________________
अभिधानराजेन्द्रः। ताव खमं काउंजे, सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं । अम्लयरेणुवहाणे-ण संलिहे अप्पगं कमसो ॥१७॥ समयपडागाहरणं, सुविहियइ8 नियमजुत्तं ॥१५६ ॥ संलेहणा य दुविहा, अभितरिया य बाहिरा चेव । हंदि अणिचा सद्धा, सुई य जोगा य इंदियाइं च । अभितरियकसाए, बाहिरिया होइ य सरीरे ॥१७६।। तम्हा एयं नाउं, विहरह तव संजमुज्जुत्ता ।। १५७॥ उग्गमउप्पायण ए-सणाविसुद्धेण अमपाणेणं । ता एवं नाऊणं, अोवार्य नाणदंसणचरित्ते ।।
मियविरसलुक्खलूहेण, दुब्बलं कुणसु अप्पागं ॥१७७॥ धीरपुरिसाऽणुचिस्मं, करिति सोहिं सुयसमिद्धा ॥१५८।। उल्लीणोल्लीणेहि य,अहव न एगंतवद्धमाणेहिं । अम्भितरवाहिरयं, अह ते काऊण अप्पणो सोहि । संलिह सरीरमेयं, आहारविहिं पयणुयंतो ॥१७८।। तिविहेण तिविहकरणं, तिविहे काले वियडभावा॥१५६।। तत्तो अणुपुव्वेणाऽऽ-हारं उवहिं सुअोवएसेणं । परिणामजोगसुद्धा, उवहिविवेगं च गणविसग्गे य।। विविहतवोकम्मेहि य, इंदियविकीलियाईहिं ॥१७६।। अजाइ य उवस्सय-चजणं च विगईविवेगं च ॥१६॥ तिविहाहि एसणाहि य, विविहेहि अभिग्गहेहि उग्गेहिं । उग्गम-उप्पायण ए-सणा विसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं ।
संजममविराहिंतो, जहाबलं संलिहसरीरं ॥१८॥ सबिहि सबिचयमि य, तववेयावच्चकरणे य ॥१६॥
विविहाहि व पडिमाहि य, बलवीरियजई य संपहोइ सुहं । एवं करंतु सोहि, नवसारयसलिलनहतलमभावा ।
ताओ वि न वाहिति, जहक्कम संलिहंतम्मि ।। १८१॥ कमकालदव्बपज्जव-अत्तंपरजोगकरणे य ॥ १६२ ॥
छम्मासिया जहन्ना, उक्कोसा वारिसेव वरिसाई। तो ते कयसोहीया, पच्छित्ते फासिए जहाथाम्म ।
आयंबिलं महेसी, तत्थ य उक्कोसयं बिंति ॥ १८२॥ पुकाऽवकिमगम्मि य, तवंमि जुत्ता महासत्ता ॥१६३॥
छट्ठद्रुमदसमदुवा-लसेहि, भत्तेहि चित्तक हिं । तो इंदियपरिकम्मं, करिति विसयसुहनिग्गहसमत्था । मियलहुकं आहारं, करेहि आयंबिलं विहिणा ॥१३॥
परिवडिओवहाणो,एहारुविरावियवियडपासुलिकडीओ। जयहाइ अप्पमत्ता, रागद्दोसे पयणुयंता ॥ १६४ ॥
संलिहियतणुसरीरो, अझप्परो मुणी निचं ॥१८४॥ पुब्बमकारियजोगा, समाहिकामा वि मरणकालम्मि ।
एवं सरीरसंले-हणाविहिं बहविहं पि फासितो। न भवंति परीसहसहा, विसयसुहपमोइया अप्पा ॥१६॥
अज्झवसाणविसुद्धि, खणं पि तो मा पमाइत्था॥१८॥ इंदियसुहसाउलओ, घोरपरीसहपराइयपरज्झो ।
अज्झवसाणविसुद्धी, विवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि । अकयपरिकम्मकीवो, मुज्झइ आराहणाकाले ॥१६६॥
कुव्वंति वाललेसा, न होइ सा केवला सुद्धी ॥१८६॥ वाहंति इंदियाई, पुचि दुन्नि य मियप्पयाराई ।
एयं सरागसंले-हणाविहिं जइ जई समायरई । अकयपरिकम्मकीवं, मरणेसु असंपउत्तं पि ॥१६७।।
अज्झप्पसंजुयमई, सो पावइ केवलं सद्धिं ॥१८७॥ आगममयप्पभाविय-इंदियसुहलोलुया पइट्ठस्स ।।
निखिला फासेयव्वा, सरीरसंलेहणाविही एसा । जइ वि मरणे समाही, हुज न सा होइ बहुयाणं ॥१६८॥
इत्तो कसायजोगा, अज्झप्पविहिं परम बुच्छं ॥१८८॥ असमत्तसुओ वि मुणी, पुवि सुकयपरिकम्मपरिहत्थो।
कोहं खमाइ माणं, मद्दवया अजवेण मायं च । संजमनियमपइन्न, सुहमत्तहिओ समोइ ॥१६६।।
संतोसेण व लोह,निजिण चत्तारि वि कसाए ॥१८६।। न चयति किंचि काउं, पुब्धि सुकयपरिकम्मजोगस्स ।
कोहस्स व माणस्स व, मायालोमेसु वा न एएसिं । खोहं परीसहचमू-धिइबलपराइया मरणे ॥१७०॥
बच्चइ वसं खणं पिहु, दुग्गइगइवडणकराणं ॥१६॥ तो ते वि पुवचरणा, जयणाए जोगसंगहविहीहि ।
एवं तु कसायऽग्गि, संतोसेणं तु विज्झवयेवो । तो ते करेंति दंसण-चरित्तसइ भावणाहेउं ॥१७१ ॥ राग्गबोसपवत्ति, बज्जेमाणस्स विज्झाइ ॥१६॥ जा पुन्वभाविय किर, होइ सुई चरणदंसणे बहुहा । जावंति केइ ठाणा, उदीरगा हुंति हु कसायाणं । सा होइ वीयभूया, कयपरिकम्मस्स मरणम्मि ॥१७२॥ ते उ सया वजतो, विमुत्तसंगो मुणी विहरे ॥१६२ ॥ तं फासेहि चरित्तं, तुमं पि सुहसीलयं पमुत्तूणं । संतोवसंतधिइम, परीसहविहिं च समहियासंतो । सव्वं परीसहचमुं, अहियासन्तो घिडवलेणं ॥१७३।। निस्संगयाइ सुविहिय !, संलिहमोहे कसाए य ॥१६३॥ सद्दे रूवे गंधे, रसे य फासे य सुविहियजणेहिं । इट्ठाणिद्वेसु सया, सद्दफरिसरूवरसगंधेहिं । सब्बेसु कसाएसु अ, निग्गह परमो सया होहि ॥१७४।। सुहदुक्खनिबिसेसो, जियसंगपरीसहो विहरे ॥१६४॥ सव्वे रसे पणीए, णिज्न हेऊण पंतलुक्खेहिं । समिईसु पंचसमिओ, जिणाहितं पंच इंदिए सुट्ठ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org