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सिप
अभिधानराजेन्द्रः। प्रसंगामागस्नमर जाब बिहराहिात कह जयजपसदं पठ- उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि य वास्लुयाएशीय अति । लए मं से सियभ कुमारे राया जाए महमा हिम- वेति रएति वेर्ति रएत्ता सरएणं अरणि महेति सरएता अंत बसमा जाप विहरद्द । तएवं से मिचे राया अभया अग्गि पाडेति अत्ता अग्गि संधुक्केइ अत्ता समिहाकट्ठाई क्या सोमांसि तिहिकरणदिवममुहुत्तमक्ख संसि विपुल पक्खिबइ समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अग्गि उज्जालेइ भ. भरणपाणखाइमसाइमं उपक्खडावेंति उवषखडावेत्ता मि- ता, अम्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादरे । तं जहाजणाइमिषमजार परिजथं रायाणो य खत्तिया आमंतेति “सकहं वक्कलं ठाणं, सिजा भंडं कमंडलुं । दंडदारं तहा मामतेत्ता तमो पच्छा सवाए जाब सरीरे भोप- पाणं, अहे ताई समावहे ॥ १॥" महुणा य घएस य बलाए भायणमंडसि सुहासणवस्यए तेणं मित्तणा- तदुलाह य माग्ग हुणइ, अाग्ग हुाणता
तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणिता चरुं साहेइ, ति फिगसपण जाब परिजणेणं राएहि य खचिएहि चळं साहेत्ता बलिवइस्सदेवं करेइ , पलिवइस्सदेवं कबसद्धि विपुलं असणषाणखाइमसाइमं एवं जझा ता- रेचा अतिहिपूयं करेइ अतिहिपूयं करेत्ता तमो पच्छा मली मार सकारेति समायति सकारत्ता संमाणेचा तं शप्पणा माहारमाहारेति । तए णं से सिये रापरिसी दोमित्तणाति जाब परिजणं रामाणो अखटिए यनि-चं अट्ठक्खमणं उपजिला ण विहरइ, तए णं से सिवे पमई च रायाणं आपुच्छइ आपुच्छिचा सुबहुं लो- रायस्मिी दोच्चे छडक्समणपारमगंसि मायाक्मभूमीहीलोहकडाहकडच्छुयं० जाच मंडं गहाय जे इमे गंयाकुल- ओ पच्चारुहइ अायावण. ता एवं जहा पढमपारणगं गा याणपत्था वाचसा भवंति तं व जाब तेसि नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति पो०त्ता दाहिणाए दिमाए अंतिए मुंडे भविचा दिसापोक्खियतावसत्ताए पब्बइए, जमे मह राय पत्थाणे पत्थियं सेस तं चेच आहारमाहापन्यइएऽवि यण समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभि- रेइ । तए ण से सिवराय रिसी तच्च छक्खमणं उरसंमिराहइ-कप्पड़ मे जावजीवाए छटुंतं चेव जाव - पजिसाण विहरति । तए णं से सिव रायश्मिी से तं भिग्गहं अभिगिरहइ अभिगिमिहत्ता पढम छक्खमणं चेव नवरं पच्चच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पस्थाउपसंपञ्जित्ता णं विहरइ । तए णं से सिवे रायरिसी णे पत्थियं ससंत चेष० जाव आहारमाहासह । तए ण से पढ़मक्खमणपारणामंसि भायाषणभूमीए पचोरुहइमा- सिवे रायरिसी चउत्थं छटुक्खमणं उवसंपजिला णं विहयावणभूमीए पचरुहिता वागलपत्थानयत्थे जेणेव सए सइ, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्कमणं एवं उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छिता किदिणसंका- संचव नवरं उत्तरदिसं पोक्खेइ उत्तराए दिसाए वेसमणे इयग गिरहइ गिरिहत्ता पुरच्छिमंदिसं पोक्लेइ पुरच्छि- महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेसं चेव माए दिमाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ जाघ तो पच्छा अप्पणा माहारमाहारेइ । (म्मू०४१७) सिव रायरिसी अभि० २, जाणि य तत्थ कंदाथि य म- ताणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुं छठेणं अनिक्खिलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य तेण दिसाचकवालेणं जाव पायावेमाणस्म पगइममाए बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ ति कह पु- जाव विणीययाए अन्नया कयात्रि तयावरणिजाणं करच्छिमं दिसं पसरति पुर०त्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य म्माणं खोवसमेणं ईहापोहमग्गणगवसणं करेमाणस्स
जाव हरियाणि य ताई गेपहइ गेमिहत्ता किदिणसंकाइयं विभो नाम नाणे समुप्पो , से णं तेग त्रिभंगणा-- मेरेइ किदि० ता दम्भे य कुसे य समिहाश्री य पत्तामोडं णेणं समुप्पमेण पासइ अस्सि लोए सत्त दीवे सत्त च गेण्हइ गरिहत्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ समुद्दे तेण परं न जाणति, न पासति । तए णं तस्स सि२त्ता किढिणसंकाइयगंठवेइ किढि०त्ता वेदि बडई वेदि वड्डि- वस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अब्भस्थिए जाव समुत्ता उबलेवणसमजणं करइ उवत्ता दब्भमगब्भकलसाह- प्पजित्था--अस्थि णं ममं अइससे नाणदंसणे समुप्पन्ने स्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ गंगामहा. एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुदा तेण परं नदी भोगाहेति २ ता जलमजणं करेइ २ ता जलकीडं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, एवं संपहेइ एवं संपेहेत्ता माकरइ करेना जलाभिसेयं करेंति करता पायंते यावणभूमीमो पच्चोरुहइ आया०हित्ता वागलवत्थानयत्थे चौक्ख परमसुइभूध देवयपितिकयकब्जे दग्भसगब्भ- जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ.उवा०त्ता सुबहुं लोहीकलसाहत्थगए गंगाओ महानईग्रो पच्चुत्तरइ पच्चुत्त- लोहकडाहकडुच्छुयं जाव भंडगं किढिपसंकाइयं च मे रिता जेणेव सए उडए तर उबागच्छद तणेच एहइ गरिहत्ताजेणेव हथिणापुरे नगरे जेणेव सावसाप
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