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स्वप्ननिमित्त
कुशीला श्यामलोलाक्षी, रोमजङ्घा च भर्तृहा । महिलोन्नतोत्तरोष्ठी, नित्यञ्च
कलहप्रिया ॥
( उसुवृ प १२९) जिसके मस्तक के बायें भाग में वामावर्त्त होता है, वह लक्षणहीन पुरुष भूख से क्लान्त बना रूक्ष भोजन प्राप्त करता है ।
जिस व्यक्ति के मस्तक के दायें भाग में दक्षिणावर्त्त होता है, उसके हाथ में सदा लक्ष्मी निवास करती है ।
यदि सिर के दायें भाग में वामावर्त्त और बायें भाग में दक्षिणावर्त्त हो तो उस व्यक्ति को जीवन के सन्ध्याकाल में भोग प्राप्त होते हैं ।
भाग्यशाली व्यक्ति का हृदय, मुंह और ललाट विशाल होता है । उसकी नाभि, सत्त्व और स्वर – ये तीनों गम्भीर होते हैं ।
महीन केश, सूक्ष्म दांत और सूक्ष्म नख सुख के हेतु हैं । लघु कण्ठ, पीठ, जंघा और लिंग शुभ होते हैं । जो धन्य और दीर्घजीवी हैं, उनकी जीभ, हथेली और पैर के तलवे लाल होते हैं तथा हाथ-पैर मोटे होते हैं ।
दांतों और आंखों की स्निग्धता, अच्छे भोजन की प्राप्ति और सुभगता - ये मनुष्य के शुभ लक्षण हैं । जो अत्यन्त नाटा, अत्यन्त लंबा, स्थूलकाय और काला होता बह निन्दनीय है ।
जिसके ललाट पर पांच रेखाएं होती हैं, वह शतायु होता है । चार रेखाओं वाला नब्बे वर्ष, तीन रेखाओं वाला साठ वर्ष, दो रेखाओं वाला चालीस वर्ष तथा एक रेखा वाला तीस वर्ष तक जीवित रहता है । श्यामवर्ण और चंचल आंखों वाली स्त्री होती है । जिसकी जंघा पर रोम होते हैं, अपने पति का हनन करने वाली होती है । वह स्त्री कलहप्रिय होती है, जिसके उपरितन होठ मोटे होते हैं । ७. स्वप्ननिमित्त
कुशील
वह स्त्री
स्वप्नं चेत्यत्रापि रूढितः स्वप्नस्य शुभाशुभफलसूचकं शास्त्रमेव, तद्यथा
अलंकृतानां द्रव्याणां वाजिवारणयोस्तथा । वृषभस्य च शुक्लस्य, दर्शने प्राप्नुयाद्यशः ॥ मूत्रं वा कुरुते स्वप्ने, पुरीषं चापि लोहितम् । प्रबुध्येत तदा कश्चिल्लभते सोऽर्थनाशनम् ॥ ( उशावृ प २९५) स्वप्न के शुभ-अशुभ फल का सूचक शास्त्र स्वप्न - शास्त्र कहलाता है ।
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अष्टांगनिमित्त
अलंकृत द्रव्य, घोड़ा, हाथी, श्वेत वृषभ - इनके दर्शन से यश प्राप्त होता है । जो स्वप्न में मूत्र अथवा रक्तवर्ण का मल विसर्जित करता है और फिर जाग जाता है, उसका धन नष्ट हो जाता है । स्वप्नों के फल
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अणु-दि- चितियविवज्जियं सव्वमेव जं सुमिणं । जायइ अवितफलयं सत्यसरीरेहि जं दिट्ठ ॥ पढमम्मि वासफलया, बीए जामम्मि होंति छम्मासा । तइयम्मि तिमासफला, चरिमे सज्जप्फला होंति ।। आरोहणं गो-विस- कुंज रेसुं, पासाय - सेलग्ग - महादुमेसु । विद्वाणुलेव रुइयं मयं च, अगम्मगम्मं सुविणेसु धन्नं ॥ तुरगारुणे पंथो, करह खरे सेरिभे हवइ मच्चू । सिरछेयम्मि य रज्जं, सिरप्पहारे धणं लहइ ॥ दहि-छत्त - सुमण - चामर - वत्थ ऽन्न फलं च दीव - तंबोलं । संख सुवन्नं मंतझओ य लद्धो धणं देइ ॥ गय-वसह - अल्लमंसाण दंसणे होइ सोक्खधणलाभो । रत्तवडखमणयाणं, मरणं पुण दंसणे होइ ॥
( उसुवृ प १३० ) होते हैं । एक यदि वह दृश्य उस व्यक्ति का
स्वप्न शुभ-अशुभ फल के सूचक स्वस्थ व्यक्ति स्वप्न में जो कुछ देखता है पूर्व अनुभूत, दृष्ट और चिंतित न हो तो स्वप्न अवश्य फलित होता है । रात्रि के पहले प्रहर में में फलित होता है । दूसरे महीनों में, तीसरे प्रहर का
प्रहर का स्वप्न तत्काल फल देता है ।
गाय, बैल, हाथी, प्रासाद, पर्वतशिखर और विशाल
वृक्ष पर आरोहण, विष्ठा - लेप, रुदन करना, मर जाना, अप्राप्त को प्राप्त कर लेना - ऐसा स्वप्न देखने वाला धन्य होता है ।
स्वप्न में अश्व पर आरोहण का फल है - यात्रा । करभ, गर्दभ और सेरिभ पर चढ़ने वाला मृत्यु प्राप्त करता है । स्वप्न में शिरच्छेद होने पर राज्य मिलता है। सिर पर प्रहार होने पर धन प्राप्त होता है ।
दही, छत्र, फूल, चामर, वस्त्र, अन्न, फल, दीप, तंबोल, शंख, स्वर्ण और मन्त्रध्वज की प्राप्ति का स्वप्नदर्शन धन देता है ।
हाथी, वृषभ और आर्द्र मांस का स्वप्न-दर्शन सुख
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देखा गया स्वप्न वर्ष भर प्रहर में दृष्ट स्वप्न छह तीन महीनों में और चौथे
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