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विसं
(७७३) बंदण
अभिधानराजेन्द्रः। एए अट्ठा तिविहा, सविरइ वि करेइ प्रावस्सं। दो पणिहाणा थवणं , सुसरेण सुहोवमाइसंजुत्तं । पूमा निसीहि एगा, भणिमा किर साहुअहिगारे ॥८॥ जयवीयरायपाढो, मुद्दापुव्वं च सव्यं वि ॥३१॥ अच्चा उ अचित्ताणं, मणुएमत्तं पुणो वि जिणदिवे । मुणिवसहा य निरीहा, इच्छा जेसिं वि नत्थि मुक्खस्स । अंजलिमत्थे तिथि, उ, साहुणो अहिगमा नेपा ।।६।। कम्मा जायण तेरि , पुणत्तदोसो कहं नत्थि ॥३२॥ पूयणनिमित्तँ वजं, सावजं सावो वि जयणाए । नत्थि पुणरुत्तदोसो, भत्तियरागेण भासमाबस्स । उत्तरसंग बी, तिनि य सेसाणि साहु व्व ॥१०॥
जिजायणविवहारो, करेइ तहा विण सो दुट्ठो ॥३३॥ अकसिणपवत्तगाणं, दबत्थं सविहि पुन्बमक्खायं । उक्कोसा विहि एसा , नवयारेण च जहमसंकहिया । तेणेह सचित्ताणं, अचाओ अत्थि लाहस्स ।। ११॥ मज्झिमअणेगभेया, णेया सुत्ताणुसारेणं ॥ ३४ ॥ तंबोलभत्तपाण-सयणउवाणहजुयं च निट्ठिवणं । उभो कालजिणहरे , उक्कोसा वंदणा य सायब्बा । मेहुणमुत्तुचारं, वजह जिणगेहसीमासु ॥१२॥
जहॉ कारणवसभो, पणवारं मज्झिमा दिवसे ॥३॥ काऊण पयाहीणं, भूमि पमज्जइ सुहेण जोएण। । चेइयवंदणविहिणा, करति जेसिं च खिजराविउला । भणई इरियाविहिअं, उस्सग्गो जाव लोगस्स ॥ १३ ॥ अविहिकए पच्छित्तं, उवहाणविणा विनिदिहं ॥ ३६॥ दो जाणू दोलि करा, पंचमगं होइ उत्तमंगं तु ।
चेइयहरे न गच्छंति , पमायजोएण साहु सड्डो वा । पणिवामो पंचंगो, भणियो सुत्तट्ठदिट्ठीहिं ॥ १४ ॥
तस्सम्मत्तं मलिणं , उवएसो तित्थणाहस्स ।। ३७ ॥ पणामत्तियं किच्चा, भणई सुत्तत्थ संथवणं ।
चेइयवंदणभणियं, अह गुरुवंदरण समासमो वुच्छं। दाहिणजाणणि तमो, ठवेइ भूभागदेसम्मि ॥१५॥ तिविहा फिटा थोभ, दुबालसावत्तभो यं ॥ ३८ ॥ सजलनयणो य पडिमा, पिक्खइ इग(गा)दाहिणे पासे ।। सिरनमणाइसु पदमं , खमासमणदुनि दाणभो बीच। भाव विसुद्धीइ भणइ, सकथयं जोगमुद्दासु ॥ १६ ॥ वंदणदुगेण तइयं, पडिवत्ती गुणवमो एसा ॥ ३९ ॥ अमोमंतरि अंगुलि, कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । मूलं विणय धम्मस्स , पढमा सो कारणे हवह। पिहोवरि कोप्पर सं-ठिएहिं जह जोगमुद्द त्ति ॥१७॥ तह वि ह विसिडकजे, बीया रपणाधिके तझ्या ॥४०॥ महरणिमक्खलिश्र, संपत्तं मुक्ख जाव जे भ जिणा। पञ्चण्हं कायव्वा , पासत्थाणं च नस्थि पंचएई । ठवणावंदणहेऊ, भावविसुद्धीसुइह(राओ)याभो ॥१८॥ वंदणववहारो वि य, णिजरहेऊ जिलो दिसति ॥४१॥ काऊण उड्ढकायं, अरिहंतचेइअदंडयं पढई ।
गुणनिहिगुरू भभावे, ठवणा ठावंति सुद्धभक्खार। वंदण्याइफलढे, उस्सग्गो (पुण) होइ जिणमुद्दा ॥१६॥ सम्भावमसम्भावं, दुविहाऽऽवकहा य इसरिया ॥४२॥ चत्तारि अंगुलाई, याउ पुरो हीणपच्छियो जत्थ । रत्ते अक्खे नीला-रहे सा सीलकंठणामा। वित्थारे जिणमुद्दा, उवयोगटुं अणुद्वाणं ॥ २०॥
बहु सुह विजा पाउ , वडइ ठवणा न संदेहो ॥४३॥ उगणीसदोसवजं, माणदृरुद्दविमुक्कसज्झाणं ।
मोहणयादिसु रत्ता, प्रद्धरत्ताद्धयी य सा उवखा। विग्गोसग्गे ठिच्चा, अदुस्सासा जहनेणं ॥ २१ ॥ कुटुं फेडइ अस्थि , दुहनासणी व भइरम्मा ॥४४॥ पूरइ णमुयारेणं, एगो सुद्धक्खरेण संथुत्ति ।
सुक्का य सव्ववाहि , सॅलरोगहरा मुणेयब्बा । एगसिलोगिय अहवा, बटुंति य मूलणाहस्स ॥ २२ ॥ नीली हलिद्द तिलया,विसहरणी सुहा सुघयवनी ॥४॥ निउखावमाइ कित्ति, सम्भूप्रगुणासु जे अलंयारा।। इगदुतियण यावत्ता, गुमाइरोगा विसं भयं इति । ललियखरेण पएणं, सरेण वड्डेण सा थुत्ति ॥२३॥ घउआवत्ता गिट्ठा, संता वसा सुहा खेया ॥ ४६ ॥ भन्ने सुणति सन्दे, एगग्गमणा उसग्गमज्झम्मि। मंतक्खरेण वासो, किच्चा ठवणा य याच कहिया वा । झायति धम्ममुकं, तस्सट्ट धरंति वा एगे ॥ २४ ॥
पुवुत्तरासु दिसासु, ठाइत्ता उग्गहो जाब ॥ ४७॥ नामत्थयं च पच्छा, कट्टइ समग्गसुवनप्रक्खलियो। आसायणपरिहारो, विणयविउत्तं सुहेण जोएख। सव्वं लोए अरिहं-तचेइयाणं समग्गं वि ॥२५(वंद०) इरियाविहियं पुन्वं, करेइ संविग्गचित्तेण ॥४८॥ मुत्तामुनियमुद्दा, धरेइ सुहजोगसंपन्ना ॥ २६ ॥ पडिलेहइ मुहपोति, वंदण भणुजाणहाइ सव्वं पि। दो वि हत्था उ सुसमा, उन्नयसुत्तीव संठिया मज्झे । गोसे पञ्चक्खाणं, वंदणचउ थोभसिज्झाय ॥४६॥ मुत्तासुत्तियमुद्दा , ललाडदेसेमु सा किच्चा ॥ ३० ॥ सेसे दिवसे वि पुग्यो, वंदित्ता चरिमवंदणा सम्वं । १-तुतिन यता रा बतुर्थ मागे ३४१४ पूरे गता।
समावदना जीव-रासि ममभावनासहिभो ॥५०॥
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