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( १००३ ) अभिधान राजेन्द्रः ।
सुरिन्द्रदत
तद्दिवसं चैव मया, धन्नउरे कुक्कुरे जाश्रो ॥ ६२ ॥ प्रिय गुरसेव । कोसल्लियं ति पहिलो, पत्ता ते समगमुवनिवई ॥ ६३ ॥ घर सुपालाएं, समप्पिया निवइणा पहिए ।
अतिथि पाति जसे ॥ २४ कालमे मरि ते दो विहु दुप्पवेसनामबसे । जावा साधन्तु भक्ति मया ॥ ६५ ॥ ते मीणसुंसुमारा, जाया सिप्पा नईइ मज्झमि । परिसियन कमावि साखिया निइया ॥ ६६ ॥ तो उज्जेणिपुरिए, मेसो छग़ले य ते समुप्पन्ना । पारद्धिपसत्तें, गुणहररना कयावि हया ॥ ६७ ॥ सत्येय पुणो जाया, मेसो महिसो व गुदरनिवेश । सोलु हाबिया कहा८ ॥ भवियन्वयावसेणं, पुणवि तत्थेव ते विसालाए । मायंगपाडयंमी, उवचन्ना कुक्कुडीगन्भे ॥ ६६ ॥ सीए कुक्कुडियाए, दुट्ठविरालेख खज्रमाणीए । मीवार अंड, परिगलिये कयपरस्परं ॥ १०० ॥ इत्तोय तेसिमुर, बीए कजश्र परिद्वविधो । तस्सुन्द्दार कमसो, कुक्कुडपोया दुबे जाया ॥ १०१ ॥ सिचंद-दिमा धवलयाई जावाई धूला समुष्भूषा, सुमुदगुंजरागसमा ॥१०२॥ कइयावि कालनामे - तलवरेण इमे निरऊं । उसी ति काउ गुदरनदि ॥१०३॥ भणियं निवेण तलवर, जन्थ अहं जामि तत्थ तुमए वि । ए सह या इमो वि गवाह एवं ति ॥ १०४॥ मसमर्थमि, उरजुनियो पत्तो कुसुमावरमारामे, कुक्कुड गयकालो वि॥१० सत्थ य कयलीहर मज्झ माहवीमंड ठिश्रो राया । कालो असोषविडी इतरछे मुखपरं ॥१०६॥ सोते भावसहियं, ति बंदिश्रो तस्स मुणिवरेणावि । दिन्नो य धम्मलाभो, संपाडियसयल सुहलाभो ॥१०७॥ संबंडु पगइउवसे-तर्कतरुवं पसम्नसहवयं । हिट्ठो भगइ तलारो, भयवं ! को तुज्झ धम्मु त्ति ॥ १०८ ॥ साह मुखी महायस, असे सत्ता रक्खं सययं । कुच्चय धम्म विभागो मो॥१०६॥
तथाहिजीवदय सच्चयणं, परधणपरियजणं सया बंभं । सयमपरिमयाओ, विजयसिस ॥११०॥ बायाली सेस दो-ससुद्धपिंडस्स भोय विहिणा । अप्पविद्धविहारो सारो धम्मो ह ज ॥१९२॥
तलव पुरा, महस्यम्मी कहेसु मे भवयं ! | परपारिको मुवि जंप तो पर्व ॥ ११२ ॥ अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुगो जिणमयं मह प्रमाणं । इय सम्मतपुरस्सर - मिमाइँ बारस वयाइँ इ. ॥११३॥ sofreeराहा. दुहा तिहा तस जिया न तया । कन्ना चिाह मुहं धूलमलीयं न यत्तव्यं ॥१४॥ खत्तखराणाइचोरं, कारकरमदिन्नयं न घेतव्यं । परदारपरीहारी अद्यापि सदारतोसो. ॥११४॥ धधन्नापरम्मद परिमार्कमा काय ।
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सुरिन्ददत्त
किच्ची साडी र ई ॥१६॥ मसाईबाबा का विगमुद्दपरिणा। जसो जेडो १११७ सममाया साम खतिं स्यादि काय देसावासिये पु प ०११ देसे सम्य दुद्दा, ससत्ति पोसहवयं वियवं । साहू सुद्धदा, भत्तीए संविभागवयं. ॥९९६॥
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एयं दुवालसविहं गिद्दिधम्मं पाणिणां विद्दियविहिरा । कमसो विसोहियं क मकयवरं जंति परमपयं ॥१२०॥ तं सोड भग कालो भय! एवं करेमि गद्द
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किंतु मागयमे दिये सोम न ह ॥ १२३ ॥ वागर तो साहू, जइ एयं नो चरसि भो भद्द ! | इस कुक्कुड मिहुरां पित्र, तो लहिसि भवे श्रसत्रं ॥ १२२॥ सो ग्राहकहमिमेहि, जीववदं श्रचउं दुह पत्तं " तो मूलाश्र कहिया, मुणिया तेसि भया एवं ॥ १२३ ॥ ४ सुरजी लिहिसाणा, सग्रही मीसुमारा । मेगली मेस महिला कुक्कुजुर्ग जाय ||१२४३ निलय अर्गाणि दंदोलि विसुद्ध संगो पभण्इ भत्तीए दंडपासिश्रो वासिनो हियए ||१२|| भवं निधार इमाउ भवभीमकृवकुदरा fifeधम्मवरताप, निष्पन्नाप गुणगरोहिं ॥ १२६ ॥ तो
साहुणा तलवगे, सावयधम्मस्स भायं विहिश्रो । पञ्च परमिट्टिमनं, निर्भतं तदय सिक्खवित्रों ॥ १२७ ॥ अहि देहि फुडे सुगंहि । पर्ण जाईसाएं, तदेव गिडिम्वरस्य ॥ १५८॥ श्रनिव्यपरेहिं संविग्गमणेहि हरिसविवसेहि । महया महया सद्दे ण कूइयं तं सुयं रन्ना ॥ १२६ ॥ उच्च मह सरवेदिनं जामिय नरवणा इगइ सुखा, ते दोषि दया गया निहं ॥ १३० ॥ गभे जावली, पुत्तत्ताए सुरिंददत्तजिनों । सुपीओ पुल पुतिभावेण ॥ १३४॥
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यादेवी सामरिया सदिया।" जिण्पवयण सर्वणमई, संजाया अभय दारु ॥ १३२ ॥ नी से सजीव अभय डोलतीसे । नयर पयडेउ अमा-रि घोसणं पूरिश्रो रना ॥ १३३ ॥ कफमेदेलियन तो कारवियं नयरे, नित्रेण वज्रावणं गरुयं ॥ १३४ ॥ अहं बारसंमि दिवसे, ठवियं कुमरस्त श्रभयरुद्द नाम । कुमरी अभयम, ति दोषि बहुत सु ॥१३२॥ निम्मलकलाकलावा, कमेण जुग्वणमयुत्तरं पत्ता । ता हट्ठमुचिते - राणा चिंतियं एवं ॥ १३६॥ सामेताइसम जुवराज पर उयेमि कुमरमई । कुमरी रूवविजिया-उमरी कारेमि वीवाहं ॥ १३७ ॥ इस चिंतिऊण पत्तो, पारजिकए भिराममारामं fast य सुरविणे - पिच्छ संयलदिसि ॥ १३६॥ ता तत्थ तिलयतरुवर-तलमि कंमगिरिव्यनितों # नानपिनो सुलनामा मुखी दिट्ठो ॥१३॥ हा अति पर्व विजय कृषि भू मुरक
पडला १४०
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