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अस्वाध्याय
अस्वाध्याय : चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण
काल से-मनुष्य संबंधी मृत्यु का एक अहोरात्र । राजा, अमात्य, सेनापति आदि विशिष्ट व्यक्तियों के
हड्डियां यदि सौ हाथ के भीतर स्थित हों तो मनुष्य मर जाने पर अथवा राज्य में किसी प्रकार का क्षोभ की मत्य के दिन से लेकर बारह वर्षों तक। यदि हड्डियां उत्पन्न हो जाने पर, जब तक दूसरे राजा की नियुक्ति न चिता में दग्ध या वर्षा से प्रवाहित हों तो अस्वाध्यायिक हो अथवा क्षोभ समाप्त न हो तब तक अस्वाध्यायिक नहीं होता। लड़की उत्पन्न हो तो आठ दिन । लड़का रहता है। दूसरे राजा की नियुक्ति होने पर भी एक उत्पन्न हो तो सात दिन । तिर्यंच संबंधी हो तो जन्म- अहोरात्र तक अस्वाध्याय-काल रहता है। काल से तीसरे प्रहर तक। यदि बिल्ली चूहे आदि का
५. अस्वाध्याय : महामारी, दुभिक्ष, युद्ध घात करती हो तो एक अहोरात्र तक अस्वाध्याय रहता
असिवोमाघयणेसुं बारस अविसोहियंमि न करंति । भाव से-नन्दी, अनुयोगद्वार, तन्दुलवैचारिक आदि
झामिय वढे कीरइ आवासिय सोहिए चेव ।। सूत्रों के अध्ययन का वर्जन।
(आवनि १३५९) अंडगमुझियकप्पे न य भूमि खणंति इहरहा तिन्नि । महामारी, दुर्भिक्ष अथवा युद्ध में अनेक व्यक्तियों की असज्झाइयपमाणं मच्छियपाओ जहि न बूड्डे॥ मृत्यु हो गई हो और वह स्थान अग्नि, जल आदि द्वारा
(आवभा २१९) शुद्ध न किया गया हो तो बारह वर्ष तक अस्वाध्यायिक साधु के उपाश्रय से साठ हाथ की दूरी तक कोई रहता है। अंडा फट जाये तो तीन प्रहर तक अस्वाध्याधिक रहता ६. अस्वाध्याय : चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण है। मक्खी का पंख डबे, उतना अंडे का रस हो तो
उक्कोसेण दुवालस चंदु जहन्नेण पोरिसी अट्ट। अस्वाध्याय होता है।
सूरो जहन्न बारस पोरिसि उक्कोस दो अट्ठ॥ ३. अस्थि संबंधी अस्वाध्याय
(आवनि १३४२) दंते दिट्ठि विगिचण सेसट्ठी बारसेव वासाई ।
चंदो उदयकाले गहिओ संदसियराईए चउरो अण्णं झामिय वूढे सीआण पाणरुद्दे य मायहरे ।। च अहोरत्तं एवं दुवालस। अहवा उप्पायगहणे सव्वराइयं
(आवनि १३५७) गहणं, सग्गहो चेव निबुड्डो संदूसियराईए चउरो अण्णं च सीयाणे जं दिठें तं तं मुत्तूणऽनाहनिहयाणि । अहोरत्तं एवं बारस । अहवा अजाणओ, अब्भछण्णे संकाए आडंबरे य रुद्दे माइसु हिट्ठट्ठिया बारे ॥ न नज्जइ, केवलं ग्रहणं, परिहरिया राई, पहाए दिलैं
(आवभा २२२) सग्गहो निब्बुडो, अण्णं च अहोरत्तं एवं दुवालस । दांत-अस्थि कहीं गिर जाये तो उसे प्रयत्नपूर्वक सूरस्स अत्थमणगहणे सग्गहनिब्बुडो, उवहयरादीए खोजकर सौ हाथ की दूरी पर परिष्ठापित करे। यदि चउरो अण्णं च अहोरत्तं एवं बारस । अह उदयंतो वह न मिले तो उद्घाटन कायोत्सर्ग कर स्वाध्याय करे। गहिओ तो संदसिए अहोरत्ते अट अण्णं च अहोरत्तं शेष अस्थियों का बारह वर्ष तक अस्वाध्याय रहता है। परिहरइ एवं सोलस । श्मशान में अस्थियों के दग्ध हो जाने पर अथवा
(आवहाव २ पृ१६५) जल-प्रवाह में बह जाने पर अस्वाध्याय नहीं होता।
चन्द्रग्रहण में जघन्यत: आठ प्रहर (रात्रि के चार श्मशान में शव पड़ा हो, पाण-रुद्र-मातृ-गृह (यक्षायतन) प्रहर तथा दसरे दिन के चार प्रदर) और उत्कष्टतः के नीचे मृत व्यक्ति की अस्थियां स्थापित की गई हों।
बारह प्रहर तक अस्वाध्यायिक रहता है। सूर्यग्रहण में और वह स्थान सौ हाथ की सीमा में हो तो बारह वर्ष
जघन्यतः बारह प्रहर और उत्कृष्टत: सोलह प्रहर तक तक अस्वाध्यायिक रहता है।
अस्वाध्यायिक रहता है। ४. राजा आदि की मृत्यु और अस्वाध्याय
चन्द्र के उदयकाल में ही यदि ग्रहण हो जाता है तो वोग्गह दंडियमादी संखोभे दंडिए य कालगए। उस संदूषित रात्री के चार प्रहर तथा अहोरात्र के आठ अणरायए य सभए जच्चिर निद्दोच्चऽहोरत्तं ।। प्रहर- इस प्रकार बारह प्रहर का अस्वाध्याय-काल
(आवनि १३४४) होता है। अथवा जब उत्पादग्रहण-चन्द्र का सार्वरात्रिक
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