधुनिक परिचय प्राप्त होता है। इसका प्रकाशन वर्ष है--सन् १९९६ । (नं० १० से १४-ये पांचों कोश जैन विश्व भारती, लाडनं से प्रकाशित हैं।) १५. लेश्याकोश १६- क्रियाकोश १७. योगकोश
इन तीनों के संपादक हैं -स्व. मोहनलाल बांठिया तथा श्रीचन्द्र चोरडिया। संपादकद्वय ने लेश्या, क्रिया और योग के बिखरे संदर्भो को जैन आगम साहित्य से एकत्रित कर उनके सुसंयोजित रूप को लेश्याकोश, क्रियाकोश और योगकोश के रूप में प्रकाशित किया था। सारा विषय उपबिंदुओं में विभक्त है तथा हिन्दी भाषा के अनुवाद से अन्वित है। लेश्याकोश सन् १९६६ में, क्रियाकोश १९६९ में जैन दर्शन समिति, कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है। श्रीभिक्षु आगम विषय कोश
प्रस्तुत कोश में पांच आगम-(१) आवश्यक (२) दशवकालिक (३) उत्तराध्ययन (४) नन्दी (५) अनुयोगद्वार और इनके व्याख्याग्रन्थों का समवतार किया गया है।
इस लघुकाय समवतार में भी विषयों की विविधता बहल परिमाण में है। आवश्यक छोटा आगम है
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